Abhijit sarkar ashok vanika
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केन्द्रीय विद्द्यालया न०२ सल्ट लेककक्षा- VIII- ‘द’
अनुक्रमांक-१
अभि�जीत सरकार
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अशोक�विनका
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अशोक�विनका
स�र्तुु�कुसुमै रम्यै: फलदभि#श्च पादप:ै ।पुष्पि(पर्तुानामशोकनां भि+या सूय-दयप्र#ाम्।।
सरलार्थ�: स�ी ऋतुयों में फूलों �ाले फलों से युक्त तर्था संुदर �ृक्षों के द्वरा पुष्पों से युक्त अशोक �ृक्षों की शो�ा से
सूय,दयकालीन छटा के समान छटा �ाली (पृथ्�ी को देखो) ।
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पै
कर्णि12कारैः कुसुमिमर्तुैः किक2शुकैश्च सुपुष्पि(पर्तुैः ।स देश: प्र#या रे्तुषां प्रदीप्र्तु इ स�र्तु; ।।२।।
सरलार्थ�: खिखले हुए कनेरों से तर्था संुदर फूलों �ाले पलाश के �ृक्षों से सुशोभि�त �ह स्थान उनकी छटा के द्वरा स�ी ओर से उद्दीप्त-सा लग रहा र्था ।
पंुनागा: सप्र्तुप1ा�श्च चम्पकोद दालकास्र्तुर्था ।विृद्धमूला बह: शो#न्र्तुे स्म सुपुष्पि(पर्तुा:
सरलार्थ�: संुदर फूलों से युक्त तर्था पुष्ट ज �ाले स्�ेत कमल ,छिछत�न, चम्पा और उद्दालक के अनेक �ृक्ष सुशोभि�त हो रहे रे्थ ।
नन्दनं विबुधोद्दद्ानं चिचत्रां चैत्ररर्थं यर्था ।अविर्तुृत्तमिमाचिचन्त्यं दिदव्यं रम्यभि+ृर्तुम् ।।३।।
सरलार्थ�: दे�ताओं के उद्दान नन्दन के समान तर्था उप�न चैत्ररर्थ के समान वि�छिचत्र, स�ी से शे्रष्ठ, दिदव्य तर्था रमणीय शो�ा से सम्पन्न र्था । �ा� यह है विक अशोक �न स�ी उप�नों से श्रेष्ठ र्था ।
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स�र्तुु�पु(पैर्निन2चिचरं्तु पादपैम�घुगन्धिOभि#: ।नानाविननादैरूद्दानं रम्यं मृगग1विQजैः ।।५।।
को देखा ।
सरलार्थ�:स�ी ऋतुओं के फूलों �ाले तर्था वि�भि�न्नकलर�ों �ाले मृगों के समूह � पभिक्षयों के द्वरा �रा हुआ उद्दान संुदर प्रतीत हो
रहा हैं
अनेकगOप्रहं पुण्यगOं मनोहरम् ।शैलेन्द्रमिम गOाढं्य विQर्तुीयं गOमदनम् ।।६।।
सरलार्थ�: �ह अनेक प्रकार की सुगन्ध का �ार �हन करने के कारण पवि�त्र गन्ध से युक्त और सुन्दर लग रहा र्था । मानो उत्तम्
गन्ध से व्याप्त दूसरा प��तराज गन्धमादन हो ।
अशोकविनकायां र्तुु र्तुस्यां ानरपंुग: ।स ददशा�विदूर्स्थंZ चैत्यप्रसादमूर्जिज2र्तुम् ।।७।।
सरलार्थ�:उस �ानर शे्रष्ठ ने उस अशोक �ादिटका में र्थोङी दूर पर एक ऊँचे तर्था गोलाकार मन्दिन्दर
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लंका मे प्र�ेश करने का समुद्री माग� ।
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• नए युग मे अशोक �ादिटका
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शब्दार्थ�:स�रु्तु�कुसुमै स#ी ऋरु्तुओं के फूलों पादपै: ृक्षों सेभि+या शो#ा सेसयू-दयप्र#ाम् सयू-दय की छटाकर्णि12कारैः कनेर के फूलों सेकिक2शुकै: पलाश के फूलोंप्र#या छटा सेपंुनागा सफेद कमलसप्र्तुप1ा�श्च: ‘सप्र्तुप1�’ नाम का एक फूलचम्पकोद्दालका: चम्प एं उद्दालक नामक पौधा /फूलविबुधोद्दानम् देर्तुाओं के उद्दान
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स्लोकषु रिरक्तस्थानाविन पुरयत् -(क) अशोक _________ तु तस्यां �ानर _________ ।
स ददशा�वि�दूस्थY _________ प्रसादमूर्जिज[तम् ।।७।।(ख) कर्णिण[कारैः ___________ किक[शुकैश्च __________ ।
स देश: _________ तेषां प्रदीप्त इ� _____________ ।।२।।
उत्तरम् :(क) अशोक विनकाया तु तस्यां �ानर पुंग: ।
स ददशा�वि�दूस्थY चैत्य प्रसादमूर्जिज[तम् ।।७।।(ख) कर्णिण[कारैः कुसुमिमर्तुैः किक[शुकैश्च सुपुष्पि(पर्तुैः ।
स देश: प्र#या तेषां प्रदीप्त इ� स�र्तु; ।।२।।
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चक्रस्थपादाविन प्रयुज्य �ाक्यविन रचयत्
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उत्तरम्• राम: �ारतय पादुके प्रच्छयावित ।
• राम: अयोध्याया: छिसध्दाश्रमं गच्छवित ।• राम: हनुमवित प्रसन्नोsस्तिस्त ।• राम: विपत्रो: �न्दनं करोवित ।
• राम: सुग्री�ेण सह मैत्री स्थापयवित ।• राम: रा�नं हंवित ।
• राम: वि��ीषणं ‘लङ्काराज !’ इवित सम्बोधयवित।
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(क) पुन्नागा: सुपुष्पि(पर्तुा: तत्र शो�न्ते स्म ।(ख) स देश: प्र#या प्रदीप्त; आसीत्।(ग) तत्र नन्दन ंवि�बुधोद्दानं दिदवं्य आसीत्।
उत्तरम्• कीदृशा: पुन्नागा: तत्र शो�न्ते स्म ?• स देश: कया प्रदीप्त: आसीत्?• तत्र नन्दन ंवि�बुधोद्दानं दिदवं्य विकम ्
आसीत्।
प्रशविनमा�नं कुरुत-
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धन्य�ाद: