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1पपपपप

िवनघयाचल पवरत मधयराित के िनिवड अनधकार मे काल दवे की भाित खडा था। उस पर उगे हुए छोटे- छोटे वृक इस पकार दिषगोचर होते थे, मानो ये उसकी जटाए ं है और

अषभुजा देवी का मिनदर िजसके कलश पर शेत पताकाए ं वायु की मनद- मनद तरगंो मे लहरा रही थी, उस दवे का मसतक है मंिदर मे एक िझलिमलाता हुआ दीपक था, िजसे देखकर िकसी

धुंधले तारे का मान हो जाता था। अधरराित वयतीत हो चुकी थी। चारो और भयावह सनाटा छाया हुआ था। गंगाजी की

काली तरगंे पवरत के नीचे सुखद पवाह से बह रही थी। उनके बहाव से एक मनोरजंक राग की धविन िनकल रही थी। ठौर- ठौर नावो पर और िकनारो के आस- पास मललाहो के चलूो की आंच िदखायी देती थी। ऐसे समय मे एक शेत वसतधािरणी सती अषभुजा दवेी के सममुख हाथ बाधे बैठी हईु थी। उसका पौढ मुखमणडल पीला था और भावो से कलुीनता पकट होती थी। उसने दरे तक िसर झुकाये रहने के पशात कहा।

‘माता! आज बीस वषर से कोई मंगलवार ऐसा नही गया जबिक मैने तुमहारे चरणो पर िसर न झुकाया हो। एक िदन भी ऐसा नही गया जबिक मैने तुमहारे चरणो का धयान न िकया हो। तुम जगतािरणी महारानी हो। तुमहारी इतनी सवेा करने पर भी मेरे मन की अिभलाषा परूी

न हुई। मै तुमहे छोडकर कहा जाऊ ?’‘ माता। मैने सकैडो वरत रखे, ’दवेताओं की उपासनाए ं की , तीथरयाञाए ं की, परनतु मनोरथ परूा न हुआ। तब तुमहारी शरण आयी। अब तुमहे छोडकर कहा जाऊं? तुमने सदा

अपने भकतो की इचछाए ं परूी की है। कया मै तुमहारे दरबार से िनराश हो जाऊं?’ सुवामा इसी पकार देर तक िवनती करती रही। अकसमात उसके िचत पर अचेत

करने वाले अनुराग का आकमण हुआ। उसकी आंखे बनद हो गयी और कान मे धविन आयी‘सवुामा! मै तुझसे बहुत पसन हूं। माग, कया मागती ह?ै

सुवामा रोमािचत हो गयी। उसका हृदय धडकने लगा। आज बीस वषर के पशात ‘ महारानी ने उसे दशरन िदये। वह कापती हुई बोली जो कुछ मागूंगी, ’ वह महारानी देगी ?‘हा, ’िमलेगा।‘ ’मैने बडी तपसया की है अतएव बडा भारी वरदान मागगूी।‘ ’कया लेगी कुबरे का धन ?‘ ’नही।‘ ’इनद का बल।‘ ’नही।‘ सरसवती की िवदा?’‘ ’नही।‘ िफर कया लेगी?’‘ ’संसार का सबसे उतम पदाथर।‘ वह कया है?’‘ ’सपतू बेटा।‘ जो कुल का नाम रोशन करे?’‘ ’नही।‘ जो माता- िपता की सेवा कर?े’‘ ’नही।‘ जो िवदान और बलवान हो?’‘ ’नही।

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‘ िफर सपतू बटेा िकसे कहते ह?ै’‘ ’जो अपने देश का उपकार करे।‘ तरेी बुिद को धनय है। जा, ’तेरी इचछा परूी होगी।

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मुंशी शािलगाम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन- वृित वकालत थी और पैतृक समपित भी अिधक थी। दशाशमेध घाट पर उनका वभैवािनवत गृह आकाश को सपशर करता था।

उदार ऐसे िक पचीस- तीस हजार की वािषकर आय भी वयय को परूी न होती थी। साधु-बाहमणो के बडे शदावान थे। वे जो कछु कमाते, वह सवयं बहमभोज और साधुओं के भडंारे एवं

सतयकायर मे वयय हो जाता। नगर मे कोई साधु- महातमा आ जाय,े वह मुंशी जी का अितिथ। संसकृत के ऐसे िवदान िक बडे- बडे पिंडत उनका लोहा मानते थे वेदानतीय िसदानतो के वे अनुयायी थे। उनके िचत की पवृित वैरागय की ओर थी।

मुंशीजी को सवभावत: बचचो से बहुत पेम था। मुहलले- भर के बचचे उनके पेम- वािर से अिभिसंिचत होते रहते थे। जब वे घर से िनकलते थे तब बालाको का एक दल उसके साथ

होता था। एक िदन कोई पाषाण- हृदय माता अपने बचवे को मार थी। लडका िबलख- िबलखकर रो रहा था। मुंशी जी से न रहा गया। दौडे, बचचे को गोद मे उठा िलया और सती

के सममुख अपना िसर झुक िदया। सती ने उस िदन से अपने लडके को न मारने की शपथ खा ली जो मनुषय दसूरो के बालको का ऐसा सनहेी हो, वह अपने बालक को िकतना पयार

करेगा, सो अनुमान से बाहर है। जब से पतु पैदा हुआ, मुंशी जी संसार के सब कायो से अलग हो गये। कही वे लडके को िहडंोल मे झुला रहे है और पसन हो रहे है। कही वे उसे एक

सुनदर सैरगाडी मे बैठाकर सवयं खीच रहे है। एक कण के िलए भी उसे अपने पास से दरू नही करते थे। वे बचचे के सनेह मे अपने को भलू गये थे।

सुवामा ने लडके का नाम पतापचनद रखा था। जैसा नाम था वैसे ही उसमे गुण भी थे। वह अतयनत पितभाशाली और रपवान था। जब वह बाते करता, सुनने वाले मुगध हो

जाते। भवय ललाट दमक- दमक करता था। अंग ऐसे पुष िक िदगुण डीलवाले लडको को भी वह कुछ न समझता था। इस अलप आयु ही मे उसका मुख- मणडल ऐसा िदवय और जानमय था िक यिद वह अचानक िकसी अपिरिचत मनुषय के सामने आकर खडा हो जाता तो वह

िवसमय से ताकने लगता था। इस पकार हसंते- खेलते छ: वषर वयतीत हो गये। आनदं के िदन पवन की भाित सन-से

िनकल जाते है और पता भी नही चलता। वे दुभागय के िदन और िवपित की राते है, जो काटे नही कटती। पताप को पैदा हुए अभी िकतने िदन हुए। बधाई की मनोहािरणी धविन कानो मे गूंज रही थी छठी वषरगाठ आ पहंुची। छठे वषर का अंत दुिदरनो का शीगणेश था। मुंशी

शािलगाम का सासािरक समबनध केवल िदखावटी था। वह िनषकाम और िनससमबद जीवन वयतीत करते थे। यदिप पकट वह सामानय संसारी मनुषयो की भाित संसार के कलेशो से कलेिशत और सुखो से हिषरत दृिषगोचर होते थे, तथािप उनका मन सवरथा उस महान और आननदपवूर शाित का सुख- भोग करता था, िजस पर दु: ख के झोको और सुख की थपिकयो का

कोई पभाव नही पडता है। माघ का महीना था। पयाग मे कुमभ का मेला लगा हुआ था। रलेगािडयो मे याती रई

की भाित भर- भरकर पयाग पहुंचाये जाते थे। अससी- अससी बरस के वृद- िजनके िलए वषो से उठना किठन हो रहा था- लंगडाते, लािठया टकेते मंिजल तै करके पयागराज को जा रहे थे।

बड-े बडे साधु-महातमा, िजनके दशरनो की इचछा लोगो को िहमालय की अंधेरी गुफाओं मे खीच ले जाती थी, उस समय गंगाजी की पिवत तरगंो से गले िमलने के िलए आये हुए थे। मुंशी

शािलगाम का भी मन ललचाया। सुवाम से बोले- कल सनान है। सुवामा - सारा मुहलला सनूा हो गया। कोई मनुषय नही दीखता।

मुंशी - तुम चलना सवीकार नही करती, नही तो बडा आनदं होता। ऐसा मेला तुमने कभी नही देखा होगा।

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सुवामा - ऐसे मेला से मेरा जी घबराता है। मुंशी - मेरा जी तो नही मानता। जब से सुना िक सवामी परमाननद जी आये है तब से

उनके दशरन के िलए िचत उिदगन हो रहा है। सुवामा पहले तो उनके जाने पर सहमत न हुई, पर जब देखा िक यह रोके न रकेगे,

तब िववश होकर मान गयी। उसी िदन मुंशी जी गयारह बजे रात को पयागराज चले गये। चलते समय उनहोने पताप के मुख का चुमबन िकया और सती को पेम से गले लगा िलया। सुवामा ने उस समय देखा िक उनके नेञ सजल है। उसका कलेजा धक से हो गया। जैसे

चतै मास मे काली घटाओं को देखकर कृषक का हृदय कॉंपने लगता है, उसी भाती मुंशीजी ने नेतो का अशुपणूर देखकर सुवामा किमपत हुई। अशु की वे बूंदे वरैागय और तयाग का अगाघ समुद थी। देखने मे वे जैसे ननहे जल के कण थी, पर थी वे िकतनी गंभीर और िवसतीणर।

उधर मुंशी जी घर के बाहर िनकले और इधर सवुामा ने एक ठंडी शास ली। िकसी ने उसके हृदय मे यह कहा िक अब तुझे अपने पित के दशरन न होगे। एक िदन बीता, दो िदन

बीत,े चौथा िदन आया और रात हो गयी, यहा तक िक परूा सपताह बीत गया, पर मुंशी जी न आये। तब तो सुवामा को आकुलता होने लगी। तार िदये, आदमी दौडाय,े पर कुछ पता न चला। दसूरा सपताह भी इसी पयत मे समापत हो गया। मुंशी जी के लौटने की जो कछु आशा

शेष थी, वह सब िमटी मे िमल गयी। मुंशी जी का अदृशय होना उनके कुटुमब मात के िलए ही नही, वरन सारे नगर के िलए एक शोकपणूर घटना थी। हाटो मे दुकानो पर, हथाइयो मे अथात

चारो और यही वातालाप होता था। जो सुनता, वही शोक करता- कया धनी, कया िनधरन। यह शौक सबको था। उसके कारण चारो और उतसाह फैला रहता था। अब एक उदासी छा गयी। िजन गिलयो से वे बालको का झणुड लेकर िनकलते थे, वहा अब धलू उड रही थी।

बचचे बराबर उनके पास आने के िलए रोते और हठ करते थे। उन बचेारो को यह सुध कहा थी िक अब पमोद सभा भगं हो गयी है। उनकी माताए ं ऑंचल से मुख ढाप- ढापकर रोती मानो

उनका सगा पेमी मर गया है। वैसे तो मुंशी जी के गुपत हो जाने का रोना सभी रोते थे। परनतु सब से गाढे आंसू, उन

आढितयो और महाजनो के नेतो से िगरते थे, िजनके लेने- देने का लेखा अभी नही हुआ था। उनहोने दस- बारह िदन जैसे- जैसे करके काटे, पशात एक- एक करके लेखा के पत िदखाने लगे। िकसी बहृनभोज मे सौ रपये का घी आया है और मूलय नही िदया गया। कही से दो-सौ

का मैदा आया हुआ है। बजाज का सहसो का लेखा है। मिनदर बनवाते समय एक महाजन के बीस सहस ऋण िलया था, वह अभी वैसे ही पडा हुआ है लेखा की तो यह दशा थी। सामगी

की यह दशा िक एक उतम गृह और ततसमबिनधनी सामिगयो के अितिरकत कोई वसत न थी, िजससे कोई बडी रकम खडी हो सके। भू- समपित बचेने के अितिरकत अनय कोई उपाय न

था, िजससे धन पापत करके ऋण चकुाया जाए। बचेारी सुवामा िसर नीचा िकए हुए चटाई पर बैठी थी और पतापचनद अपने लकडी के

घोडे पर सवार आंगन मे टख- टख कर रहा था िक पिणडत मोटरेाम शासती - जो कुल के परुोिहत थे - मुसकराते हुए भीतर आये। उनहे पसन देखकर िनराश सुवामा चौककर उठ बैठी

िक शायद यह कोई शभु समाचार लाये है। उनके िलए आसन िबछा िदया और आशा- भरी दृिष से देखने लगी। पिणडतजी आसान पर बैठे और सुंघनी सूंघते हुए बोले तुमने महाजनो का

लेखा देखा? सुवामा ने िनराशापणूर शबदो मे कहा-हा, देखा तो।

मोटरेाम- रकम बडी गहरी है। मुंशीजी ने आगा- पीछा कुछ न सोचा, अपने यहा कुछ िहसाब- िकताब न रखा।

सुवामा- हा अब तो यह रकम गहरी ह,ै नही तो इतने रपये कया, एक- एक भोज मे उठ गये है।

मोटरेाम- सब िदन समान नही बीतते।

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सुवामा- अब तो जो ईशर करेगा सो होगा, कया कर सकती हूं।मोटरेाम- हा ईशर की इचछा तो मूल ही है, मगर तुमने भी कुछ सोचा है ?सुवामा- हा गाव बचे डालूंगी।मोटरेाम-राम- राम। यह कया कहती हो ? भिूम िबक गयी, तो िफर बात कया रह

जायेगी?मोटरेाम- भला, पृथवी हाथ से िनकल गयी, तो तुम लोगो का जीवन िनवाह कैसे होगा?सुवामा- हमारा ईशर मािलक है। वही बेडा पार करेगा।

मोटरेाम यह तो बडे अफसोस की बात होगी िक ऐसे उपकारी पुरष के लडके-बाले दु: ख भोगे।

सुवामा- ईशर की यही इचछा है, तो िकसी का कया बस?मोटरेाम-भला, मै एक यिुकत बता दूं िक साप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।सुवामा- हा, बतलाइए बडा उपकार होगा।मोटरेाम- पहले तो एक दरखवासत िलखवाकर कलकटर सािहब को दे दो

िक मालगुलारी माफ की जाये। बाकी रपये का बनदोबसत हमारे ऊपर छोड दो। हम जो चाहेगे करेगे, परनतु इलाके पर आंच ना आने पायेगी।सुवामा- कुछ पकट भी तो हो, आप इतने रपये कहा से लायेगी?मोटरेाम- तुमहारे िलए रपये की कया कमी है? मुंशी जी के नाम पर िबना िलखा- पढी क े

पचास हजार रपये का बनदोसत हो जाना कोई बडी बात नही है। सच तो यह है िक रपया रखा हुआ ह,ै ‘ ’ तुमहारे मुंह से हा िनकलने की दरेी है।

सुवामा- नगर के भद- पुरषो ने एकत िकया होगा?मोटरेाम- हा, बात-की- बात मे रपया एकत हो गया। साहब का इशारा बहुत था।सुवामा-कर- मुिकत के िलए पाथरना- पञ मुझसे न िलखवाया जाएगा और मै अपने सवामी

के नाम ऋण ही लनेा चाहती हूं। मै सबका एक- एक पैसा अपने गावो ही से चुका दूंगी। यह कहकर सवुामा ने रखाई से मुंह फेर िलया और उसके पीले तथा शोकािनवत बदन

पर कोध- सा झलकने लगा। मोटरेाम ने देखा िक बात िबगडना चाहती है, तो संभलकर बोले- अचछा, जैसे तुमहारी इचछा। इसमे कोई जबरदसती नही है। मगर यिद हमने तुमको िकसी

पकार का दु: ख उठाते देखा, तो उस िदन पलय हो जायेगा। बस, इतना समझ लो।सुवामा- तो आप कया यह चाहते है िक मै अपने पित के नाम पर दसूरो की कृतजता का

भार रखूं? मै इसी घर मे जल मरंगी, अनशन करत-े करते मर जाऊंगी, पर िकसी की उपकृत न बनूंगी।

मोटरेाम-िछ:िछ: । तुमहारे ऊपर िनहोरा कौन कर सकता है? कैसी बात मुख से िनकालती है? ऋण लेने मे कोई लाज नही है। कौन रईस है िजस पर लाख दो- लाख का ऋण

न हो?सुवामा- मुझे िवशास नही होता िक इस ऋण मे िनहोरा है।मोटरेाम- सवुामा, तुमहारी बुिद कहा गयी? भला, सब पकार के दु: ख उठा लोगी पर कया

तुमहे इस बालक पर दया नही आती? मोटरेाम की यह चोट बहुत कडी लगी। सुवामा सजलनयना हो गई। उसने पुत की

ओर करणा- भरी दृिष से देखा। इस बचचे के िलए मैने कौन- कौन सी तपसया नही की? कया उसके भागय मे दु: ख ही बदा है। जो अमोला जलवायु के पखर झोको से बचाता जाता था,

िजस पर सयूर की पचणड िकरणे न पडने पाती थी, जो सनेह- सुधा से अभी िसंिचत रहता था, कया वह आज इस जलती हुई धपू और इस आग की लपट मे मुरझायेगा? सुवामा कई िमनट तक इसी िचनता मे बैठी रही। मोटरेाम मन-ही- मन पसन हो रहे थे िक अब सफलीभतू हुआ। इतने मे सुवामा ने िसर उठाकर कहा- िजसके िपता ने लाखो को िजलाया-िखलाया, वह दसूरो

का आिशत नही बन सकता। यिद िपता का धमर उसका सहायक होगा, तो सवयं दस को

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‘ िखलाकर खायेगा। लडके को बलुाते हुए बटेा। तिनक यहा आओ। कल से तुमहारी िमठाई, दधू, घी सब बनद हो जायेगे। रोओगे तो नही?’ यह कहकर उसने बटेे को पयार से बैठा िलया

और उसके गुलाबी गालो का पसीना पोछकर चुमबन कर िलया।पताप- कया कहा? कल से िमठाई बनद होगी? कयो कया हलवाई की दुकान पर िमठाई

नही ह?ैसुवामा- िमठाई तो ह,ै पर उसका रपया कौन देगा?पताप- हम बडे होगे, तो उसको बहुत- सा रपया देगे। चल, टख। टख। देख मा,

कैसा तेज घोडा है। ‘ सुवामा की आंखो मे िफर जल भर आया। हा हनत। इस सौनदयर और सुकुमारता की

मूितर पर अभी से दिरदता की आपितया आ जायेगी। नही नही, मै सवयं सब भोग लूंगी। परनतु अपने पाण- पयारे बचचे के ऊपर आपित ’ की परछाही तक न आने दूंगी। माता तो यह सोच रही

थी और पताप अपने हठी और मुंहजोर घोडे पर चढने मे पणूर शिकत से लीन हो रहा था। बचचे मन के राजा होते है।

अिभपाय यह िक मोटेराम ने बहुत जाल फैलाया। िविवध पकार का वाकचातुयर िदखलाया, ‘ ‘ ’ परनतु सुवामा ने एक बार नही करके हा न की। उसकी इस आतमरका का

समाचार िजसने सुना, धनय- धनय कहा। लोगो के मन मे उसकी पितषा दनूी हो गयी। उसने वही िकया, जो ऐसे संतोषपणूर और उदार- हृदय मनुषय की सती को करना उिचत था।

इसके पनदहवे िदन इलाका नीलामा पर चढा। पचास सहस रपये पापत हुए कुल ऋण चुका िदया गया। घर का अनावशयक सामान बचे िदया गया। मकान मे भी सुवामा ने भीतर से

ऊंची- ऊंची दीवारे िखचंवा कर दो अलग- अलग खणड कर िदये। एक मे आप रहने लगी और दसूरा भाडे पर उठा िदया।

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3पपप पपपपपपपपप पप पपप-पपप

मुंशी संजीवनलाल, िजनहोने सवुाम का घर भाडे पर िलया था, बडे िवचारशील मनषुय थे। पहले एक पितिषत पद पर िनयुकत थे, िकनतु अपनी सवततं इचछा के कारण अफसरो

को पसन न रख सके। यहा तक िक उनकी रषता से िववश होकर इसतीफा दे िदया। नौकर के समय मे कुछ पूंजी एकत कर ली थी, इसिलए नौकरी छोडते ही वे ठेकेदारी की ओर पवृत हुए और उनहोने पिरशम दारा अलपकाल मे ही अचछी समपित बना ली। इस समय उनकी आय चार- पाच सौ मािसक से कम न थी। उनहोने कुछ ऐसी अनुभवशािलनी बिुद पायी थी िक िजस कायर मे हाथ डालत,े उसमे लाभ छोड हािन न होती थी।

मुंशी संजीवनलाल का कुटुमब बडा न था। सनताने तो ईशर ने कई दी, पर इस समय माता- िपता के नयनो की पुतली केवल एक पुञी ही थी। उसका नाम वृजरानी था। वही

दमपित का जीवनाशाम थी। पतापचनद और वृजरानी मे पहले ही िदन से मैती आरभं हा गयी। आधे घटंे मे दोनो

िचिडयो की भाित चहकने लगे। िवरजन ने अपनी गुिडया, िखलौने और बाजे िदखाय,े पतापचनद ने अपनी िकताबे, लेखनी और िचत िदखाये। िवरजन की माता सुशीला ने पतापचनद

को गोद मे ले िलया और पयार िकया। उस िदन से वह िनतय संधया को आता और दोनो साथ- साथ खेलते। ऐसा पतीत होता था िक दोनो भाई- बिहन है। सुशीला दोनो बालको को गोद मे बैठाती और पयार करती। घटंो टकटकी लगाये दोनो बचचो को देखा करती, िवरजन भी कभी-

कभी पताप के घर जाती। िवपित की मारी सुवामा उसे देखकर अपना दु : ख भलू जाती, छाती से लगा लेती और उसकी भोली- भाली बाते सुनकर अपना मन बहलाती।

एक िदन मुंशी संजीवनलाल बाहर से आये तो कया देखते है िक पताप और िवरजन दोनो दफतर मे कुिसरयो पर बैठे है। पताप कोई पुसतक पढ रहा है और िवरजन धयान लगाये सुन रही है। दोनो ने जयो ही मुंशीजी को देखा उठ खडे हुए। िवरजन तो दौडकर िपता की गोद मे जा बैठी और पताप िसर नीचा करके एक ओर खडा हो गया। कैसा गुणवान बालक था। आयु अभी आठ वषर से अिधक न थी, परनतु लकण से भावी पितभा झलक रही थी। िदवय

मुखमणडल, पतले- पतले लाल- लाल अधर, तीवर िचतवन, काले- काले भमर के समान बाल उस पर सवचछ कपडे मुंशी जी ने कहा- यहा आओ, पताप।

पताप धीरे- धीरे कछु िहचिकचाता- सकुचाता समीप आया। मुंशी जी ने िपतृवत् पेम से उसे गोद मे बैठा िलया और पछूा- तुम अभी कौन- सी िकताब पढ रहे थे।

पताप बोलने ही को था िक िवरजन बोल उठी- बाबा। अचछी- अचछी कहािनया थी। कयो बाबा। कया पहले िचिडया भी हमारी भाित बोला करती थी।

मुंशी जी मुसकराकर बोले- हा। वे खबू बोलती थी। अभी उनके मुंह से परूी बात भी न िनकलने पायी थी िक पताप िजसका संकोच अब

गायब हो चला था, बोला- नही िवरजन तुमहे भलुाते है ये कहािनया बनायी हईु है। मुंशी जी इस िनभीकतापणूर खणडन पर खबू हसंे। अब तो पताप तोते की भाित चहकने लगा- सकूल इतना बडा है िक नगर भर के लोग

उसमे बैठ जाये। दीवारे इतनी ऊंची है, जैसे ताड। बलदवे पसाद ने जो गेद मे िहट लगायी, तो वह आकाश मे चला गया। बडे मासटर साहब की मेज पर हरी- हरी बनात िबछी हईु है। उस पर फूलो से भरे िगलास रखे है। गंगाजी का पानी नीला है। ऐसे जोर से बहता है िक बीच मे पहाड भी हो तो बह जाये। वहा एक साधु बाबा है। रेल दौडती है सन- सन। उसका इिंजन बोलता है झक- झक। इिंजन मे भाप होती है, उसी के जोर से गाडी चलती है। गाडी

के साथ पडे भी दौडते िदखायी देते है।

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इस भाित िकतनी ही बाते पताप ने अपनी भोली- भाली बोली मे कही िवरजन िचत की भाित चुपचाप बैठी सुन रही थी। रले पर वह भी दो- तीन बार सवार हुई थी। परनतु उसे आज तक यह जात न था िक उसे िकसने बनाया और वह कयो कर चलती है। दो बार उसने गुरजी

से यह पश िकया भी था परनतु उनहोने यही कह कर टाल िदया िक बचचा, ईशर की मिहमा कोई बडा भारी और बलवान घोडा है, जो इतनी गािडयो को सन- सन खीचे। िलए जाता है। जब पताप चपु हुआ तो िवरजन ने िपता के गले हाथ डालकर कहा- बाबा। हम

भी पताप की िकताब पढेगे।मुंशी-बेटी, तुम तो संसकृत पढती हो, यह तो भाषा है।िवरजन- तो मै भी भाषा ही पढंूगी। इसमे कैसी अचछी- अचछी कहािनया है। मेरी िकताब

मे तो भी कहानी नही। कयो बाबा, पढना िकसे कहते है ? मुंशी जी बगंले झाकने लगे। उनहोने आज तक आप ही कभी धयान नही िदया था िक

पढना कया वसतु है। अभी वे माथ ही खुजला रहे थे िक पताप बोल उठा- मुझे पढते देखा, उसी को पढना कहते है।

िवरजन- कया मै नही पढती? मेरे पढने को पढना नही कहते? िवरजन िसदानत कौमुदी पढ रही थी, पताप ने कहा- तुम तोते की भाित रटती हो।

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4पपपप पप पपपपपपप पपपपप पपपप पप

कुछ काल से सुवामा ने दवयाभाव के कारण महारािजन, कहार और दो महिरयो को जवाब दे िदया था कयोिक अब न तो उसकी कोई आवशयकता थी और न उनका वयय ही संभाले संभलता था। कवेल एक बुिढया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर का काम- काज वह करती रसोई सुवामा सवयं बना लेगी। परनतु उस बचेारी को ऐसे किठन पिरशम का अभयास

तो कभी था नही, थोडे ही िदनो मे उसे थकान के कारण रात को कछु जवर रहने लगा। धीरे- धीरे यह गित हुई िक जब देखे जवर िवदमान है। शरीर भुना जाता है, न खाने की इचछा है न पीने की। िकसी कायर मे मन नही लगता। पर यह है िक सदैव िनयम के अनुसार काम िकये जाती है। जब तक पताप घर रहता है तब तक वह मुखाकृित को तिनक भी मिलन नही होने

देती परनतु जयो ही वह सकूल चला जाता है, तयो ही वह चदर ओढकर पडी रहती है और िदन- भर पड-े पडे कराहा करती है।

पताप बुिदमान लडका था। माता की दशा पितिदन िबगडती हुई देखकर ताड गया िक यह बीमार है। एक िदन सकूल से लौटा तो सीधा अपने घर गया। बेटे को देखते ही सुवामा ने उठ बैठने का पयत िकया पर िनबरलता के कारण मूछा आ गयी और हाथ- पाव अकड गये। पताप ने उसं संभाला और उसकी और भतसरना की दृिष से देखकर कहा- अममा तुम आजकल बीमार हो कया? इतनी दबुली कयो हो गयी हो? देखो, तुमहारा शरीर िकतना गमर है। हाथ नही

रखा जाता। सुवाम ने हसंने का उदोग िकया। अपनी बीमारी का पिरचय देकर बेटे को कैसे कष

द?े यह िन: सपृह और िन: सवाथर पेम की पराकाषा है। सवर को हलका करके बोली नही बटेा बीमार तो नही हूं। आज कुछ जवर हो आया था, संधया तक चंगी हो जाऊंगी। आलमारी मे हलवुा रखा हुआ है िनकाल लो। नही, तुम आओ बैठो, मै ही िनकाल देती हूं।पताप-माता, तुम मुझ से बहाना करती हो। तुम अवशय बीमार हो। एक िदन मे कोई

इतना दुबरल हो जाता ह?ैसुवाता- (हसंकर) कया तुमहारे देखने मे मै दबुली हो गयी हूं।पताप- मै डॉकटर साहब के पास जाता हूं।सुवामा- ( पताप का हाथ पकडकर) तुम कया जानो िक वे कहा रहते है?ताप- पछूत-े पछूते चला जाऊंगा।

सुवामा कुछ और कहना चाहती थी िक उसे िफर चकर आ गया। उसकी आंखे पथरा गयी। पताप उसकी यह दशा देखते ही डर गया। उससे और कुछ तो न हो सका, वह दौडकर िवरजन के दार पर आया और खडा होकर रोने लगा।

पितिदन वह इस समय तक िवरजन के घर पहुंच जाता था। आज जो देर हुई तो वह अकुलायी हुई इधर- उधर देख रही थी। अकसमात दार पर झाकने आयी, तो पताप को दोनो

हाथो से मुख ढाके हुए देखा। पहले तो समझी िक इसने हसंी से मुख िछपा रखा है। जब उसने हाथ हटाये तो आंसू दीख पडे। चौककर बोली- लललू कयो रोते हो? बता दो।

पताप ने कुछ उतर न िदया, वरन् और िससकने लगा। िवरजन बोली- न बताओगे! कया चाची ने कछु कहा ? जाओ, तुम चुप नही होते।

पताप ने कहा- नही, िवरजन, मा बहुत बीमार है। यह सुनते ही वृजरानी दौडी और एक सास मे सुवामा के िसरहाने जा खडी हईु। देखा

तो वह सुन पडी हुई है, आंखे मुंद हईु है और लमबी सासे ले रही है। उनका हाथ थाम कर िवरजन िझझंोडने लगी- चाची, कैसी जी ह,ै आंखे खोलो, कैसा जी ह?ै

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परनतु चाची ने आंखे न खोली। तब वह ताक पर से तेल उतारकर सुवाम के िसर पर धीर-े धीरे मलने लगी। उस बेचारी को िसर मे महीनो से तेल डालने का अवसर न िमला था,

ठणडक पहुंची तो आंखे खुल गयी।िवरजन- चाची, कैसा जी ह?ै कही ददर तो नही है?सुवामा- नही, बेटी ददर कही नही है। अब मै िबलकलु अचछी हूं। भयैा कहा है?िवरजन- वह तो मरे घर ह,ै बहुत रो रहे है।सुवामा- तुम जाओ, उसके साथ खेलो, अब मै िबलकुल अचछी हूं।

अभी ये बाते हो रही थी िक सुशीला का भी शुभागमन हुआ। उसे सुवाम से िमलने की तो बहुत िदनो से उतकषा थी, परनतु कोई अवसर न िमलता था। इस समय वह सातवना देने के बहाने आ पहुंची।िवरजन ने अपन माता को देखा तो उछल पडी और ताली बजा-बजाकर

कहने लगी- मा आयी, मा आयी। दोनो सतीयो मे िशषाचार की बाते होने लगी। बातो- बातो मे दीपक जल उठा। िकसी

को धयान भी न हुआिक पताप कहा है। थोड देर तक तो वह दार पर खडा रोता रहा,िफर झटपट आंखे पोछकर डॉकटर िकचलू के घर की ओर लपकता हुआ चला। डॉकटर साहब

मुंशी शािलगाम के िमञो मे से थे। और जब कभी का पडता, तो वे ही बुलाये जाते थे। पताप को केवल इतना िविदत था िक वे बरना नदी के िकनारे लाल बगंल मे रहते है। उसे अब तक अपने मुहलले से बाहर िनकलने का कभी अवसर न पडा था। परनतु उस समय मातृ

भकती के वेग से उिदगन होने के कारण उसे इन रकावटो का कुछ भी धयान न हुआ। घर से िनकलकर बाजार मे आया और एक इकेवान से बोला- लाल बगंल चलोगे? लाल बगंला पसाद

सथान था। इकावान तयैार हो गया। आठ बजते- बजते डॉकटर साहब की िफटन सुवामा के दार पर आ पहंुची। यहा इस समय चारो ओर उसकी खोज हो रही थी िक अचानक वह सवेग पैर बढाता हुआ भीतर गया और बोला- पदा करो। डॉकटर साहब आते है।

सुवामा और सुशीला दोनो चौक पडी। समझ गयी, यह डॉकटर साहब को बुलाने गया था। सुवामा ने पेमािधकय से उसे गोदी मे बैठा िलया डर नही लगा? हमको बताया भी नही यो

ही चले गये? तुम खो जाते तो मै कया करती? ऐसा लाल कहा पाती? यह कहकर उसने बटे े को बार- बार चमू िलया। पताप इतना पसन था, मानो परीका मे उतीणर हो गया। थोडी दरे मे पदा हुआ और डॉकटर साहब आये। उनहोने सुवामा की नाडी देखी और सातवना दी। वे पताप को गोद मे बैठाकर बाते करते रहे। औषिधयॉ साथ ले आये थे। उसे िपलाने की सममित

देकर नौ बजे बगंले को लौट गये। परनतु जीणरजवर था, अतएव परूे मास- भर सवुामा को कडवी- कडवी औषिधया खानी पडी। डॉकटर साहब दोनो वकत आते और ऐसी कृपा और धयान रखत,े मानो सवुामा उनकी बिहन है। एक बार सवुाम ने डरते- डरते फीस के रपये एक पात मे

रखकर सामने रखे। पर डॉकटर साहब ने उनहे हाथ तक न लगाया। केवल इतना कहा-इनहे मेरी ओर से पताप को दे दीिजएगा, वह पैदल सकूल जाता ह,ै परैगाडी मोल ले लेगा।

िवरजन और उनकी माता दोनो सवुामा की शुशषूा के िलए उपिसथत रहती। माता चाहे िवलमब भी कर जाए, परनतु िवरजन वहा से एक कण के िलए भी न टलती। दवा िपलाती, पान

देती जब सवुामा का जी अचछा होता तो वह भोली- भोली बातो दारा उसका मन बहलाती। खेलना- कूदना सब छूट गया। जब सुवाम बहुत हठ करती तो पताप के संग बाग मे खेलने

चली जाती। दीपक जलते ही िफर आ बैठती और जब तक िनदा के मारे झकु- झुक न पडती, वहा से उठने का नाम न लेती वरन पाय: वही सो जाती, रात को नौकर गोद मे उठाकर घर ले

जाता। न जाने उसे कौन- सी धुन सवार हो गयी थी। एक िदन वृजरानी सवुामा के िसरहाने बैठी पखंा झल रही थी। न जाने िकस धयान मे

मगन थी। आंखे दीवार की ओर लगी हुई थी। और िजस पकार वृको पर कौमुदी लहराती है, उसी भाित भीनी- भीनी मुसकान उसके अधरो पर लहरा रही थी। उसे कछु भी धयान न था िक चाची मेरी और देख रही है। अचानक उसके हाथ से पखंा छूट गया। जयो ही वह उसको

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उठाने के िलए झुकी िक सुवामा ने उसे गले लगा िलया। और पचुकार कर पछूा-िवरजन, सतय कहो, तुम अभी कया सोच रही थी?

िवरजन ने माथा झुका िलया और कुछ लिजजत होकर कहा- कुछ नही, तुमको न बतलाऊंगी।

सवूामा- मेरी अचछी िवरजन। बता तो कया सोचती थी?िवरजन-( लजाते हुए) सोचती थी िक..... जाओ हसंो मत...... न बतलाऊंगी।सुवामा- अचछा ले, न हसूंगी, बताओ। ले यही तो अब अचछा नही लगता, िफर मै आंखे

मंूद लूंगी।िवरजन- िकस से कहोगी तो नही?सुवामा- नही, िकसी से न कहूंगी।िवरजन- सोचती थी िक जब पताप से मेरा िववाह हो जायेगा, तब बडे आननद से रहूंगी।

सुवामा ने उसे छाती से लगा िलया और कहा- बटेी, वह तो तेरा भाई हे।िवरजन- हा भाई है। मै जान गई। तुम मुझे बहू न बनाओगी।सुवामा- आज लललू को आने दो, उससे पछूूँ देखूं कया कहता ह?ैिवरजन- नही, नही, उनसे न कहना मै तुमहारे पैरो पडूं।सुवामा- मै तो कह दूंगी।िवरजन- तुमहे हमारी कसम, उनसे न कहना।

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5पपपपप-पपपप पप पपपपप

िदन जाते देर नही लगती। दो वषर वयतीत हो गये। पिणडत मोटरेाम िनतय पात: काल आत और िसदानत- कोमुदी पढाते, परनत अब उनका आना कवेल िनयम पालने के हेतु ही था,

कयोिक इस पुसतक के पढन मे अब िवरजन का जी न लगता था। एक िदन मुंशी जी इजंीिनयर के दफतर से आये। कमरे मे बैठे थे। नौकर जूत का फीता खोल रहा था िक

रिधया महर मुसकराती हुई घर मे से िनकली और उनके हाथ मे मुह छाप लगा हुआ िलफाफा रख, मुंह फेर हसंने लगी। िसरना पर िलखा हुआ था- शीमान बाबा साह की सेवा मे पापत हो।

मुंशी-अर,े तू िकसका िलफाफा ले आयी ? यह मरे नही है।महरी- सरकार ही का तो ह,ै खोले तो आप।मुंशी- िकसने हुई बोली- आप खालेगे तो पता चल जायेगा।

मुंशी जी ने िविसमत होकर िलफाफा खोला। उसमे से जो पञ- िनकला उसमे यह िलखा हुआ था-

बाबा को िवरजन क पमाण और पालागन पहुंचे। यहा आपकी कपृा से कुशल- मंगल ह ै आपका कुशल शी िवशनाथजी से सदा मनाया करती हूं। मैने पताप से भाषा सीख ली। वे

सकूल से आकर संधया को मुझे िनतय पढाते है। अब आप हमारे िलए अचछी- अचछी पुसतके लाइए, कयोिक पढना ही जी का सुख है और िवदा अमूलय वसतु है। वेद- पुराण मे इसका

महातमय िलखा है। मनषुय को चािहए िक िवदा- धन तन- मन से एकञ करे। िवदा से सब दुख हो जाते है। मैने कल बैताल- पचीस की कहानी चाची को सुनायी थी। उनहोने मुझे एक सुनदर गुिडया पुरसकार मे दी है। बहुत अचछी है। मै उसका िववाह करंगी, तब आपसे रपय े लूंगी। मै अब पिणडतजी से न पढूंगी। मा नही जानती िक मै भाषा पढती हूं।

आपकी पयारीिवरजन

पशिसत देखते ही मुंशी जी के अनत: करण मे गुदगुद होने लगी।िफर तो उनहोने एक ही सास मे भारी िचटठी पढ डाली। मारे आननद के हसंते हुए नगंे- पाव भीतर दौडे। पताप को गोद मे उठा िलया और िफर दोनो बचचो का हाथ पकडे हुए सुशीला के पास गये। उसे िचटठी

िदखाकर कहा- बझूो िकसी िचटी है?सुशीला-लाओ, हाथ मे दो, देखूं।

मुंशी जी-नही, वही से बैठी- बैठी बताओ जलदी।सुशीला- बझू् जाऊं तो कया दोगे?

मुंशी जी- पचास रपये, दधू के धोये हुए।सुशीला- पिहले रपये िनकालकर रख दो, नही तो मुकर जाओगे।

मुंशी जी- मुकरने वाले को कुछ कहता हूं, अभी रपये लो। ऐसा कोई टुटपुँिजया समझ िलया है ?

यह कहकर दस रपये का एक नोट जेसे िनकालकर िदखाया।सुशीला- िकतने का नोट ह?ैमुंशीजी- पचास रपये का, हाथ से लेकर देख लो।सुशीला- ले लूंगी, कहे देती हूं।मुंशीजी- हा-हा, ले लेना, पहले बता तो सही।सुशीला- लललू का है लाइये नोट, अब मै न मानूंगी। यह कहकर उठी और मुंशीजी का

हाथ थाम िलया।मुंशीजी- ऐसा कया डकैती ह?ै नोट छीने लेती हो।

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सुशीला- वचन नही िदया था? अभी से िवचलने लगे।मुंशीजी- तुमने बझूा भी, सवरथा भम मे पड गयी।सुशीला- चलो-चलो, बहाना करते हो, नोट हडपन की इचछा है। कयो लललू, तुमहारी ही

िचटी है न? पताप नीची दृिष से मुंशीजी की ओर देखकर धीर-े से बोला- मैने कहा िलखी?

मुंशीजी- लजाओ, लजाओ।सुशीला- वह झठू बोलता है। उसी की िचटी ह,ै तुम लोग गँठकर आये हो।पताप- मेरी िचटी नही ह,ै सच। िवरजन ने िलखी है।

सुशीला चिकत होकर बोली- िवजरन की? िफर उसने दौडकर पित के हाथ से िचटी छीन ली और भौचकी होकर उसे देखने लगी, परनतु अब भी िवशास आया।िवरजन से पछूा-

कये बेटी, यह तुमहारी िलखी ह?ै िवरजन ने िसर झुकाकर कहा-हा।

यह सुनते ही माता ने उसे कष से लगा िलया। अब आज से िवरजन की यह दशा हो गयी िक जब देिखए लेखनी िलए हुए पने काले

कर रही है। घर के धनधो से तो उस पहले ही कछु पयोज न था, िलखने का आना सोने मे सोहागा हो गया। माता उसकी तललीनता देख- देखकर पमुिदत होती िपता हषर से फूला न

समाता, िनतय नवीन पसुतके लाता िक िवरजन सयानी होगी, तो पढेगी। यिद कभी वह अपने पाव धो लेती, या भोजन करके अपने ही हाथ धोने लगती तो माता महिरयो पर बहुत कुद

होती- आंखे फूट गयी है। चबी छा गई है। वह अपने हाथ से पानी उंडले रही है और तुम खडी मुंह ताकती हो।

इसी पकार काल बीतता चला गया, िवरजन का बारहवा वषर पणूर हुआ, परनतु अभी तक उसे चावल उबालना तक न आता था। चलूे के सामने बैठन का कभी अवसर ही न आया।

सुवामा ने एक िदन उसकी माता ने कहा- बिहन िवरजन सयानी हुई, कया कुछ गुन-ढंग िसखाओगी।

सुशीला- कया कहूं, जी तो चाहता है िक लगगा लगाऊं परनतु कुछ सोचकर रक जाती हूं।

सुवामा- कया सोचकर रक जाती हो ?सुशीला- कुछ नही आलस आ जाता है।सुवामा- तो यह काम मुझे सौप दो। भोजन बनाना स्ितयो के िलए सबसे आवशयक बात

है।सुशीला- अभी चलूे के सामन उससे बैठा न जायेगा।सुवामा- काम करने से ही आता है।सुशीला-( झेपते हुए) फूल- से गाल कुमहला जायेगे।सुवामा- (हसंकर) िबना फूल के मुरझाये कही फल लगते है?

दसूरे िदन से िवरजन भोजन बनाने लगी। पहले दस- पाच िदन उसे चलूे के सामने बैठने मे बडा कष हुआ। आग न जलती, फूंकने लगती तो नेञो से जल बहता। वे बटूी की भाित लाल हो जाते। िचनगािरयो से कई रेशमी सािडया सतयानाथ हो गयी। हाथो मे छाले

पड गये। परनतु कमश: सारे कलेश दरू हो गये। सवुामा ऐसी सुशीला सञी थी िक कभी रष न होती, पितिदन उसे पुचकारकर काम मे लगाय रहती।

अभी िवरजन को भोजन बनाते दो मास से अिधक न हुए होगे िक एक िदन उसने पताप से कहा- लललू, मुझे भोजन बनाना आ गया।

पताप-सच।िवरजन- कल चाची ने मेर बनाया भोजन िकया था। बहुत पसन।पताप- तो भई, एक िदन मुझे भी नेवता दो।

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िवरजन ने पसन होकर कहा-अचछा,कल। दसूरे िदन नौ बजे िवरजन ने पताप को भोजन करने के िलए बुलाया। उसने जाकर

देखा तो चौका लगा हुआ है। नवीन िमटी की मीटी- मीठी सुगनध आ रही है। आसन सवचछता से िबछा हुआ है। एक थाली मे चावल और चपाितया है। दाल और तरकािरयॉँ अलग-अलग

कटोिरयो मे रखी हुई है। लोटा और िगलास पानी से भरे हुए रखे है। यह सवचछता और ढंग देखकर पताप सीधा मुंशी संजीवनलाल के पास गया और उनहे लाकर चौके के सामने खडा

कर िदया। मुंशीजी खुशी से उछल पडे। चट कपडे उतार, हाथ- पैर धो पताप के साथ चौके मे जा बैठे। बचेारी िवरजन कया जानती थी िक महाशय भी िबना बलुाये पाहुने हो जायेगे।

उसने केवल पताप के िलए भोजन बनाया था। वह उस िदन बहुत लजायी और दबी ऑंखो से माता की ओर देखने लगी। सुशीला ताड गयी। मुसकराकर मुंशीजी से बोली- तुमहारे िलए अलग भोजन बना है। लडको के बीच मे कया जाके कूद पड?े

वृजरानी ने लजाते हुए दो थािलयो मे थोडा- थोडा भोजन परोसा।मुंशीजी- िवरजन ने चपाितया अचछी बनायी है। नमर, शेत और मीठी।पताप- मैने ऐसी चपाितयॉँ कभी नही खायी। सालन बहुत सवािदष है।‘ िवरजन ! चाचा को शोरवेदार आलू दो,’ यह कहकर पताप हँने लगा। िवरजन ने लजाकर िसर नीचे कर िलया। पतीली शुषक हो रही थी।सुशीली-( पित से) अब उठोगे भी, सारी रसोई चट कर गये, तो भी अडे बैठे हो! मुंशीजी- कया तुमहारी राल टपक रही ह?ै

िनदान दोनो रसोई की इितशी करके उठे। मुंशीजी ने उसी समय एक मोहर िनकालकर िवरजन को परुसकार मे दी।

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6पपपपपप पपपपपपपपप

िडपटी शयामाचरण की धाक सारे नगर मे छायी हई थी। नगर मे कोई ऐसा हािकम न था िजसकी लोग इतनी पितषा करते हो। इसका कारण कुछ तो यह था िक वे सवभाव के

िमलनसार और सहनशील थे और कुछ यह िक िरशत से उनहे बडी घृणा थी। नयाय-िवचार ऐसी सकूमता से करते थे िक दस- बाहर वषर के भीतर कदािचत उनके दो- ही चार फैसलो की

अपील हुई होगी। अंगेजी का एक अकर न जानते थे, परनतु बैरिसटरो और वकीलो को भी उनकी नैितक पहुंच और सकूमदिशरता पर आशयर होता था। सवभाव मे सवाधीनता कूट-कूट

भरी थी। घर और नयायालय के अितिरकत िकसी ने उनहे और कही आते- जाते नही देखा। मुशी शािलगाम जब तक जीिवत थे, या यो किहए िक वतरमान थे, तब तक कभी-कभी

िचतिवनोदाथर उनके यह चले जाते थे। जब वे लपत हो गये, िडपटी साहब ने घर छोडकर िहलने की शपथ कर ली। कई वषर हुए एक बार कलकटर साहब को सलाम करने गये थे

खानसामा ने कहा- साहब सनान कर रहे है दो घटंे तक बरामदे मे एक मोढे पर बैठे पतीका करते रहे। तदननतर साहब बहादरु हाथ मे एक टिेनस बैट िलये हुए िनकले और बोले-बाब ू

साहब, हमको खेद है िक आपको हामारी बाट देखनी पडी। मुझे आज अवकाश नही है। कलब- घर जाना है। आप िफर कभी आवे।

यह सुनकर उनहोने साहब बहादरु को सलाम िकया और इतनी- सी बात पर िफर िकसी अंगेजी की भटे को न गये। वशं, पितषा और आतम- गौरव पर उनहे बडा अिभमान था। वे बडे

ही रिसक पुरष थे। उनकी बाते हासय से पणूर होती थी। संधया के समय जब वे कितपय िविशष िमतो के साथ दारागण मे बैठत,े तो उनके उचच हासय की गूंजती हईु पितधविन वािटका

से सुनायी देती थी। नौकरो- चाकरो से वे बहुत सरल वयवहार रखते थे, यहा तक िक उनके संग अलाव के बेठने मे भी उनको कछु संकोच न था। परनतु उनकी धाक ऐसी छाई हईु थी िक उनकी इस सजनता से िकसी को अनिूचत लाभ उठाने का साहस न होता था। चाल-ढाल

सामानय रखते थे। कोअ- पतलनू से उनहे घृणा थी। बटनदार ऊंची अचकयन, उस पर एक रेशमी काम की अबा, काला िशमला, ढीला पाजामा और िदललीवाला नोकदार जूता उनकी मुखय पोशाक थी। उनके दहुरे शरीर, गुलाबी चहेरे और मधयम डील पर िजतनी यह पोशाक शोभा

देती थी, उनकी कोट- पतलनूसे समभव न थी। यदिप उनकी धाक सारे नगर- भर मे फलैी हई थी, तथािप अपने घर के मणडलानतगतर उनकी एक न चलती थी। यहा उनकी सयुोगय

अदािगनी का सामाजय था। वे अपने अिधकृत पानत मे सवचछनदतापवूरक शासन करती थी। कई वषर वयतीत हुए िडपटी साहब ने उनकी इचछा के िवरद एक महरािजन नौकर रख ली थी।

महरािजन कछु रगंीली थी। पेमवती अपने पित की इस अनुिचत कृित पर ऐसी रष हुई िक कई सपताह तक कोपभवन मे बैठी रही। िनदान िववश होकर साहब ने महरािजन को िवदा कर

िदया। तब से उनहे िफर कभी गृहसथी के वयवहार मे हसतकेप करने का साहस न हुआ। मुंशीजी के दो बटेे और एक बेटी थी। बडा लडका साधाचरण गत वषर िडगी पापत

करके इस समय रडकी कालेज मे पढाता था। उसका िववाह फतहपुयर- सीकरी के एक रईस के यहा हआ था। मंझली लडकी का नाम सवेती था। उसका भी िववाह पयाग के एक धनी घराने मे हुआ था। छोटा लडका कमलाचरण अभी तक अिववािहत था। पेमवती ने

बचपन से ही लाड- पयार करके उसे ऐसा िबगाड िदया था िक उसका मन पढने- िलखने मे तिनक भी नही लगता था। पनदह वषर का हो चकुा था, पर अभी तक सीधा- सा पत भी न

िलख सकता था। इसिलए वहा से भी वह उठा िलया गया। तब एक मासटर साहब िनयुकत हुए और तीन महीने रहे परनतु इतने िदनो मे कमलाचरण ने किठनता से तीन पाठ पढे होगे।

िनदान मासटर साहब भी िवदा हो गये। तब िडपटी साहब ने सवयं पढाना िनिशत िकया। परनतु एक ही सपताह मे उनहे कई बार कमला का िसर िहलाने की आवशयकता पतीत हुई। सािकयो

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के बयान और वकीलो की सकूम आलोचनाओं के ततव को समझना किठन नही है, िजतना िकसी िनरतसाही लडके के यमन मे िशका- रिचत उतपन करना है।

पेमवती ने इस मारधाड पर ऐसा उतपात मचाया िक अनत मे िडपटी साहब ने भी झललाकर पढाना छोड िदया। कमला कुछ ऐसा रपवान, सुकुमार और मधुरभाषी था िक माता

उसे सब लडको से अिधक चाहती थी। इस अनुिचत लाड- पयार ने उसे पतंगं, कबतूरबाजी और इसी पकार के अनय कुवयसनो का पेमी बना िदया था। सबरे हआ और कबतूर उडाय े जाने लगे, बटेरो के जोड छूटने लगे, संधया हई और पतंग के लमबे- लमबे पेच होने लगे। कछु िदनो मे जुए का भी चसका पड चला था। दपणर, कंघी और इत- तले मे तो मानो उसके पाण ही बसते थे।

पेमवती एक िदन सवुामा से िमलने गयी हुई थी। वहा उसने वृजरानी को देखा और उसी िदन से उसका जी ललचाया हआ था िक वह बहू बनकर मरेे घर मे आये, तो घर का भागय जाग उठे। उसने सुशीला पर अपना यह भाव पगट िकया। िवरजन का तरेहॅवा आरमभ

हो चकुा था। पित- पती मे िववाह के समबनध मे बातचीत हो रही थी। पेमवती की इचछा पाकर दोनो फूले न समाये। एक तो पिरिचत पिरवार, दसूरे कलीन लडका, बिूदमान और िशिकत, पैतृक समपित अिधक। यिद इनमे नाता हो जाए तो कया पछूना। चटपट रीित के अनुसार संदेश कहला भेजा।

इस पकार संयोग ने आज उस िवषैले वृक का बीज बोया, िजसने तीन ही वषर मे कुल का सवरनाश कर िदया। भिवषय हमारी दृिष से कैसा गपुत रहता है ?

जयो ही संदेशा पहुंचा, सास, ननद और बहू मे बाते होने लगी।बहू(चनदा)- कयो अममा। कया आप इसी साल बयाह करेगी ?पेमवती- और कया, तुमहारे लालाली के मानने की देर है।बहू- कूछ ितलक- दहेज भी ठहरापेमवती-ितलक- दहेज ऐसी लडिकयो के िलए नही ठहराया जाता।

जब तुला पर लडकी लडके के बराबर नही ठहरती, तभी दहेज का पासंग बनाकर उसे बराबर कर देते है। हमारी वृजरानी कमला से बहुत भारी है।सेवती- कुछ िदनो घर मे खबू धमूधाम रहेगी। भाभी गीत गायेगी। हम ढोल बजायेगे।

कयो भाभी ?चनदा- मुझे नाचना गाना नही आता।

चनदा का सवर कुछ भदा था, जब गाती, सवर- भगं हो जाता था। इसिलए उसे गाने से िचढ थी।

सेवती- यह तो तुम आप ही करो। तुमहारे गाने की तो संसार मे धमू है। चनदा जल गयी, तीखी होकर बोली- िजसे नाच- गाकर दसूरो को लुभाना हो, वह नाचना-

गाना सीखे।सेवती- तुम तो तिनक- — सी हसंी मे रठ जाती हो। जरा वह गीत गाओं तो तुम तो

’ शयाम बडे बेखबर हो । इस समय सुनने को बहुत जी चाहता है। महीनो से तुमहारा गाना नही सुना।चनदा- तुमही गाओ, कोयल की तरह कूकती हो।सेवती-लो, अब तुमहारी यही चाल अचछी नही लगती। मरेी अचछी भाभी, तिनक

गाओं।चनदमा- मै इस समय न गाऊंगी। कयो मुझे कोई डोमनी समझ िलया है ?सेवती- मै तो िबन गीत सुने आज तुमहारा पीछा न छोडूंगी।

सेवती का सवर परम सुरीला और िचताकषरक था। रप और आकृित भी मनोहर, कनुदन वणर और रसीली आंखे। पयाली रगं की साडी उस पर खबू िखल रही थी। वह आप-

ही- आप गनुगुनाने लगी:

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तुम तो शयाम बडे बेखबर हो... तुम तो शयाम। आप तो शयाम पीयो दधू के कुलड, मेरी तो पानी पै गुजर- पानी पै गुजर हो। तुम तो शयाम... दधू के कुलड पर वह हसं पडी। पेमवती भी मुसकरायी, परनतु चनदा रष हो गयी।

– बोली िबना हसंी की हसंी हमे नही आती। इसमे हसंने की कया बात है ?सेवती-आओ, हम तुम िमलकर गाये।चनदा- कोयल और कौए का कया साथ ?सेती- कोध तो तुमहारी नाक पर रहता है।चनदा- तो हमे कयो छडेती हो ? हमे गाना नही आता, तो कोई तुमसे िननदा करने तो नही जाता।‘ ’ कोई का संकेत राधाचरण की ओर था। चनदा मे चाहे और गुण न हो, परनतु पित

की सवेा वह तन- मन से करती थी। उसका तिनक भी िसर धमका िक इसके पाण िनकला। उनको घर आने मे तिनक दरे हुई िक वह वयाकलु होने लगी। जब से वे रडकी चले गये, तब

से चनदा यका हॅसना- बोलना सब छूट गया था। उसका िवनोद उनके संग चला गया था। इनही कारणो से राधाचरण को सती का वशीभतू बना िदया था। पेम, रप-गुण, आिद सब तुिटयो का परूक है।सेवती- िननदा कयो करेगा, ‘ ’ कोई तो तन- मन से तुम पर रीझा हुआ है।चनदा- इधर कई िदनो से िचटी नही आयी।सेवती-तीन- चार िदन हुए होगे।चनदा- तुमसे तो हाथ- पैर जोड कर हार गयी। तुम िलखती ही नही।सेवती- अब वे ही बाते पितिदन कौन िलखे, कोई नयी बात हो तो िलखने को जी भी

चाहे।चनदा- आज िववाह के समाचार िलख दनेा। लाऊं कलम- दवात ?सेवती- परनतु एक शतर पर िलखूंगी।चनदा- बताओं।सेवती- तुमहे शयामवाला गीत गाना पडेगा।चनदा- अचछा गा दूंगी। हॅसने को जी चाहता है न ? हॅस लेना।सेवती- पहले गा दो तो िलखूं।चनदा- न िलखोगी। िफर बाते बनाने लगोगी।सेवती- तुमहारी शपथ, िलख दूंगी, गाओ।

चनदा गाने लगी- तुम तो शयाम बडे बेखबर हो। तुम तो शयाम पीयो दधू के कूलड, मेरी तो पानी पै गुजर पानी पे गुजर हो। तुम तो शयाम बडे बेखबर हो।

अिनतम शबद कछु ऐसे बेसुरे िनकले िक हॅसी को रोकना किठन हो गया। सवेती ने बहुत रोका पर न रक सकी। हॅसत-े हॅसते पटे मे बल पड गया। चनदा ने दसूरा पद गाया:

आप तो शयाम रकखो दो- दो लुगइयॉ, मेरी तो आपी पै नजर आपी पै नजर हो। तुम तो शयाम....‘ ’ लुगइया पर सेवती हॅसत-े हॅसते लोट गयी। चनदा ने सजल नते होकर कहा- अब तो

बहुत हॅस चुकी। लाऊं कागज ?सेवती-नही, नही, अभी तिनक हॅस लेने दो।

सेवती हॅस रही थी िक बाबू कमलाचरण का बाहर से शुभागमन हुआ, पनदह सोलह वषर की आयु थी। गोरा- गोरा गेहुंआ रगं। छरहरा शरीर, हॅसमुख, भडकीले वसतो से शरीर को

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अलंकृत िकय,े इत मे बसे, नतेो मे सुरमा, अधर पर मुसकान और हाथ मे बुलबुल िलये आकर ’चारपाई पर बैठ गये। सवेती बोली - कमल।ू मुंह मीठा कराओं, तो तुमहे ऐसे शुभ समाचार

सुनाये िक सुनते ही फडक उठो।कमला- मुंह तो तुमहारा आज अवशय ही मीठा होगा। चाहे शुभ समाचार सुनाओं, चाहे न सुनाओं। आज इस पठे ने यह िवजय पापत की है िक लोग दगं रह गये।

यह कहकर कमलाचरण ने बलुबुल को अंगठूे पर िबठा िलया।सेवती- मेरी खबर सुनते ही नाचने लगोगे।कमला- तो अचछा है िक आप न सुनाइए। मै तो आज यो ही नाच रहा हूं। इस पठे ने

आज नाक रख ली। सारा नगर दगं रह गया। नवाब मुनेखा बहुत िदनो से मरेी आंखो मे चढे हुए थे। एक पास होता है, मै उधर से िनकला, तो आप कहने लगे-िमयॉ, कोई पठा तैयार हो तो लाओं, दो- दो चौच हो जाये। यह कहकर आपने अपना पुराना बुलबुल िदखाया। मैने कहा-

कृपािनधान। अभी तो नही। परनतु एक मास मे यिद ईशर चाहेगा तो आपसे अवशय एक जोड होगी, और बद- बद कर आज। आगा शेरअली के अखाडे मे बदान ही ठहरी। पचाय-पचास

रपये की बाजी थी। लाखो मनुषय जमा थे। उनका पुराना बुलबलु, िवशास मानो सवेती, कबतूर के बराबर था। परनतु वह भी कवेल फूला हुआ न था। सारे नगर के बुलबलुो को परािजत िकये बैठा था। बलपवूकर लात चलायी। इसने बार- बार नचाया और िफर झपटकर

उसकी चोटी दबायी। उसने िफर चोट की। यह नीचे आया। चतुिदरक कोलाहल मच गया- मार िलया मार िलया। तब तो मुझे भी कोध आया डपटकर जो ललकारता हूं तो यह ऊपर और वह नीचे दबा हआ है। िफर तो उसने िकतना ही िसर पटका िक ऊपर आ जाए, परनतु इस शेयर ने ऐसा दाबा िक िसर न उठाने िदया। नबाब साहब सवयं उपिसथत थे। बहुत

िचललाय,े पर कया हो सकता है ? इसने उसे ऐसा दबोचा था जैसे बाज िचिडया को। आिखर बगटुट भागा। इसने पानी के उस पार तक पीछा िकया, पर न पा सका। लोग िवसमय से दगं

हो गये। नवाब साहब का तो मुख मिलन हो गया। हवाइयॉ उडने लगी। रपये हारने की तो उनहे कुछ िचनंता नही, कयोिक लाखो की आय है। परनतु नगर मे जो उनकी धाक जमी हुई

थी, वह जाती रही। रोते हुए घर को िसधारे। सुनता हूं, यहा से जाते ही उनहोने अपने बुलबुल को जीिवत ही गाड िदया। यह कहकर कमलाचरण ने जबे खनखनायी।

सेवती- तो िफर खडे कया कर रहे हो ? आगरे वाले की दुकान पर आदमी भेजो।कमला- तुमहारे िलए कया लाऊं, भाभी ?सेवती- दधू के कुलड।कमला- और भयैा के िलए ?सेवती-दो- दो लुगइयॉ।

यह कहकर दोनो ठहका मारकर हॅसने लगे।

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7पपपपपपप पप पपपपप

सुवामा तन- मन से िववाह की तयैािरया करने लगी। भोर से संधया तक िववाह के ही धनधो मे उलझी रहती। सुशीला चरेी की भाित उसकी आजा का पालन िकया करती। मुंशी

संजीवनलाल पात: काल से साझ तक हाट की धलू छानते रहते। और िवरजन िजसके िलए यह सब तैयािरया हो रही थी, अपने कमरे मे बैठी हुई रात- िदन रोया करती। िकसी को इतना

अवकाश न था िक कण- भर के िलए उसका मन बहलाये। यहॉ तक िक पताप भी अब उसे िनठरु जान पडता था। पताप का मन भी इन िदनो बहुत ही मिलन हो गया था। सबरेे का

िनकला हुआ सॉझ को घर आता और अपनी मुडंेर पर चपुचाप जा बैठता। िवरजन के घर जाने की तो उसने शपथ- सी कर ली थी। वरन जब कभी वह आती हुई िदखई देती, तो चुपक े

से सरक जाता। यिद कहने- सुनने से बैठता भी तो इस भाित मुख फरे लेता और रखाई का वयवहार करता िक िवरजन रोने लगती और सवुामा से कहती-चाची, लललू मुझसे रष है, मै बुलाती हूं, तो नही बोलते। तुम चलकर मना दो। यह कहकर वह मचल जाती और सुवामा

का ऑचल पकडकर खीचती हुई पताप के घर लाती। परनतु पताप दोनो को देखते ही िनकल भागता। वृजरानी दार तक यह कहती हुई आती िक- लललू तिनक सुन लो, तिनक सुन लो, तुमहे

हमारी शपथ, तिनक सुन लो। पर जब वह न सुनता और न मुंह फेरकर देखता ही तो बेचारी लडकी पृथवी पर बैठ जाती और भली- भॉती फूट- फूटकर रोती और कहती- यह मुझसे कयो रठे

हुए है ? मैने तो इनहे कभी कुछ नही कहा। सवुामा उसे छाती से लगा लेती और समझाती- बटेा। जाने दो, लललू पागल हो गया है। उसे अपने पुत की िनठुरता का भेद कुछ- कुछ जात

हो चला था। िनदान िववाह को केवल पाच िदन रह गये। नातेदार और समबनधी लोग दरू तथा

समीप से आने लगे। ऑगन मे सुनदर मणडप छा गया। हाथ मे कंगन बॅध गये। यह कचचे घागे का कंगन पिवत धमर की हथकडी है, जो कभी हाथ से न िनकलेगी और मंणडप उस पेम और कृपा की छाया का समारक है, जो जीवनपयरनत िसर से न उठेगी। आज संधया को सुवामा,

सुशीला, महारािजने सब-की- सब िमलकर देवी की पजूा करने को गयी। महिरया अपने धधंो मे लगी हुई थी। िवरजन वयाकुल होकर अपने घर मे से िनकली और पताप के घर आ पहुंची।

चतुिदरक सनाटा छाया हुआ था। केवल पताप के कमरे मे धुंधला पकाश झलक रहा था। िवरजन कमरे मे आयी, तो कया देखती है िक मेज पर लालटेन जल रही है और पताप एक चारपाई पर सो रहा है। धुंधले उजाले मे उसका बदन कुमहलाया और मिलन नजर आता है।

वसतुऍ सब इधर- उधर बेढंग पडी हईु है। जमीन पर मानो धलू चढी हईु है। पुसतके फलैी हुई है। ऐसा जान पडता है मानो इस कमरे को िकसी ने महीनो से नही खोला। वही पताप है, जो

सवचछता को पाण- िपय समझता था। िवरजन ने चाहा उसे जगा दूं। पर कुछ सोचकर भिूम से पुसतके उठा- उठा कर आलमारी मे रखने लगी। मेज पर से धलू झाडी, िचतो पर से गदर का

परदा उठा िलया। अचानक पतान ने करवट ली और उनके मुख से यह वाकय िनकला-‘ ’’ िवरजन। मै तुमहे भलू नही सकता । िफर थोडी दरे पशात-‘ ’ िवरजन । कहा जाती हो, यही बैठो ? िफर करवट बदलकर-‘ ’’न बैठोगी ? अचछा जाओं मै भी तुमसे न बोलूंगा। िफर

कुछ ठहरकर- अचछा जाओं, देखे कहा जाती है। यह कहकर वह लपका, जैसे िकसी भागते हुए मनषुय को पकडता हो। िवरजन का हाथ उसके हाथ मे आ गया। उसके साथ ही ऑखे खुल गयी। एक िमनट तक उसकी भाव- शनूय दृिषट िवरजन के मुख की ओर गडी रही। िफर

अचानक उठ बैठा और िवरजन का हाथ छोडकर बोला- तुम कब आयी, िवरजन ? मै अभी तुमहारा ही सवप देख रहा था।

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िवरजन ने बोलना चाहा, परनतु कणठ रंध गया और आंखे भर आयी। पताप ने इधर- उधर देखकर िफर कहा- कया यह सब तुमने साफ िकया ? तुमहे बडा कष हुआ। िवरजन ने इसका भी उतर न िदया।पताप-िवरजन, तुम मुझे भलू कयो नही जाती ?

िवरजन ने आद नतेो से देखकर कहा- कया तुम मुझे भलू गये ? पतान ने लिजजत होकर मसतक नीचा कर िलया। थोडी दरे तक दोनो भावो से भर े

भिूम की ओर ताकते रहे। िफर िवरजन ने पछूा- तुम मुझसे कयो रष हो ? मैने कोई अपराध िकया है ?पताप- न जाने कयो अब तुमहे देखता हू,ं तो जी चाहता है िक कही चला जाऊं।िवरजन- कया तुमको मेरी तिनक भी मोह नही लगती ? मै िदन- भर रोया करती हूं। तुमहे

मुझ पर दया नही आती ? तुम मुझसे बोलते तक नही। बतलाओं मैने तुमहे कया कहा जो तुम रठ गये ?

पताप- मै तुमसे रठा थोडे ही हूं।िवरजन- तो मुझसे बोलते कयो नही।पताप- मै चाहता हूं िक तुमहे भलू जाऊं। तुम धनवान हो, तुमहारे माता- िपता धनी ह,ै मै

अनाथ हूं। मेरा तुमहारा कया साथ ?िवरजन- अब तक तो तुमने कभी यह बहाना न िनकाला था, कया अब मै अिधक धनवान

हो गयी ? यह कहकर िवरजन रोने लगी। पताप भी दिवत हुआ, बोला- िवरजन। हमारा तुमहारा

बहुत िदनो तक साथ रहा। अब िवयोग के िदन आ गये। थोडे िदनो मे तुम यहॉ वालो को छोडकर अपने सुसरुाल चली जाओगी। इसिलए मै भी बहुत चाहता हूं िक तुमहे भलू जाऊं।

परनतु िकतना ही चाहता हूं िक तुमहारी बाते समरण मे न आये, वे नही मानती। अभी सोते-सोत े तुमहारा ही सवसपन देख रहा था।

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8पपपपपप

िडपटी शयामाचरण का भवन आज सनुदिरयो के जमघट से इनद का अखाडा बना हुआ था। सेवती की चार सहेिलयॉ-रिकमणी, सीता, रामदैई और चनदकुवंर- सोलहो िसंगार िकये

इठलाती िफरती थी। िडपटी साहब की बिहन जानकी कुवंर भी अपनी दो लडिकयो के साथ इटावे से आ गयी थी। इन दोनो का नाम कमला और उमादेवी था। कमला का िववाह हो चुका था। उमादेवी अभी कुवंारी ही थी। दोनो सयूर और चनद थी। मंडप के तले डौमिनया और

गविनहािरने सोहर और सोहाग, अलाप रही थी। गलुिबया नाइन और जमनी कहािरन दोनो चटकीली सािडयॉ पिहने, माग िसंदरू से भरवाये, िगलट के कडे पिहने छम- छम करती िफरती

थी। गुलिबया चपला नवयौवना थी। जमुना की अवसथा ढल चुकी थी। सेवती का कया पछूना? आज उसकी अनोखी छटा थी। रसीली आंखे आमोदािधकय से मतवाली हो रही थी

और गलुाबी साडी की झलक से चमपई रगं गुलाबी जान पडता था। धानी मखमल की करुती उस पर खबू िखलती थी। अभी सनान करके आयी थी, इसिलए नािगन- सी लट कंधो पर लहरा रही थी। छेडछाड और चुहल से इतना अवकाश न िमलता था िक बाल गुंथवा ले।

महरािजन की बेटी माधवी छीट का लहॅगा पहने, ऑखो मे काजल लगाये, भीतर- बाहर िकये हुए थी।

रिकमणी ने सेवती से कहा- िसतो। तुमहारी भावज कहॉ है ? िदखायी नही देती। कया हम लोगो से भी पदा है ?

रामदईे-(मुसकराकर) परदा कयो नही है ? हमारी नजर न लग जायगी?सेवती- कमरे मे पडी सो रही होगी। देखो अभी खीचे लाती हूं।

यह कहकर वह चनदमा से कमरे मे पहुंची। वह एक साधारण साडी पहने चारपाई पर पडी दार की ओर टकटकी लगाये हुए थी। इसे देखते ही उठ बैठी। सेवती ने कहा- यहॉ कया पडी हो, अकेले तुमहारा जी नही घबराता?

चनदा-उंह, कौन जाए, अभी कपडे नही बदले।सेवती- बदलती कयो नही ? सिखयॉ तुमहारी बाट देख रही है।चनदा- अभी मै न बदलूंगी।सेवती- यही हठ तुमहारा अचछा नही लगता। सब अपने मन मे कया कहती होगी ?चनदा- तुमने तो िचटठी पढी थी, आज ही आने को िलखा था न ?सेवती-अचछा, तो यह उनकी पतीका हो रही ह,ै यह किहये तभी योग साधा है।चनदा- दोपहर तो हुई, सयात् अब न आयेगे।

इतने मे कमला और उपादवेी दोनो आ पहुंची। चनदा ने घूंघट िनकाल िलया और फरश पर आ बैठी। कमला उसकी बडी ननद होती थी।

कमला-अर,े अभी तो इनहोने कपडे भी नही बदले।सेवती- भैया की बाट जोह रही है। इसिलए यह भेष रचा है।कमला- मूखर है। उनहे गरज होगी, आप आयेगे।सेवती- इनकी बात िनराली है।कमला- पुरषो से पेम चाहे िकतना ही करे, पर मुख से एक शबद भी न िनकाले, नही तो

वयथर सताने और जलाने लगते है। यिद तुम उनकी उपेका करो, उनसे सीधे बात न करो, तो वे तुमहारा सब पकार आदर करेगे। तुम पर पाण समपरण करेगे, परनतु जयो ही उनहे जात हुआ िक इसके हृदय मे मेरा पेम हो गया, बस उसी िदन से दृिष िफर जायेगी। सैर को जायेगे, तो

अवशय दरे करके आयेगे। भोजन करने बैठेगे तो मुहं जूठा करके उठ जायेगे, बात- बात पर रठेगे। तुम रोओगी तो मनायेगे, मन मे पसन होगे िक कैसा फंदा डाला है। तुमहारे सममुख

अनय िसतयो की पशंसा करेगे। भावाथर यह है िक तुमहारे जलाने मे उनहे आननद आने लगेगा। 23

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अब मेरे ही घर मे देखो पिहले इतना आदर करते थे िक कया बताऊं। पितकण नौकरो की भाित हाथ बाधे खडे रहते थे। पखंा झेलने को तयैार, हाथ से कौर िखलाने को तयैार यहॉ तक िक (मुसकराकर) पॉव दबाने मे भी संकोच न था। बात मेरे मुख से िनकली नही िक परूी हुई। मै उस समय अबोध थी। पुरषो के कपट वयवहार कया जानूं। पटी मे आ गयी। जानते

थे िक आज हाथ बाध कर खडी होगी। मैने लमबी तानी तो रात- भर करवट न ली। दसूरे िदन भी न बोली। अंत मे महाशय सीधे हुए, पैरो पर िगरे, िगडिगडाय,े तब से मन मे इस बात की गाठ बॉध ली है िक पुरषो को पेम कभी न जताओं।

सेवती- जीजा को मैने देखा है। भैया के िववाह मे आये थे। बडं हॅसमुख मनुषय है।कमला- पावरती उन िदनो पटे मे थी, इसी से मै न आ सकी थी। यहॉ से गये तो लगे तुमहारी पशंसा करने। तुम कभी पान देने गयी थी ? कहते थे िक मैने हाथ थामकर बैठा

िलया, खबू बाते हुई।सेवती- झठूे है, लबािरये है। बात यह हुई िक गुलिबया और जमुनी दोनो िकसी कायर से

बाहर गयी थी। मॉ ने कहा, वे खाकर गये है, पान बना के दे आ। मै पान लेकर गयी, चारपाई पर लटेे थे, मुझे देखते ही उठ बैठे। मैने पान देने को हाथ बढाया तो आप कलाई पकडकर

कहने लगे िक एक बात सुन लो, पर मै हाथ छुडाकर भागी।कमला- िनकली न झठूी बात। वही तो मै भी कहती हूं िक अभी गयारह- बाहरह वषर की

छोकरी, उसने इनसे कया बाते की होगी ? परनतु नही, अपना ही हठ िकये जाये। पुरष बडे पलापी होते है। मैने यह कहा, मैने वह कहा। मेरा तो इन बातो से हृदय सुलगता है। न जाने

उनहे अपने ऊपर झठूा दोष लगाने मे कया सवाद िमलता है ? मनुषय जो बुरा- भला करता है, उस पर परदा डालता है। यह लोग करेगे तो थोडा, िमथया पलाप का आला गाते िफरेगे जयादा। मै तो तभी से उनकी एक बात भी सतय नही मानती।

इतने मे गुलिबया ने आकर कहा- तुमतो यहॉ ठाढी बतलात हो। और तुमहार सखी तुमका आंगन मे बुलौती है।सेवती- देखो भाभी, अब दरे न करो। गुलिबया, तिनक इनकी िपटारी से कपडे तो िनकाल ले।

कमला चनदा का शृगार करने लगी। सेवती सहेिलयो के पास आयी। रिकमणी बोली- वाह बिह, खबू। वहॉ जाकर बैठ रही। तुमहारी दीवारो से बोले कया ?

सेवती- कमला बिहन चली गयी। उनसे बातचीत होने लगी। दोनो आ रही है।रिकमणी- लडकोरी है न ?सेवती-हॉ, तीन लडके है।

रामदईे- मगर काठी बहुत अचछी है।चनदकुवंर- मुझे उनकी नाक बहुत सुनदर लगती ह,ै जी चाहता है छीन लूं।सीता- दोनो बिहने एक-से- एक बढ कर है।सेवती- सीता को ईशर ने वर अचछा िदया है, इसने सोने की गौ पजूी थी।रिकमणी-(जलकर) गोरे चमडे से कुछ नही होता।सीता- तुमहे काला ही भाता होगा।सेवती- मुझे काला वर िमलता तो िवष खा लेती।रिकमणी- यो कहने को जो चाहे कह लो, परनतु वासतव मे सुख काले ही वर से िमलता

है।सेवती- सुख नही धलू िमलती है। गहण- सा आकर िलपट जाता होगा।रिकमणी- यही तो तुमहारा लडकपन है। तुम जानती नही सुनदर पुरष अपने ही बनाव-

िसंगार मे लगा रहता है। उसे अपने आगे सती का कुछ धयान नही रहता। यिद सती परम- रपवती हो तो कुशल है। नही तो थोडे ही िदनो वह समझता है िक मै ऐसी दसूरी िसतयो के

हृदय पर सुगमता से अिधकार पा सकता हूं। उससे भागने लगता है। और कुरप पुरष

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सुनदर सती पा जाता है तो समझता है िक मुझे हीरे की खान िमल गयी। बेचारा काला अपने रप की कमी को पयार और आदर से परूा करता है। उसके हृदय मे ऐसी धुकधुकी लगी रहती

है िक मै तिनक भी इससे खटा पडा तो यह मुझसे घृणा करने लगेगी।चनदकुवं- दलूा सबसे अचछा वह, जो मुंह से बात िनकलते ही परूा करे।रामदईे- तुम अपनी बात न चलाओं। तुमहे तो अचछे- अचछे गहनो से पयोजन है, दलूा

कैसा ही हो।सीता- न जाने कोई पुरष से िकसी वसतु की आजा कैसे करता है। कया संकोच नही

होता ?रिकमणी- तुम बपरुी कया आजा करोगी, कोई बात भी तो पछूे ?सीता- मेरी तो उनहे देखने से ही तृिपत हो जाती है। वसताभषूणो पर जी नही चलता।

इतने मे एक और सनुदरी आ पहुंची, गहने से गोदनी की भाित लदी हुई। बिढया जूती पहने, सुगंध मे बसी। ऑखो से चपलता बरस रही थी।

रामदईे- आओ रानी, आओ, तुमहारी ही कमी थी।रानी- कया करं, िनगोडी नाइन से िकसी पकार पीछा नही छूटता था। कुसुम की मॉ

आयी तब जाके जूडा बॉधा।सीता- तुमहारी जािकट पर बिलहारी है।रानी- इसकी कथा मत पछूो। कपडा िदये एक मास हुआ। दस- बारह बार दजी सीकर लाया। पर कभी आसतीन ढीली कर दी, कभी सीअन िबगाड दी, कभी चुनाव िबगाड िदया।

अभी चलत-े चलते दे गया है। यही बाते हो रही थी िक माधवी िचललाई हुई आयी-‘ भैया आय,े भैया आये। उनके संग

जीजा भी आये है, ओहो। ओहो।रानी- राधाचरण आये कया ?सेवती- हॉ। चलू तिनक भाभी को सनदेश दे आंऊ। कया रे। कहा बैठे है ?माधवी- उसी बडे कमरे मे। जीजा पगडी बॉधे है, भयैा कोट पिहने है, मुझे जीजा ने

रपया िदया। यह कहकर उसने मुठी खोलकर िदखायी।रानी- िसतो। अब मुंह मीठा कराओ।सेवती- कया मैने कोई मनौती की थी ?

यह कहती हुई सेवती चनदा के कमरे मे जाकर बोली- लो भाभी। तुमहारा सगुन ठीक हुआ।चनदा- कया आ गये ? तिनक जाकर भीतर बुला लो।सेवती- हॉ मदाने मे चली जाउं। तुमहारे बहनाई जी भी तो पधारे है।चनदा- बाहर बैठे कया यकर रहे है ? िकसी को भेजकर बलुा लेती, नही तो दसूरो से

बाते करने लगेगे। अचानक खडाऊं का शबद सुनायी िदया और राधाचरण आते िदखायी िदये। आयु

चौबीस- पचचीस बरस से अिधक न थी। बडे ही हॅसमुख, गौर वणर, अंगेजी काट के बाल, फेच काट की दाढी, खडी मंूछे, लवडंर की लपटे आ रही थी। एक पतला रेशमी कुता पहने हुए थे। आकर पलंंग पर बैठ गए और सेवती से बोले- कया िसतो। एक सपताह से िचठी नही भेजी

?सेवती- मैने सोचा, अब तो आ रहे हो, कयो िचठी भेजू ? यह कहकर वहा से हट गयी।

चनदा ने घघूटं उठाकर कहा- वहॉ जाकर भलू जाते हो ?राधाचरण-( हृदय से लगाकर) तभी तो सैकंडो कोस से चला आ रहा हूँ।

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