Roll No: संसार म सभी...म थल शरण ग त Question No.6 2.50 Bookmark "ढ ल क अदर प ल" कह वत क अथ ननलखत वकप
काका शकोहाबाद के दोहेगीत और क वताय...
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1 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत
और क�वताय�
म�रयम क� त�वीर
अब तो पानी म� भी सुलगती है अरमान� क� आग,
ऐसी द#ुनयां से दरू कहं तू भाग सके तो भाग।
दरू से ह 'दख जाता था कहं टूटा
मकान था अपना,
आज करब आने पर भी कोई नहं
लगता है अपना।
त-क भी डर कर अब तो भागने लगे ह/,
ज़हरले उनसे 2यादा आदमी जो होने लगे ह/।
बकर ने कहा बकरे से चल इस द#ुनयां से
दरू कहं हम 5ेम कर�गे,
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2 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
बकरा बोला, तून ेदेर क�, कल बकरद है,
आज रमज़ान ख6म ह�गे।
जहां तक चलतेचलते थके रा7ता आगे भी नहं,
सोच ले प8थक तू भी, मंिजल अब कहं भी नहं।
पैसा ह एक दम से बनाना है तो
एक काम करो,
;य� न म� और
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3 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
सूरज #नकला नहं, बाIरश म� हाथ धरे
बैठा रहा रोज़ाना का मजदरू,
काम कुछ �मला नहं पानी पी कर सो गये
घर के सब मजबूर।
जलन, Kवेष, 7वाथ? छोड़कर दरू रख� कटु
वचन� क� शमशीर,
5ेम-Hयार कैसे पले, कुछ तो ढलं कर�
इन IरOत� क� जंजीर।
द#ुनयां क� इस चाल म� आंख� फूट,
टांगे टूट कभी न �मल छांव,
धयै? बांध के
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4 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
जब भी
जब भी अपने शहर म� जाता हंू,
वह पुरानी टूट सड़क� पूछती ह/,
;या लेने आये हो?
हम अभी तक नहं बदल ह/,
तुम बदल गये, संवर गये हो, ;या यह
बतान ेआये हो?
पुराने घर क� चारदवार थी कभी,
आज उसक� एक Sट भी नहं,
दरवाज़े पर बैठा हुआ राजू भाग कर आते
ह पूछता है,
भैया �वदेश से मेरे �लये ;या
लाये हो? �
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5 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
वा'दय� म�
शाम के पहले ह �सतारे से ज़Tम�
को कोई कुरेदने लगता है,
जैसे सूय? ढलते ह वा'दय� म� कुदरत
का धुआं उठन ेलगता है।
च>ूहा जलता है िजस घर म�
दो रो'टय� के �लये,
मेरा अतीत उसी आग म� चपुचाप
जलने लगता है।
जब भी करते ह/ याद तुझ ेमेरे Uबगड़ े
हुये मांझी के साथ,
मेर बदना�मय� का इ#तहास
उबलने लगता है।
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6 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
लोग तो जलाते ह/ 'दये को अपने
घर म� रोशनी के �लये,
उसे देखते ह मेरे 'दल का 8चराग
जाने ;य� सुलगन ेलगता है।
Iरवाज़-ए-द#ुनयां म� मरन ेके बाद
इंसान को जलाया करते ह/,
मेरा िज7म तो सदा से िजंदा ह
जला करता है।
मह
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7 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
म;खी म;खी बैठW मुंह पर,
मानव ने दतुकार के लताड़ा,
और मारा उसके हाथ,
बोला , शम? नहं आई तुझको?
गंद नाल क� अभागन,
ज़रा पहचान तो अपनी औकात?
उड़ कर भागी म;खी और
दरू ह से बोल मानव से,
कोई बात नहं है बXच,ू
और कुछ 'दन कर ले अपनी ह बात,
जब मर जायेगा एक 'दन,
तब बैठंूगी तेरे मुंह पर म/,
बड़ ेह आराम के साथ। �
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8 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
मIरयम (यीशु क� सलब के समय)
उस अ[मुखी मIरयम क� आंख�
म� रोता था उसका हर सपना,
गोरे गाल� पर 8गरता था हर आंसू
यूं गल रह थी ममता। �
गज़ल वह हंसत ेरहे मील� तक, कोई 8गला नहं,
हम मु7कराये एक पल, तो मंुह बना �लया।
रहता मेरे पास तो ये फूटता ज\र,
भला हुआ जो तुमने मुक]र चरुा �लया।
कहा था ^_टाचार के तोड़ द�गे पैर,
पता चला
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9 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
जीते–जी जल, मरकर जल, ये िज़aदगी जल,
जाने वाले ने अपना फलसफा बता 'दया।
अपन� म� भी होता है Hयार, पता नहं,
तुमको �मला होगा, सो तमुने बता 'दया।
झूठ का �वरोध
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10 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
बात िज़aद8गय� का इ#तहास
सदा कहता आया है यह बात,
ख6म न होती मुिOकल�,
मारो हा-पैर तुम 'दन रात।
एक बार को जानवर भी,
सुन ल�गे तुcहार बात,
मगर नहं सुनेगा आदमी,
8च>लाओं तुम आधी रात।
वह तो अपनी धनु म�,
गाय�गे ह, हर जाड़ा, गमd और बरसात,
जो शु\ हुए एक बार को,
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11 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
भूखे पेट प6तल चाट�
ऐसा मेरा भारत महान,
पर�मट वाले कभी न खोल�,
अब राशन क� दकुान। �
IरOत-ेनात ेIरOते नात,े झूठे IरOते, सXच े
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12 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�
मजदरू बोले सागर से मेर मानेगा जानी,
मेरे पसीने से ख़ारा कभी नहं तेरा पानी।
चच?-नी#त का दांव है ऐसे खेलो खेल,
हाथ �मलाओ रोज़ ह पर कभी न करो मेल।
राजनी#त क� पहचान है, गुंडा-गदf के दांव,
मतलब पड़ ेतो हाथ जुड़�, लाओं तुम 'दन रात।
लकड़ी कहे आदमी से आज तू जलाता है मुझको,
एक 'दन ऐसा आयेगा जब म/ जलाऊंगी तुझको।
सह साधना वह है िजसम� होये न खच?,
ईश बसाये चलते जाओ �मल जायेगा �