अप्रैल फूल ’: एक दिन मस्ती का! · िो:...

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अैल फ स डे खास: अैल फ ’: एक दिन मती का! डॉ0 घनयाम बािल एक अैल का दिन पूरे विि म मूख दििस या अैल फूल दििस के नाम से सध है। यह दिन मूख बनकर या मूख बनाकर भी मन को सु िेता है। यही अनूठा भाि ही इसकी लोकवयता का सबसे बड़ा कारण है। मूख बनने या बनाने का अख ठगने या ठगाने से नही है िरन इसका सबध ोडा-सा आन ि पाने की उन मानिीय भािनाओ से है , जिसके सलये हर यजतत िीिन म दिन-रात िूझता है। एक अैल को कसी भी सम को मूख बनाने का अपना अलग ही मिा है। हो सकता है क मूख बनने िाले को ोड़ा बह त कट पह चे पर मू्र बनाने िाले को मिा आता है। यदि बनाने िला होवियार है तो काफी मगिपची करने के पचात् ही मूख बनने िाला यह समझ िाता है कक उसे अैल फूलबनाया गया है , और यदि जिसे मुख बनाने की कोविि की िा रही है िह आपसे यािा दिमागिार ननकला या उसने भाप सलया कक आप उसका उलू बनाने की काविि कर रह ह तो हो सकता आप ही अैल फू ल बन िाए। हालाकक इस बात का भी यान रना चादहए , मिाक से कसी का बुरा न हो िाए। ‘‘अैलफू ल डे ’’ यानमूख दििसको एक अैल के दिन वििभर म मौि-मती और हसी-मिाक के सलए िू सर को मूख बनाते ह ए मनाया िाता है , अपने सम, पड़ोससय और यहा तक क घर के सिय से भी हसी-मिाक, मूखतापूणख कायख और धोे म डालने िाले उपहार िे कर ‘‘अैल फू ल डे ’’ का आनि ले सकते ह। कब कैसे व कहा से श : माना िाता है कक अैल फू ल की शुरआत 17ि सिी से ह , परतु पहली अैल को फू स डे के ऱप मे लोग के सा हसी मिाक करने का सलसला सन ् 1564 के बाि ास से शुऱ ह आ। इस की कहानी बड़ी मनोरिक है। 1564 से पहले यूरोप के लगभग सभी िेश मे एक िैसा कै लडर चसलत ा, जिसमे हर नया ििख पहली अैल से शुऱ होता ा। तब पहली अैल को लोग निििख के म दिन की तरह इसी कार मनाते े , िसे आि पहली िनिरी को मनाते ह। इस दिन लोग एक-िूसरे को निििख के उपहार िेते े , शुभ-कामनाए भेिते े और एक िूसरे के घर समलने को िाया करते े। सन ् 1564 मे िहा के रािा चासख निम ने एक बेहतर कै लडर को अपनाने का आिेश दिया। इस नए कै लडर मे आि की तरह एक िनिरी को ििख का म दिन माना गया ा। अधधकतर लोगो ने इस नए कै लडर को अपना सलया, लेककन क छ ऐसे भी लोग े , जिहने नए कै लडर को अपनाने से इकार कर दिया ा। िह पहली िनिरी को ििख का नया दिन न मानकर पहली अैल को ही ििख का पहला दिन मानते े। ऐसे लोगो को मूख समझकर नया कै लडर अपनाने िालो ने पहली अैल के दिन विधच कार के उपहार िेने शुऱ कर दिए और तब से आि तक पहली अैल फूस डे के ऱप म मनाते ह।

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  • अप्रलै फूल्स ड ेखास:‘अप्रैल फूल’: एक दिन मस्ती का!

    डॉ0 घनश्याम बािल

    एक अप्रलै का दिन परेू विश्ि में मरू्ख दििस या अप्रलै फूल दििस के नाम से प्रससद्ध है। यह दिन मरू्ख बनकर या मरू्ख बनाकर भी मन को सरु् िेता है। यही अनठूा भाि ही इसकी लोकवप्रयता का सबसे बड़ा कारण है। मरू्ख बनने या बनाने का अर्ख ठगने या ठगाने स ेनहीीं है िरन इसका सींबींध र्ोडा-सा आनींि पाने की उन मानिीय भािनाओीं स ेहै,जिसके सलये हर व्यजतत िीिन में दिन-रात िझूता है।

    एक अप्रलै को ककसी भी समत्र को मरू्ख बनाने का अपना अलग ही मिा है। हो सकता है कक मरू्ख बनने िाले को र्ोड़ा बहुत कष्ट पहुुँचे पर मखू्रर् बनाने िाले को मिा आता है। यदि बनाने िला होवियार है तो काफी मगिपच्ची करने के पश्चात ्ही मरू्ख बनने िाला यह समझ िाता है कक उसे ‘अप्रलै फूल’ बनाया गया है , और यदि जिसे मरु्ख बनाने की कोविि की िा रही है िह आपसे ज्यािा दिमागिार ननकला या उसने भाींप सलया कक आप उसका उल्ल ूबनाने की काविि कर रहें हैं तो हो सकता आप ही अप्रलै फूल बन िाएीं। हालाींकक इस बात का भी ध्यान रर्ना चादहए , कक मिाक से ककसी का बरुा न हो िाए।

    ‘‘अप्रलैफूल ड’े’ यानन ‘मरू्ख दििस’ को एक अप्रलै के दिन विश्िभर में मौि-मस्ती और हींसी-मिाक के सलए िसूरों को मरू्ख बनात ेहुए मनाया िाता है , अपने समत्रों, पड़ोससयों और यहाुँ तक कक घर के सिस्यों स ेभी हींसी-मिाक, मरू्खतापणूख कायख और धोर्े में डालने िाले उपहार िे कर ‘‘अप्रलै फूल ड’े’ का आनींि ले सकत ेहैं।

    कब कैसे व कहाां से शुरु:

    माना िाता है कक अप्रलै फूल की शरुुआत 17िीीं सिी से हुई, परन्त ुपहली अप्रलै को ‘फूल्स ड’े के रूप म ेलोगों के सार् हींसी मिाक करने का ससलससला सन ्1564 के बाि फ्ाींस से शरुू हुआ। इस की कहानी बड़ी मनोरींिक है। 1564 से पहले यरूोप के लगभग सभी िेशों मे एक िैसा कैलेंडर प्रचसलत र्ा, जिसमे हर नया ििख पहली अप्रलै से शरुू होता र्ा। तब पहली अप्रलै को लोग निििख के प्रर्म दिन की तरह इसी प्रकार मनात ेर्े, िैसे आि पहली िनिरी को मनात ेहैं। इस दिन लोग एक-िसूरे को निििख के उपहार िेत ेर्,े शभु-कामनाएुँ भेित ेर् ेऔर एक िसूरे के घर समलने को िाया करत ेर्े। सन ्1564 मे िहाुँ के रािा चाल्सख निम ने एक बेहतर कैलेंडर को अपनाने का आिेश दिया। इस नए कैलेंडर मे आि की तरह एक िनिरी को ििख का प्रर्म दिन माना गया र्ा। अधधकतर लोगो ने इस नए कैलेंडर को अपना सलया, लेककन कुछ ऐसे भी लोग र्,े जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाने से इींकार कर दिया र्ा। िह पहली िनिरी को ििख का नया दिन न मानकर पहली अप्रलै को ही ििख का पहला दिन मानत ेर्े। ऐसे लोगो को मरू्ख समझकर नया कैलेंडर अपनाने िालो ने पहली अप्रलै के दिन विधचत्र प्रकार के उपहार िेने शरुू कर दिए और तब से आि तक पहली अप्रलै ‘फूल्स ड’े के रूप में मनात े हैं।

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  • ककस्से अप्रैलफूल्स के :

    एक - राजा मोक्सर मजाककया:

    यनूान में मोतसर नामक एक मिाककया रािा र्ा। एक दिन उसने स्िप्न में िेर्ा कक ककसी चीींटी ने उसे जिींिा ननगल सलया है। सबुह उसकी नीींि टूटी तो स्िप्न को याि कर िह िोर-िोर स ेहींसने लगा। रानी ने हींसने का कारण पछूा तो उसने बताया- ‘रात मैंने सपने में िेर्ा कक एक चीींटी ने मझु ेजिन्िा ननगल सलया है। सनु कर रानी भी हींसने लगी। तभी एक ज्योनति ने आकर कहा, महाराि इस स्िप्न का अर्ख है- आि का दिन आप हींसी-मिाक ि दठठोली के सार् व्यतीत करें। उस दिन अप्रलै महीने की पहली तारीर् र्ी तब से एक अप्रलै को हींसी-मिाक भरा दिन मनाया िाने लगा।

    िो: अप्सरा व ककसान

    एक अप्सरा ने ककसान स ेिोस्ती की और कहा- यदि तमु एक मटकी भर पानी एक ही साींस में पी िाओगे तो मैं तमु्हें िरिान िूींगी। मेहनतकश ककसान ने तरुींत पानी से भरा मटका उठाया और पी गया। िब उसने िरिान िाली बात िोहराई तो अप्सरा बोली- ‘तमु बहुत भोले हो, आि से तमु्हें मैं यह िरिान िेती हूीं कक तमु अपनी चुटीली बातों द्िारा लोगों के बीच र्ूब हींसी-मिाक करोगे। अप्सरा का िरिान पाकर ककसान ने लोगों को बहुत हींसाया, हींसने-हींसाने के कारण ही एक हींसी का पिख िन्मा, जिसे हम मरू्ख दििस के नाम से पकुारत ेहैं।

    तीन : सनन्ती सांत

    बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक एक सींत र्,े जिनकी िाढ़ी िमीन तक लम्बी र्ी। एक दिन उनकी िाढ़ी में अचानक आग लग गई तो िे बचाओ-बचाओ कह कर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलत ेिेर् कर बच्चे िोर-िोर से हींसने लगे। तभी सींत ने कहा, मैं तो मर रहा हूीं, लेककन तमु आि के ही दिन र्ूब हींसोगे, इतना कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिए।

    चार : ‘गूांगी और अांधी हूां’

    स्पेन के रािा माउन्टो बेर र्े। एक दिन उन्होंने घोिणा कराई कक िो सबसे सच्च झठू सलर् कर लाएगा, उसे ईनाम दिया िाएगा। प्रनतयोधगता के दिन रािा के पास ‘सच झठू’ के हिारों र्त पहुींच,े लेककन रािा ककसी के र्त से सींतषु्ट नहीीं र्े, अींत में एक लड़की ने आकर कहा ‘महाराि मैं गूींगी और अींधी हूीं’। सनु कर रािा चकराया और पछूा ‘तया सबतू है कक तमु सचमचु अींधी हो, तब तिे-तराखट ककशोरी बोली महल के सामने िो पेड़ लगा है, िह आपको तो दिर्ाई िे रहा है, लेककन मझु ेनहीीं।’ इस बात पर रािा र्ूब हींसा। उसने ककशोरी के झठेू पररहास का ईनाम दिया और प्रिा के बीच घोिणा करिाई कक अब हम हर ििख पहली अप्रलै को मरू्ख दििस का दिन मनाएींगे। तब से आि तक यह परम्परा चली आ रही है।

    िनुनयाभर में अप्रलै फूल:

    भारत के अलािा वििेशों में भी लोग अपनी-अपनी सींस्कृनत के अनसुार ‘मरू्ख दििस’ मनात ेहैं। चीन में ‘अप्रलै फूल’ के दिन बरैींग पासखल भेिने और समठाई बाींटने की परींपरा है। इस दिन यहाुँ के बच्चे िींगली िानिर के मरु्ौटे पहनकर

  • आने-िाने िाले लोगों को डरात ेहैं। कई लोग तो सच में िानिर समझ कर डर िात ेहैं। िापान में बच्चे पतींग पर इनामी घोिणा सलर् कर उड़ात ेहैं। पतींग पकड़ कर इनाम माींगने िाला ‘अप्रलै फूल’ बन िाता है। इींग्लैंड में मरू्खता भरे गीत गाकर, मरू्ख बनाया िाता है। स्काॅ टलैंड में ‘मरू्ख दििस’ पर मगेु चुराने की विशिे परींपरा है। मगेु का मासलक भी इसका बरुा नहीीं मानता। स्पेन में इस दिन हींसी-मिाक का कायखक्रम चलता है। आि िीिन की भागिौड़ में हर व्यजतत तनाि और समस्याओीं का सामना करता है और आपसी सींबींधों में भी अविश्िास और अहीं भाि के कारण कटुता महससू करता है। ऐसे में मरू्ख दििस कुछ समय के सलये सही लोगों के चेहरे पर हींसी िेने के सार् ही मन को आनींि स ेभरता है। िो व्यजतत इस क्षण को सकारात्मक भाि स ेिी लेता है,िह स्ियीं को तनािरदहत करने के सार् ही सरु्, शाींनत और विश्िास की ऊिाख पाकर इस दिन को सार्खक बना सकता है।[email protected]

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