Ramcharitra manas
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श्रीरामचरिरतमानस
नाम - वि ेक कुमार सिसंहअनुक्रमांक –35
श्री राम चरिरत मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचिचत एक महाकाव्य है। श्री रामचरिरत मानस भारतीय संस्कृतित में एक तिवशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में रामायण के रूप में कई लोगों द्वारा प्रतितदिदन पढ़ा जाता है। श्री रामचरिरत मानस में इस ग्रन्थ के नायक को एक महाशचि< के रूप में दशा=या गया है जबतिक महर्षिष@ वाल्मीतिक कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिदखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सव=शचि<मान होते हुए भी मया=दा पुरुषोत्तम हैं। शरद नवरातिE में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिदन तिकया जाता है।
रामचरिरतमानस को हिह@दी सातिहत्य की एक महान कृतित माना जाता है। रामचरिरतमानस को सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। Eेता युग में हुए ऐतितहाचिसक राम-रावण युद्ध पर आधारिरत और तिहन्दी की ही एक लोकतिप्रय भाषा अवधी में रचिचत रामचरिरतमानस को तिवश्व के १०० सव=श्रेष्ठ लोकतिप्रय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिदया गया।
परिरचय
तुलसीदास जी द्वारा रचिचत रामचरिरत मानस की कुछ चौपाइयों को लेते हैं। बात उस समय की है जब मनु और सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वष= तपस्या करने के बाद शंकरजी ने स्वयं पाव=ती से कहा तिक मैं, ब्रह्मा और तिवष्णु कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के चिलये आये, जिजसका उल्लेख तुलसी दास जी द्वारा रचिचत रामचरिरतमानस में इस प्रकार मिमलता है- "तिबचिध हरिर हर तप देखिख अपारा, मनु समीप आये बहु बारा"। जैसा की उपरो< चौपाई से पता चलता है तिक ये लोग तो कई बार आये यह कहने तिक जो वर तुम माँगना चाहते हो माँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुE रूप में स्वयं परमब्रह्म को ही माँगना था तिaर ये कैसे उनसे यानी शंकर, ब्रह्मा और तिवष्णु से वर माँगते? हमारे प्रभु श्रीराम तो सव=ज्ञ हैं। वे भ< के ह्रदय की अभिभलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वष= और बीत गये तो प्रभु श्रीराम के द्वारा आकाश वाणी होती है- "प्रभु सब=ग्य दास तिनज जानी, गतित अनन्य तापस नृप रानी। माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी।।" इस आकाश वाणी को जब मनु सतरूपा सुनते हैं तो उनका ह्रदय प्रaुल्लिल्लत हो उठता है। और जब स्वयं परमब्रह्म राम प्रकट होते हैं तो उनकी स्तुतित करते हुए मनु और सतरूपा कहते हैं- "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, तिबचिध हरिर हर बंदिदत पद रेनू। सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक॥" अथा=त् जिजनके चरणों की वन्दना तिवचिध, हरिर और हर यानी ब्रह्मा, तिवष्णु और महेश तीनों ही करते है, तथा जिजनके स्वरूप की प्रशंसा सगुण और तिनगु=ण दोनों करते हैं: उनसे वे क्या वर माँगें? इस बात का उल्लेख करके तुलसी बाबा ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल तिनराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।
संभिmप्त मानस कथा
अध्याय बालकाण्ड अयोध्याकाण्ड अरण्यकाण्ड तिकष्किष्कन्धाकाण्ड सुन्दरकाण्ड लंकाकाण्ड उत्तरकाण्ड
बालकाण्ड बालकाण्ड वाल्मीतिक कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत
श्री राम चरिरत मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिजनकी कौसल्या,
कैकेयी और सुमिमEा नामक पष्कित्नयाँ थीं। संतान प्राष्किप्त हेतु अयोध्यापतित दशरथ ने अपने गुरु श्री वभिशष्ठ की आज्ञा से पुEकामेतिr यज्ञ करवाया जिजसे तिक ऋंगी ऋतिष ने सम्पन्न तिकया। भचि<पूण= आहुतितयाँ पाकर अष्किग्नदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हतिवष्यपाE (खीर, पायस) दिदया जिजसे तिक उन्होंने अपनी तीनों पष्कित्नयों में बाँट दिदया। खीर के सेवन के परिरणामस्वरूप कौसल्या के गभ= से राम का, कैकेयी के गभ= से भरत का तथा सुमिमEा के गभ= से लक्ष्मण और शEुघ्न का जन्म हुआ।
राजकुमारों के बडे़ होने पर आश्रम की राmसों से रmा हेतु ऋतिष तिवश्वामिमE राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राmसों को मार डाला और मारीच को तिबना aल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिदया। उधर लक्ष्मण ने राmसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के तिनमंEण मिमलने पर तिवश्वामिमE राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिमचिथला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुतिन की स्Eी अहल्या का उद्धार तिकया। मिमचिथला में राजा जनक की पुEी सीता जिजन्हें तिक जानकी के नाम से भी जाना जाता है का स्वयंवर का भी आयोजन था जहाँ तिक जनकप्रतितज्ञा के अनुसार भिशवधनुष को तोड़ कर राम ने सीता से तिववाह तिकया| राम और सीता के तिववाह के साथ ही साथ गुरु वभिशष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिम@ला से और शEुघ्न का श्रुतकीर्षित@ से करवा दिदया।
राम के तिववाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिभषेक करना चाहा। इस पर देवता लोगों को चिच@ता हुई तिक राम को राज्य मिमल जाने पर रावण का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी सरस्वती से तिकसी प्रकार के उपाय करने की प्राथ=ना की। सरस्वती नें मन्थरा, जो तिक कैकेयी की दासी थी, की बुभिद्ध को aेर दिदया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे तिक भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वष� के चिलये वनवास में भेज दिदया जाये।
राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में तिनषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा| प्रयाग पहुँच कर राम ने भरद्वाज मुतिन से भेंट की। वहाँ से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीतिक ऋतिष के आश्रम पहुँचे। वाल्मीतिक से हुई मन्Eणा के अनुसारराम, सीता और लक्ष्मण चिचEकूट में तिनवास करने लगे।
अयोध्याकाण्ड
अयोध्या में पुE के तिवयोग के कारण दशरथ का स्वग=वास हो गया। वभिशष्ठ ने भरत और शEुघ्न को उनके नतिनहाल से बुलवा चिलया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुदिटलता के चिलये, बहुत भत=स्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येतिr तिक्रया कर दिदया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिदया और राम को मना कर वापस लाने के चिलये समस्त स्नेहीजनों के साथ चिचEकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने तिकये पर अत्यंत पश्चाताप हुआ। सीता के माता-तिपता सुनयना एवं जनक भी चिचEकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापसअयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिजसे तिक राम ने, तिपता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीतित तिनभाने के चिलये, अमान्य कर दिदया।
भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज चिस@हासन पर तिवराजिजत कर दिदया स्वयं नजिन्दग्राम में तिनवास करने लगे।
अरण्यकाण्ड कुछ काल के पश्चात राम ने चिचEकूट से प्रयाण तिकया तथा वे अतिE ऋतिष
के आश्रम पहुँचे। अतिE ने राम की स्तुतित की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातितव्रत धम=के मम= समझाये। वहाँ से तिaर राम ने आगे प्रस्थान तिकया और शरभंग मुतिन से भेंट की। शरभंग मुतिन केवल राम के दश=न की कामना से वहाँ तिनवास कर रहे थे अतः राम के दश=नों की अपनी अभिभलाषा पूण= हो जाने से योगाष्किग्न से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन तिकया। और आगे बढ़ने पर राम को स्थान स्थान पर हति�यों के ढेर दिदखाई पडे़ जिजनके तिवषय में मुतिनयों ने राम को बताया तिक राmसों ने अनेक मुतिनयों को खा डाला है और उन्हीं मुतिनयों की हति�याँ हैं। इस पर राम ने प्रतितज्ञा की तिक वे समस्त राmसों का वध करके पृथ्वी को राmस तिवहीन कर देंगे। राम और आगे बढे़ और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदिद ऋतिषयों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश तिकया जहाँ पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पंचवटी को अपना तिनवास स्थान बनाया।
सीता को न पा कर राम अत्यंत दुखी हुये और तिवलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुद=शा होने व सीता को हर कर दभिmण दिदशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिदये और राम उसका अंतितम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढे़। रास्ते में राम ने दुवा=सा के शाप के कारण राmस बने गन्धव= कबन्ध का वध करके उसका उद्धार तिकया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर तिक उसके द्वारा दिदये गये झूठे बेरों को उसके भचि< के वश में होकर खाया| इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।
तिकष्किष्कन्धाकाण्ड राम ऋष्यमूक पव=त के तिनकट आ गये। उस पव=त पर
अपने मंतिEयों सतिहत सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में तिक कहीं बाचिल ने उसे मारने के चिलये उन दोनों वीरों को न भेजा हो, हनुमान को राम और लक्ष्मण के तिवषय में जानकारी लेने के चिलये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद तिक उन्हें बाचिल ने नहीं भेजा है हनुमान नेराम और सुग्रीव में मिमEता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी तिक जानकी जी मिमल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बाचिल के अपने ऊपर तिकये गये अत्याचार के तिवषय में बताया। राम ने बाचिल का वध कर के सुग्रीव को तिकष्किष्कन्धा का राज्य तथा बाचिल के पुE अंगद को युवराज का पद दे दिदया।
राज्य प्राष्किप्त के बाद सुग्रीव तिवलास में चिलप्त हो गया और वषा= तथा शरद ्ऋतु व्यतीत हो गई। राम के नाराजगी परसुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के चिलये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुaा में एक तपस्विस्वनी के दश=न हुये। तपस्विस्वनी ने खोज दल को योगशचि< से समुद्रतट पर पहुँचा दिदया जहाँ पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया तिक रावण ने सीता को लंका अशोकवादिटका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के चिलये उत्सातिहत तिकया।
सुन्दरकाण्ड हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान तिकया। सुरसा ने हनुमान की परीmा ली
और उसे योग्य तथा सामथ्य=वान पाकर आशीवा=द दिदया। माग= में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राmसी का वध तिकया और लंतिकनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश तिकया। उनकी तिवभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवादिटका में पहुँचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर तिEजटा ने सीता को सान्तवना दी। एकान्त होने पर हनुमान ने सीता से भेंट करके उन्हें राम की मुदिद्रका दी। हनुमान ने अशोकवादिटका का तिवध्वंस करके रावण के पुE अmय कुमार का वध कर दिदया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिरचय राम के दूत के रूप में दिदया। रावण ने हनुमान की पँूछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांध कर आग लगा दिदया इस पर हनुमान ने लंका] का दहन कर दिदया।
लंकाकाण्ड जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिदया। श्री राम ने
श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सतिहत समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यंत व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के चिलये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पव=त पर तिनवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिदया तिकन्तु रावण ने नहीं माना।
शांतित के सारे प्रयास असaल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शचि<बाण के वार से लक्ष्मण मूर्क्षिm@त हो गये। उनके उपचार के चिलये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के चिलये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिमलने पर रावण ने हनुमान के काय= में बाधा के चिलयेकालनेमिम को भेजा जिजसका हनुमान ने वध कर दिदया। औषचिध की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पव=त को ही उठा कर वापस चले। माग= में हनुमान को राmस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्क्षिm@त कर दिदया परन्तु यथाथ= जानने पर अपने बाण पर तिबठा कर वापस लंका भेज दिदया। इधर औषचिध आने में तिवलम्ब देख कर रामप्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषचिध लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।
रावण ने युद्ध के चिलये कुम्भकण= को जगाया। कुम्भकण= ने भी राम के शरण में जाने की असaल मन्Eणा दी। युद्ध मेंकुम्भकण= ने राम के हाथों परमगतित प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिदया। राम और रावणके मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। तिवभीषण को लंका का राज्य सौंप कर रामसीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकतिवमान पर चढ़ कर अयोध्या के चिलये प्रस्थान तिकया।
उत्तरकाण्ड उत्तरकाण्ड राम कथा का उपसंहार है। सीता, लक्ष्मण और समस्त
वानर सेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुँचे। राम का भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सव=जनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और भिशव की स्तुतित के साथ राम का राज्याभिभषेक हुआ। वानरों की तिवदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिदया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुE हुये। रामराज्य एक आदश= बन गया।