Thakur Satyapal Singh

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1 | Page ठाक र सयपाल िसंह - आदश यि�व ी मन लाल सराफ अपनी पिन ीमती मुला बाई के साथ शनीचरी टौरी, सागर म रहते थे। मन लाल जी बह�त मेहनती, ईमानदार, बड़े सरल �दय, िमलनसार, लोकिय, अनुशासन िय और िसांतवादी यि� थे और सराफे कएक बड़ी द कान पर नौकरी करते थे। कुछ ही समय म इनक� लगन और मेहनत को देख कर इनके मािलक ने इह पाटनर बना िलया। 21 जुलाई, 1924 क� खुशनुमा रात को इनके घर पहला िचराग रोशन ह�आ। प रे घर म उसव का माहौल था। खुिशयां मनाई गई, िमठाइयां बांटी गई। इस ितभावान और होनहार बालक का नाम सयपाल रखा गया, जो बाद म सयपाल िसंह ठाकुर के नाम से िवयात ह�ए। प रे सागर संभाग म आदर से लोग इह सतपाल दादा भी कहा करते थे। ये शु� से ही बह�त बुिमान, मेहनती और ईमानदार रहे। पढ़ाई के साथ-साथ ये अपने िपता के काम म भी हाथ बंटाने लगे। 11व लास पास करने के बाद तो ये प री तरह िपता के साथ कंधे से कंधा िमला कर काम करने लगे। उस समय ये मा 16 वष के थे। िदन रात मेहनत करते और काम के िसलिसले म िदली और बबई के चकर लगाते रहे। इससे इह नये नये लोग से िमलने का मौका िमलता और नए अनुभव भी होते रहे। सयपाल िसंह जी मददगार और शांित िय यि� थे। न इहने कभी िकसी को ठेस पह�ँचाने वाले शद कहे और न िकसी का मजाक बनाया। वे आजीवन युिधि�र क� भांित सय के पुजारी बने रहे। ये अपने प�रवार के िलए तन, मन, धन से प री तरह समिपत रहे। सागर शहर बीड़ी यवसाय का क है और अिधकांश नगरवासी पान और तबाक का सेवन करते ह। लेिकन सयपाल जी ने पान और तबाक को कभी हाथ भी नह लगाया। ठीक वैसे ही जैसे क�चड़ म िखल कर भी कमल का फ िनमल और िनरापद रहता है। सयपाल जी अपने माता-िपता के परम आ�ाकारी पु थे। इनके पांच भाई और तीन बहन ह। ये ये� पु थे और सदैव माता-िपता क� सेवा चाकरी को तपर रहते थे। ये माता-िपता को ई�र तुय मानते थे। माता िपता के ित भि�-भाव म ये वण कुमार से कही कम नह थे। ये अपने चार भाइय और तीन बहन को बह�त यार करते थे और आिखरी समय तक उनका हमेशा खयाल रखा और मागदशन करते रहे। ये हमेशा बहन-बेिटय के सुख-ख म साथ रहे और यथासंभव आिथक मदद भी

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