आम नगरm मालदा कt आम - Eastern Railway zone...हहन द द म पत...

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वष -16 -02 2017-18 वष रेलवे, मालदा म डल की सृजनामक हहदी ई-माहसकी आम नगरी मालदा के आम आम नगरी मालदा के आम आम नगरी मालदा के आम

Transcript of आम नगरm मालदा कt आम - Eastern Railway zone...हहन द द म पत...

  • वषष-15

    अंक-11

    2017

    वषष-16

    अंक-02

    2017-18

    पूवष रेलवे, मालदा मंडल की सजृनात्मक हहन्दी ई-माहसकी

    आम नगरी मालदा के आमआम नगरी मालदा के आमआम नगरी मालदा के आम

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    भारत के सहंवधान में राजभाषा

    सघं की राजभाषा हहंदी और हिहि दवेनागरी है । सघं के शासकीय प्रयोजनों के हिए प्रयोग होने वािे अकंों का रूि भारतीय अकंों का अतंराष्ट्रीय रूि

    है { सहंवधान का अनुच्छेद 343 (1)} । िरन्तु हहंदी के अहतररक्त अगें्रजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में हकया जा सकता है।

    ससंद का कायय हहंदी में या अगें्रजी में हकया जा सकता है । िरन्तु राज्यसभा के सभािहत महोदय या िोकसभा के अध्यक्ष महोदय हवशेष िररहथिहत में

    सदन के हकसी सदथय को अिनी मातृभाषा में सदन को सबंोहधत करने की अनुमहत द ेसकते हैं ।

    हकन प्रयोजनों के हिए केवि हहंदी का प्रयोग हकया जाना है, हकन के हिए हहंदी और अगें्रजी दोनों भाषाओ ंका प्रयोग आवश्यक है और हकन कायों के

    हिए अगें्रजी भाषा का प्रयोग हकया जाना है, यह राजभाषा अहधहनयम 1963, राजभाषा हनयम 1976 और उनके अतंगयत समय समय िर राजभाषा हवभाग, गृह

    मंत्रािय की ओर स ेजारी हकए गए हनदशेों द्वारा हनधायररत हकया गया है ।

    अध्यायअध्यायअध्याय --- 111 संघ की भाषा

    ऄनचु्छेद 120. संसद ्में प्रयोग की जाने वाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, संसद ्में कायय कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

    परंत,ु यथाकथथकत, राज्य सभा का सभापकत या लोक सभा का ऄध्यक्ष ऄथवा ईस रूप में कायय करने वाला व्यकि ककसी सदथय को, जो

    कहदंी में या ऄगें्रजी में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मात-ृभाषा में सदन को संबोकधत करने की ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

    (2) जब तक संसद ्कवकध द्वारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो या ऄगें्रजी में‛ शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो ।

    ऄनचु्छेद 210: कवधान-मंडल में प्रयोग की जान ेवाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के

    ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, राज्य के कवधान-मंडल में कायय राज्य की राजभाषा या राजभाषाओ ंमें या कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा परंत,ु यथाकथथकत, कवधान सभा का ऄध्यक्ष या कवधान पररषद ्का सभापकत ऄथवा ईस रूप में कायय करन ेवाला व्यकि ककसी सदथय

    को, जो पवूोि भाषाओ ंमें से ककसी भाषा में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मातभृाषा में सदन को संबोकधत करने की

    ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

    (2) जब तक राज्य का कवधान-मंडल कवकध द्वारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो ‚ या ऄगें्रजी में ‛ शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो :

    परंतु कहमाचल प्रदशे, मकणपरु, मेघालय और किपरुा राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में, यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अने वाले‚पंद्रह वषय‛ शब्दों के थथान पर ‚पच्चीस वषय‛ शब्द रख कदए गए हों :

    परंतु यह और कक ऄरूणाचल प्रदशे, गोवा और कमजोरम राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अन ेवाले ‚ पंद्रह वषय ‛ शब्दों के थथान पर ‚ चालीस वषय ‛ शब्द रख कदए गए हों ।

    ऄनचु्छेद 343. संघ की राजभाषा--

    (1) संघ की राजभाषा कहदंी और कलकप दवेनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के कलए प्रयोग होने वाले ऄकंों का रूप भारतीय ऄकंों का ऄतंरायष्ट्रीय रूप होगा।

    (2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध तक संघ के ईन सभी शासकीय प्रयोजनों के कलए ऄगें्रजी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहगेा कजनके कलए ईसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था :

    परन्तु राष्ट्रपकत ईि ऄवकध के दौरान, अदशे द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से ककसी के कलए ऄगें्रजी भाषा के ऄकतररि कहदंी

    भाषा का और भारतीय ऄकंों के ऄतंरायष्ट्रीय रूप के ऄकतररि दवेनागरी रूप का प्रयोग प्राकधकृत कर सकेगा।

    (3) आस ऄनचु्छेद में ककसी बात के होते हुए भी, संसद ्ईि पन्द्रह वषय की ऄवकध के पश्चात् , कवकध द्वारा

    (क) ऄगें्रजी भाषा का, या

    (ख) ऄकंों के दवेनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के कलए प्रयोग ईपबंकधत कर सकेगी जो ऐसी कवकध में कवकनकदयष्ट ककए जाए।ं

    क्रमशः

    8 2

    भारत के सहंवधान में राजभाषा

    क्रमशः

    राजभाषा नियम, 1976 (यथासंशोहधत, 1987, 2007 तथा 2011)

    (2) केन्द्रीय सरकार के कायाालय स-े-

    (क) क्षते्र 'ख' में ककसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य या सघं राज्य क्षेत्र में ककसी

    कायाालय (जो केन्द्रीय सरकार का कायाालय न हो) को पत्राकद सामान्द्यतया हहन्द्दी में होंगे और यकद

    इनमें से ककसी को कोई पत्राकद अंगे्रजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हहन्द्दी अनुवाद भी

    भेजा जाएगााः परन्द्तु यकद कोई ऐसा राज्य या संघ राज्य क्षेत्र यह चाहता ह ैकक ककसी हवहिष्ट वगा

    या प्रवगा के पत्राकद या उसके ककसी कायाालय के हलए आिहयत पत्राकद संबद्ध राज्य या संघ

    राज्यक्षेत्र की सरकार द्वारा हवहनर्ददष्ट अवहध तक अंगे्रजी या हहन्द्दी में भजेे जाए ंऔर उसके साथ

    दसूरी भाषा में उसका अनुवाद भी भेजा जाए तो ऐसे पत्राकद उसी रीहत स ेभेजे जाएगें ;

    (ख) क्षते्र 'ख' के ककसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में ककसी व्यहि को पत्राकद हहन्द्दी या अंगे्रजी में

    भेजे जा सकते हैं ।

    (3) केन्द्रीय सरकार के कायाालय स ेक्षते्र 'ग' में ककसी राज्य या संघ राज्यक्षते्र को या ऐस ेराज्य

    में ककसी कायाालय (जो केन्द्रीय सरकार का कायाालय न हो)या व्यहि को पत्राकद अंगे्रजी में होंगे ।

    ( 4 ) उप हनयम (1) और (2) में ककसी बात के होते हुए भी, क्षेत्र 'ग' में केन्द्रीय सरकार के

    कायाालय स ेक्षते्र 'क'या'ख'में ककसी राज्य या सघं राज्यक्षते्र को या ऐस ेराज्य में ककसी

    कायाालय (जो केन्द्रीय सरकार का कायाालय न हो) या व्यहि को पत्राकद हहन्द्दी या

    अंगे्रजी में हो सकते हैं । परन्द्तु हहन्द्दी में पत्राकद ऐसे अनुपात में होंगे जो केन्द्रीय

    सरकार ऐसे कायाालयों में हहन्द्दी का कायासाधक ज्ञान रखने वाले व्यहियों की संख्या,

    हहन्द्दी में पत्राकद भेजने की सुहवधाओं और उसस ेआनुषंहगक बातों को ध्यान में रखते हुए

    समय-समय पर अवधाररत करे ।

    http://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=const.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolact.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolact.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolrules.htm

  • हवषय वस्तु

    प्रसंगवश—

    —सधुांश ुकुमार कवश्वास — 3

    ... मथुकुराना सीखें —

    — आदं्र ज्योकत राय 4

    कानन दवेी

    — कप्रयंका पाण्डे 6

    भारत के बागीच—े

    — ररतेश कुमार 7

    दशु्मन का ...—

    — चंद्रभान 9

    गौरैया का पररवार

    — कैलाश चंद्र धाररया 11

    मोबाआल के ... —

    — कुमारी ऊचा 13

    कबना पूंजी का धंधा

    —सकच्चदानंद 14

    मां मरेी मां

    — कवजय कुमार 17

    मेरे कपता—

    — कवनय कुमार झा 17

    दो ककवताए ं

    — राहुल कुमार 18

    कचि कवकथका 19-20

    हनिःशुल्क हवतरण हेतु

    सरंक्षक

    मोकहत कसन्हा

    मंडल रेल प्रबंधक

    परामशष

    कवजय कुमार साहू ऄपर मुख्य राजभाषा ऄकधकारी

    एवं ऄपर मंडल रेल प्रबंधक

    प्रधान सपंादक

    सधुांश ुकुमार कवश्वास

    राजभाषा ऄकधकारी(प्र।)

    सपंादक

    सकच्चदानंद

    व. ऄनवुादक

    कायषकारी सपंादक

    कैलाश चंद्र धाररया

    व. ऄनवुादक

    सहयोग

    आदं्र ज्योकत राय

    क. ऄनवुादक

    3

    आम नगरी आम नगरी आम नगरी --- मालदामालदामालदा भारत में, पहाडी क्षेिों को छोड कर अम लगभग सभी थथानों पर पैदा होता

    ह।ै हमारे यहााँ अम की सैंकडों ककथमें हैं । यह अकार और रंगों में ऄलग-ऄलग

    होते हैं । अम को ऄनंत समय से भारत में ईगाया जाता रहा ह ै। कवश्व के ऄनेक

    दशेों में अम की ऄलग-ऄलग जाकत होती ह ै। किर भी कहदंथुतान का प्रकसद्ध िल

    अम ही ह ै।

    अाँकडों के मतुाकबक आस समय भारत में प्रकतवषय एक करोड टन अम पैदा

    होता ह ैजो दकुनया के कुल ईत्पादन का 52 फीसदी ह ै। थवाद, थवाथ्य एव ंबल

    संवधयन की दृकष्ट से अम सभी िलों में अग ेह ै। अम भारत के लोकगीतों और

    धाकमयक ऄनषु्ठानों से ऄकनवायय रूप से जडुा ह ै। ककव काकलदास ने आसकी प्रशसंा में

    गीत कलख ेहैं ।

    अम कमजोरी दरू भगाता ह ै । अम में सभी िलों से ऄकधक कवटाकमन

    ए होता ह ै। आसके ऄकतररि कवटाकमन ‘बी’ भी ऄकधक होते हैं । आसमें 'अयरन' भी

    बेहद तादाद में पाया जाता ह,ै आसमें कवटाकमन 'सी' और 'इ' भरपरू तादाद में पाया

    जाता ह।ै जो अाँखों के कलए बेहद फायदमेदं होते हैं। वसैे तो मालदा अम की

    कमठास का थवाद लोग मइ की शरुुअत से ही लेने लगते हैं ।

    भले ही ऐलिैं सों को अम का राजा कहा जाता हो लेककन मालदा अम

    को ही अम का राजा माना जाना चाकहए । ग्राहकों को अम की पहचान करके ही

    अम खरीदना चाकहए । आस बार मालदा में अम का ररकाडय तोड ईत्पादन होने की

    संभावना थी परंत ुऐसा शायद नहीं हो पाया ह ै । बाहर के अम मालदा के अम

    का मकुाबला नहीं कर सकते ह ै। मालदा के अम के बगीचे में दरू-दरू से लोग मइ

    और जनू के महीने में अम खरीदने पहुचंते हैं ।

    मालदा अम की खाकसयत यहां की कमट्टी की वजह से और ज़्यादा बढ़

    जाती ह ै। यहां की सोंधी और ईपजाउ कमट्टी मालदा अम की कमठास और खशुबू

    में महत्वपणूय भकूमका कनभाती ह ै।

    सकदयों से अम की पैदावार मालदा में होती अ रही ह ै। कृष्ट्ण भोग, गोपाल

    भोग, मोहन भोग, राखालभोग, अम्रपाली, िुकनया, मकललका नामक अम प्रायः

    सब जगह पाए जाते हैं । मालदा अम की गठुली पतली होती ह ै। आसका कछलका

    भी ऄन्य अमों की ऄपेक्षा बहुत पतला होता ह ै। — सुधांशु कुमार हवश्वास

    प्रसंगवश

    सपंका सतू्र

    संपादक, बढ़ते कदम

    मंडल रेल प्रबंधक कायाालय

    पूवा रेलवे/मालदा

    फोन- 72190/ 72192 (रेलवे) Email – [email protected]

    प्रकाकशत रचनाओ ं में व्यि कवचार लेखकों के ऄपने है आससे संपादक मंडल का सहमत होना अवश्यक नही ह।ै

    http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%8Fhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%8Fhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A4%A8

  • 04

    आलेख

    एक बार ककसी न ेपछूा कक व्यकि के जीवन में कौन-कौन से सखु होने

    चाकहए तो ईस व्यकि ने आस प्रश्न का ईत्तर कुछ यूाँ कदया—पहला सखु कनरोगी

    काया, दजूा सखु पास हो माया, तीजा सुख सलुक्षणा नारी, चौथा सखु हो

    अज्ञाकारी बेटा, सखु पााँचवां तो व े ही पाते, हसंते-हसंते जो ईम्र कबताते।

    हालांकक ईपरोि पद्ांश में चार सखु तो ककसी ककव ने पहले ही कगना कदये थ,े

    लेककन ईस व्यकि ने ईन चारों सखुों में हसंने के सुख को जोड ईपरोि वकणयत

    सभी सखुों के बीच एक पााँचवें सखु का जो खालीपन था ईसे परूा कर कदया ।

    पद्ांश में पााँचवा सखु जोडने पर वह ऄपना मलू रूप नहीं खो पाया।

    पांचवें, सखु ऄथायत ‘हसंने’ और ‘मथुकराने’ को कवशषे महत्व कदया गया ह ै ।

    अप सारी कजदंगी यकद मथुकराते रह ेतो अपका जीवन सिल ह ै। रोते कझकंते

    जीवन कबताने वाला जीवन जीना भी कोइ जीना ह ै। प्रकृकतगत वाथतकवकता ह ै

    कक मनषु्ट्य का जन्म रोते हुए होता ह।ै ईसके जीवन का ऄतं शांत एव ंकशकथलता

    के साथ होता ह ै।

    संभवतः मनषु्ट्य ही ऐसा प्राणी ह ैकजसकी ईत्पकत्त रोते हुए होती ह ै। ऄगर थोडा दाशयकनक होते हुए आस रहथय को

    जानने का प्रयास ककया जाए, तो आसका ऄथय कनकलेगा, कजस संसार में तनूे जन्म कलया ह,ै वहााँ रोना, झींकना, क्लेश, दखु

    और तनाव आत्याकद अते रहेंग े । मतृ्य ु के शांत एव ं कथथर हलके मथुकराहट भाव से गंभीर ऄथय कनकलता ह,ै किर भी

    अपको घबराना नहीं ह ैअपको जीना ह,ै सभी प्रकार के तनावों एव ंक्लेश और दखुों के बीच अपको शांत एव ंकथथरता

    से मथुकाराते हुए आनका मकुाबला करना ह ै। यहााँ अपकी मथुकराहट ही अपका सबसे बडा हकथयार बनेगी । जीवन

    और मतृ्य ुके आस रहथय को जानकर ही अप ऄपने जीवन को सिल बना सकते ह ै।

    रोते हुए जन्म हुअ ह ैतो क्या हुअ जीवन तो हसंते हुए कबताना चाकहए । किलम मकुद्दर का कसकंदर के एक गीत

    की कुछ पंकियां —

    रोते हुए आते हैं सब, हसंता हुआ जो जाएगा,

    वो मुकद्दर का हसकंदर, जानेमन कहलाएगा ।

    कजसने हसंते हुए कजदंगी जी वह सही ऄथों में भाग्य का धनी ह ै। हसंना और मथुकराना हमारे जीवन का ऄहम

    पहल ूह ै। कजस कदन अपन ेरृदय से हसंना सीख कलया ईसी कदन अपने सिल बनने की कला सीख ली । मथुकान हमें

    बजार से खरीदनी नहीं पडती । जब आसका मोल ही नहीं तो किर कैसी कंजसूी । रृदय से हसें-मथुकराए ं न केवल

    शारीररक रूप से ऄकपत ुमानकसक रूप से भी अप थवथ्य बनेंग े। शारीररक और मानकसक रूप से थवथ्य रहने पर ही

    अप ऄपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं, थके हुए नीरस शरीर के साथ नहीं ।

    मथुकान का कवथताररत रूप मथुकान के महत्व को रेखांककत करता ह ै। मथुकान के आस कवथताररत रूप के ऄनसुार एक बार

    मथुकराने से थवयं को थवतंि बनाते हैं । ऄपने को कवशषे बनाते ह ै । आससे अपका महत्व बढ़ता ह ै । आससे अपकी

    भावनाएाँ ईच्चतम थतर पर पहुाँचती हैं । मथुकराने से अपका तनाव दरू होता ह ै।

  • 05

    आलेख

    यकद अप ऄपनी दकुान चलाते हैं तो अपका मथुकराता चहेरा अपके ग्राहकों पर जादकूा-सा ऄसर डालेगा । यह

    सहज की ग्राहकों को अपकी ओर अककषयत करेगा । कुछ ग्राहक कुछ भी लेने में रुकच न कदखाए ंतो भी अपके चेहरे पर

    अने वाली हलकी-सी मथुकान ईन्हें पनुः अने का अमिंण दगेी और वह किर कभी अपकी दकुान पर ऄवश्य ही अएगा।

    यकद सिल दकुानदार बनना चाहते हैं तो अपको रृदय से मथुकारना होगा । झठूी और िीकी हसंी कभी भी मथुकान नहीं

    बन सकती । वह एक प्रकार की कखकसयाहट या झेंप बनती ह ै। कखकसयाट और झेंप अपको सिलता नहीं कदला सकती।

    मथुकराआए मगर कदल से । वाथतकवक हसंी-हसें कृकिम या बनावटी हसंी न हसें । कृकिमता या बनावटीपन कभी भी

    वाथतकवकता के समीप नहीं हो सकते । वाथतकवकता में सादगी और सहजता होती है, बनावटीपन में छल और प्रपंच।

    आसकलए सदवै वाथतकवक हसंी हसें।

    नौकरी पेशा होने पर अप मथुकान से ही ईन्नकत प्राप्त कर सकते हैं । अप ऄपने सहककमययों एव ंवररष्ठ के समक्ष कायय

    के दौरान सदवै ऄपने चेहरे पर हलकी-सी मथुकराहट लाए ं। किर दखेें अपके समक्ष ईपकथथकत व्यकि पर आसका का क्या

    प्रभाव पडता ह ै। किर वह चाह ेअपका सहकमी हो या वररष्ठ सभी अपसे प्रभाकवत होंग े। ईनके और अपके बीच थनहे

    एव ंलगाव पनपेगा जो अपको ईन्नकत कदलाने में सहायक बनेगा।

    सिल दाम्पत्य जीवन के कलए भी यकद पकत-पत्नी ऄपनी समथयाओ ंके बीच एक दसूरे के समक्ष सदैव हलकी सी

    मथुकराहट कबखरेते रहें तो दाम्पत्य जीवन में तनाव एव ंकलह ईत्पन्न ही नहीं हो सकते । पकत के झललाने पर पत्नी प्यार से

    हलके से मथुकाहट के साथ ईसका प्रकतत्यतु्तर द ेतो पकत की झललाहट कमनट में छू मतंर हो जाएगी । तनाव एवं कलह तभी

    ईत्पन्न होते हैं, जब झललाहट या क्रोध का प्रत्यतु्तर झललाहट या क्रोध के साथ ही कदया जाता ह ै। ऄगर कोइ आस छोटी-सी

    बात को पलल ूमें बांध लें तो पाररवाररक कलह खत्म हो जाय ।

    मथुकान से अप न केवल थवयं को अनंकदत करते ह ैऄकपत ुअस-पास का माहौल भी अनंकदत होता ह ै । आससे

    कायय-थथल पर तनाव समाप्त हो जाता ह ै । न केवल अपकी ऄकपत ु अपके सहककमययों की भी काययक्षमता बढ़ती ह।ै

    मथुकान एक औषकध ह ैजो अपके साथ ऄन्य लोगों को भी खशुहाल बनाती ह।ै

    यह एक कवडंबना ही ह ैकक वतयमान यगु में मनषु्ट्य को सब तरह साधन सलुभ हो गए ह ैबावजदू आसके ईसके पास हसंने

    एव ंमथुकराने के कलए िुसयत नहीं ह ै। न जाने क्यों लोग आतने नीरस होते जा रह ेह ै। यकद जीवन में थिूकतय लाना चाहते हो, तो

    रृदय से हसंना-मथुकराना सीखो तो जीवन सिल हो जाएगा।

    मथुकान से अप अनंकदत होते हो । अनंकदत और खशु व्यकि ही जीवन में सिल हो सकता ह ै। मनषु्ट्य की सिलता

    में ईसके शारीररक गकतकवकधयों की ऄपेक्षा ईसके मकथतष्ट्क का सवायकधक योगदान होता हैं । अपका मकथतष्ट्क कथथर ह ैतो

    अप लक्ष्य के प्रकत समकपयत होंगें । अपका मकथतष्ट्क अपके शरीर को सिलता की कदशा में प्रयास करने के कलए संदशे

    दगेा । अपका शरीर ईसमें कायय करेगा । कहने का तात्पयय हैं कक अपकी बकुद्ध अपके तन की थवामी ह ै। बकुद्ध को कथथर

    करके तनाव मिु करना होगा । तनाव मकुि के कलए मथुकराना होगा । अप कजतना रृदय से मथुकराएगं े ईतना ही अप

    तनावमिु होंग े।

    कथथर बकुद्ध ही लक्ष्य प्राकप्त की ओर प्रेररत करेगी । आस दृकष्ट से सिलता और मथुकान के बीच गहरा ररश्ता ह ै । तो

    अज से ही हसंते मथुकारते हुए जीवन जीना प्रारंभ कीकजए । कचंता छोडो, तनाव छोडऺो और मथुकुराकर जीवन जीना सीखो।

    ककसी शायर ने कहा ह,ै ‘कजंदगी कजदंाकदली का नाम ह,ै मदुाय कदल क्या खाक कजया करते हैं।’ कजदंगी को कजदंाकदली के

    साथ मथुकुराकर जीयो ।

    — इन्रज्योहत राय

  • 06

    शहससयत

    भारतीय कसनेमा जगत में कानन दवेी का नाम एक ऐसी शकख्सयत के तौर पर याद ककया जाता है, कजन्होंने न केवल

    किलम कनमायण की कवधा बकलक ऄकभनय और पाश्वयगायन से भी दशयकों के बीच ऄपनी खास पहचान बनाइ थी । ये

    भारत की प्रकसद्ध ऄकभनेिी, गाकयका और किलम कनमायता थीं । आनका मलू नाम कानन बाला था । बगरै प्रकशक्षण हाकसल

    ककए कानन ने गायन की दकुनया में प्रवशे ककया और ऄकभनय के के्षि में भी ऄपनी पहचान

    बनाइ ।

    कानन दवेी का जन्म हावडा में 1916 को एक मध्यम वगीय बंगाली पररवार में हुअ था

    । बालयावथथा के कदनों में ही ईनके दत्तक कपता रमशे चन्द्र दास की मतृ्य ुहो गइ थी। आसके बाद

    पररवार की अकथयक कजम्मदेारी को दखेते हुए कानन देवी ऄपनी मााँ के साथ काम में हाथ

    बंटाने लगीं । कानन दवेी जब कसिय 10 वषय की ही थीं, तब ऄपने एक पाररवाररक कमि की

    मदद से ज्योकत थटूकडयो द्वारा कनकमयत किलम 'जयदवे' में काम करने का ऄवसर पाइ ं।

    आसके बाद कानन दवेी को ज्योकतस बनजी के कनदशेन में राधा किलम्स के बैनर तले बनी

    कइ किलमों में बतौर बाल कलाकार काम करने का मौका कमला । वषय 1934 में प्रदकशयत

    किलम 'मााँ' बतौर ऄकभनेिी कानन दवेी के कसने कैररयर की पहली कहट किलम साकबत हुइ । कुछ समय के बाद कानन दवेी

    न्य ूकथयेटर में शाकमल हो गइ ं।

    आस बीच ईनकी मलुाकात रायचंद बोराल से हुइ, आन्होंने कानन दवेी से कहन्दी किलम में काम करने का प्रथताव रखा ।

    तीस और चालीस के दशक में किलम ऄकभनेता या ऄकभनेकियों को किलम में ऄकभनय के साथ ही पाश्वयगायक की भकूमका

    भी कनभानी पडती थी। आस कथथकत को ध्यान में रखते हुए कानन दवेी ने भी संगीत की कशक्षा लेनी शरुू कर दी ।

    ईन्होंने संगीत की प्रारंकभक कशक्षा ईथताद ऄललारक्खा और भीष्ट्मदवे चटजी से प्राप्त की । आसके बाद ईन्होंने ऄनाकद

    दथतीदार से रवीन्द्र संगीत भी सीखा । वषय 1937 में प्रदकशयत किलम 'मकुि' बतौर ऄकभनेिी कानन दवेी के कसने कैररयर की

    सपुर कहट किलम साकबत हुइ । पी.सी.बरुअ के कनदशेन में बनी आस किलम की जबरदथत कामयाबी के बाद कानन दवेी न्यू

    कथयेटर की चोटी की कलाकारों में कगनी जाने लगी थीं ।

    सन 1941 में कानन दवेी ने न्य ूकथयेटर छोड कदया और ऄब व ेथवतंि तौर पर काम करने लगीं । 1942 में प्रदकशयत

    किलम 'जवाब' बतौर ऄकभनेिी कानन दवेी के कसने कररयर की सवायकधक कहट किलम साकबत हुइ । आस किलम में ईन पर

    किलमया गया यह गीत- "दकुनया ह ैतिूान मले", ईन कदनों श्रोताओ ंके बीच कािी लोककप्रय हुअ। आसके बाद कानन दवेी

    की 'हॉकथपटल', 'वनिूल' और 'राजलक्ष्मी' जसैी किलम भी प्रदकशयत हुइ, जो कटकट कखडकी पर सपुरकहट रहीं ।

    ऄपनी आस सिलताओ ंके बाद कानन दवेी ने सन 1948 में किलम नगरी बंबइ का रुख ककया । आसी वषय प्रदकशयत

    किलम 'चंद्रशखेर' में एक ऄकभनेिी के रूप में कानन दवेी ने ऄकंतम बार ऄकभनेिी के रूप में काम ककया था । किलम में

    ईनके नायक की भकूमका ऄशोक कुमार ने कनभाइ थी ।

    वषय 1949 में कानन दवेी ने किलम कनमायण के क्षेि में 'श्रीमती कपक्चसय' के नाम से कदम रखा। वषय 1976 में किलम

    कनमायण के के्षि में कानन दवेी के ईललेखनीय योगदान को दखेते हुए ईन्हें किलम जगत के सवोच्च सम्मान 'दादा साहब

    िालके परुथकार' से सम्माकनत ककया गया । ककंत ु 17 जलुाइ, 1992 को आस दकुनया को ऄलकवदा कह गइ ं ।

    — हप्रयंका पाण्डे

    http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81http://bharatdiscovery.org/india/1934http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4http://bharatdiscovery.org/india/1937http://bharatdiscovery.org/india/1941http://bharatdiscovery.org/india/1942http://bharatdiscovery.org/india/1948http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A4%88http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0http://bharatdiscovery.org/india/1949http://bharatdiscovery.org/india/1976http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AC_%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AC_%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0http://bharatdiscovery.org/india/17_%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%88http://bharatdiscovery.org/india/1992

  • भ्रमण

    हररयाली से मनषु्ट्य का सकदयों परुाना नाता ह ै। हरे भरे वकृ्ष और ईन वकृ्षों पर कलरव करते पक्षी मन को मोकहत कर

    दतेे हैं । सुंदर हरी हरी घास पर दौडती कगलहररयां और रंग कबरंग ेिूलों से सजी िूलों की क्याररयां भला ककसे ऄच्छी नहीं

    लगती । आन सारी खकूबयों को अप ककसी बागीचे में दखे सकते हैं । हमारे दशे में बागों की कमी नहीं ह ै। भारत में एक से

    बढ़कर एक बागीचे हैं जो सालों भर पययटकों और प्रकृकत प्रेकमयों को ऄपनी ओर अककषयत करते रहते हैं । भारत के कुछ

    प्रकसद्ध बाग कजन्हें दखे कर मन बाग़ बाग़ हो ईठता है—

    वनृ्दावन गार्डन कनायटक राज्य के मसैरू शहर से लगभग 19 ककलोमीटर की दरूी पर कथथत ह ै वृदंावन गाडेन । यह खबूसरूत

    गाडयन कावरेी नदी पर बने कृष्ट्णराज सागर बांध के नीचे ह ै। आस बाग़ की नींव 1927 में रखी गयी थी और आसका कनमायण

    कायय 1932 में परूा हुअ था । यह 20 एकड के के्षि में िैला हुअ ह ै। आस बाग़ की सजावट नतृ्य करते िव् वारों और िूलों

    से की गयी ह ै। यह बाग कफल मों की शकूटंग के कलए कािी मशहूर ह ै। मसैरू शहर में अने वाला प्रत्येक यािी आस प्रकसद्ध

    वनृ्दावन गाडयन दखेना चाहता ह ै। आस बाग में

    िव्वारों का जल प्रपात, पकक्षयों का कलरव

    और अकषयक िूलों की मनमोहक क्याररयां

    दखेते ही बनती हैं ।

    वृदंावन गाडयन तीन छतों में बना ह ै

    कजसमें पानी के फव्वारे, पेड, बेलबटेू और

    िूलों के पौधे शाकमल हैं । आस गाडयन का

    कवशेष अकषयण 'म्यकूजकल िाईन्टेन्स'

    में संगीत की लहरी पर झमूते-नाचते पानी के

    िव्वारों का एक छोटा-सा शो होता ह ैजो मन

    को ऄपनी और ऄनायास कखच लेता ह ै।

    आस कवशाल बाग़ में नौका कवहार का अनंद भी ईठाया जा सकता ह ै। शाम होने के बाद वृदंावन गाडयन में लयबद्ध

    तरीके से जलती-बझुती रोशनी और संगीत पर पानी के िव्वारों का नतृ्य दखेने के कलए भीड जटुती ह ै। कजस प्रकार शाम

    रात की ओर बदलने लगती है, वाद् यंिों की धनु पर पानी के रंग-कबरंग ेफव्वारे जीवंत हो लगते हैं । यह नजारा आतना

    ऄदु्भत होता ह ैकक मानो पययटक पररयों के दशे में पहुाँच गए हों । यह ईद्ान सामान्य जनता के कलये कनःशलुक खलुा रहता

    ह ै। परंत ुकुछ के शलुक भी लगता ह।ै

    सिम पार्ड — तकमलनाडु के कहल थटेशन कुन्नरू का सबसे बडा पहचान ह ैयह पाकय । यह 12 हके्टेयर में बना ह ै। आसे एक ऄगं्रेज

    मजेर मरे और कम.ज.ेडी. मरे कसम ने सन ्1874 में बनवाया था । कसम पाकय में 1000 कवदशेी पेड-पौधे हैं । िन्सय, पाआन्स,

    मगंोकलया और कामकेलया जैसे परुाने और कम पाए जाने वाले पेड यहां दखेने को कमलते हैं । कुन्नरू का यह प्राकृकतक

    गाडयन ह ै। आस पाकय में हर साल फू्रट शो होता ह ै। िलों को अकषयक तरीके से काटकर ईसकी प्रदशयनी लगायी जाती ह ै। 07

    http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A7_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0http://bharatdiscovery.org/india/1927http://bharatdiscovery.org/india/1932http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AAhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4

  • 08

    भ्रमण

    जवाहरलाल नहेरू गार्डन — कसकक्कम के गगंटोक शहर से 24 ककलोमीटर दरू जवाहरलाल नेहरू गाडयन पययटकों के कलए बेहद ही प्रकसद्ध ह ै। आस

    बाग को 1987 में बनाया गया था, कजसकी देखरेख राज्य का वन कवभाग करता ह ै। प्राकृकतक सुंदरता और लपु्त होते पेडों

    को दखेने के कलए यह जगह कािी ऄच्छी ह ै। यहां पर वसेै पेडों की कइ प्रजाकतयां दखेने को कमल सकती हैं, जो ऄब लपु्त

    होती जा रही हैं । कहमालय की पवयत श्रृंखला से पौधों की कइ प्रजाकतयां यहां पर लाकर लगाइ गइ हैं । यहा ंपर अपको 50

    से भी ऄकधक ऄलग तरह के जडी बकूटयों के पेड व पौधे दखे ेजा सकते हैं । यह पाकय बच्चों के मनोरंजन और कपककनक

    थपॉट के रूप में कापी लोककप्रय ह ै।

    गलुाब बाग़ — आस बाग़ को सज्जन कनवास के

    नाम से भी जाना जाता ह ै। यह ईदयपरु

    का सबसे सुंदर और बडा बाग़ ह ै। आसे

    महाराणा सज्जन कसंह ने 100 एकड

    जमीन पर बनवाया था । यह राजथथान

    का सबसे बडा गलुाब के िूलों का

    बाग ह ै।

    गलुाब के िूलों की वजह से आस

    बाग का नाम गलुाब बाग रखा गया ह ै।

    यह गाडयन कपछोला झील की दाइ ंतरि

    कथथत ह ै। आस गाडयन में पययटकों को गलुाब के िूल की ऐसी ककथमें दखेने को कमलती ह ैकजसे कािी दलुयभ माना जाता ह ै।

    आस बाग की कगनती कवश्व के खबूसरूत बागों में होती ह ै । प्राकृकतक सुंदरता पसंद लोगों को आस बाग़ के गलुाब बरबस

    ऄपनी और अककषयत करते हैं । आस गाडयन में सरथवती भवन नाम से एक पथुतकालय भी ह ै। आस बाग में घमूने के साथ

    पययटक ट्वॉय रेन से सैर भी कर सकते हैं और कहरण, मोर, नील गाय, बंदर, खरगोश अकद जानवरों को भी दखे सकते हैं।

    बोटसेनर्ल गार्डन — यूं तो कोलकाता शहर की पहचान रसगलुले और कमष्टी दही और मछली से होती ह ैलेककन प्रकृकत प्रेकमयों के कलए

    यह शहर परुाने घने वकृ्षों के साये तले गमु हो जाने के कलए भी जाना जाता ह ै। बाटकनकल गाडेन कोलकाता के हावडा

    कजले के कशबपरु में कथथत ह ै। यह ऑकचयड, पाम, बैम्बूज एंड प्लांट्स ऑि द पाआन जीनस के कलए प्रकसद्ध ह ै। यह बाग़

    हुगली नदी के ककनारे 270 एकड में बना हुअ ह,ै जहां 1700 ऄलग-ऄलग तरह के पेड-पौधे लगाए गए हैं ।

    बोटेकनकल गाडयन इथट आकंडया कंपनी द्वारा 1787 में बढ़ती वाकणज्यक गकतकवकधयों और बाजार को दखेते हुए

    बनाया गया था । आसके ऄलावा, यहां का बडय हाईस अकषयण का कें द्र ह ै । आस गाडयन की सबसे बडी कवशषेता यह ह ैकक

    यहााँ पर कवश्व का सबसे चौडा बरगद का पेड ह ै144400 वगय मीटर में िैला हुअ ह ै। आस बरगद के पेड को दखेने के कलए

    दरू दरू से सैलानी अते हैं । शीत ऊत ुमें यहां के पेडों पर कवकभन्न प्रजाकतयों के प्रवासी पंकक्षयों का बसेरा होता ह ै। सैलानी

    आन पंकक्षयों को ऄपने कैमरे में कैद करने के कलए अतरु कदखते हैं ।

    आसके ऄलावा कोलकाता और कदलली में कुछ नये बाग़ भी बनाए गए हैं जसेै कदलली में लोदी गाडेन और बदु्धा

    गाडेन तथा कोलकाता के मदैान के पास एक छोटा पाकय बना हुअ जो दखेने में कािी खबूसरूत एव ंमनमोहक ह।ै

    — हवकास कुमार हिपाठी

  • कहानी

    प्राचीन काल में भारतवषय में भानपु्रताप नामक एक राजा थे । वह बहुत ही धमय कनष्ठा एव ंकतयव्य कनष्ठा राजा थे । ईन

    के शासनकाल में प्रजा बहुत ही खशुहाल जीवन व्यतीत कर रही थी । राजा भानपु्रताप ऄपनी प्रजा को ऄपना पररवार

    मानते थे और थवयं को प्रजा का सेवक समझते थे । प्रजा भी राजा को ऄपने प्राणों से ऄकधक प्यार करती थी। परेू राज्य में

    सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, तभी एक कदन राजा भानपु्रताप के राजमहल में साध ुपहुचंे । ईन्होंने राजा से कमलने की

    आच्छा जाकहर की ।

    द्वारपाल ने राजा को सचूना कदया तो राजा बहुत प्रसन्न हुए और साध ुका बहुत ही अदर के साथ राजमहल में

    सम्मान ककया। राजा ने ईसे याद करने का कारण पछूा । साध ुने बडे ही गभंीर भाव से राजा से कहा- ह ेराजन अप के

    संरक्षण में परूा राज्य बहुत ही समकृद्ध एव ंखशुहाल ह।ै हम ऊकष महात्मा बडे ही अराम से यज्ञ तप कर रह ेहैं । हम लोग भी

    बहुत ही खशु ह ैलेककन अने वाला भकवष्ट्य काल ऄच्छा नहीं लग रहा ह ै। ऄतः ऄपना धमय एवं कतयव्य परूा करने के कलए

    मैं अपके पास एक सचूना लेकर अया हू ं। राजा भानपु्रताप कवकथमत भाव से बोले — ह ेमहात्मा, कनसंकोच होकर ऄपनी

    बात बताए ं। मरेा कदल ईस ऄकनष्ट काल को सनुकर यथाशीघ्र ईस समथया को दरू करने के कलए व्याकुल हो रहा ह ै

    साध ुने राजा से कहा- ह े राजन ्अप ऄपना भय एव ंव्याकुलता को छोडकर शांकत एव ंधीरज पवूयक हमारी बात

    सकुनए अपकी जन्मकंुडली हमारे द्वारा बनाइ गइ ह।ै अपके कपताजी को मैंने जन्मकंुडली के गणु दोष के बारे में भली भांकत

    बता कदया था । मैं लंबे समय से समाकध में बैठा था लेककन अज मझु े एहसास हुअ ईसके िलथवरुप मरेी समाकध

    ऄचानक भगं हो गइ और मैं व्याकुल होकर अपके पास अ पहुचंा हू ं लेककन ऄब व्याकुल और ईत्तकेजत होने का

    कबलकुल समय नहीं ह ैबकलक शांकत धीरज और बकुद्धमत्ता पवूयक सब कुछ इश्वर को साक्षी मानते हुए ऄपने कतयव्य का

    पालन करें ।

    मैं अपको बताना चाहता हू ं कक जो घटना राजा परीकक्षत के साथ ऄतं समय में घटी थी वहीं घटना अपके साथ

    घटने वाली ह ै।राजा परीकक्षत को तो सात कदन का समय कमला था और ईन्होंने श्रीमदभगवत ्ग्रंथ के साकनध्य में मकुि प्राप्त

    कर ली थी लेककन अपके पास केवल तीन ही कदन शेष बचे हैं । तीसरे कदन सांप के काटने से अपकी मतृ्य ुहो जाएगी,यकद

    ऐसा हुअ तो अपको नरक लोक में जाना पडेगा ।

    राजा भानपु्रताप भावकु होकर ईस महात्मा जी से ऄपने ईद्धार होने का ईपाय पछूने लग े। तब महात्मा जी बोले- ह े

    राजन कहावत ह ैकक प्रयास करने वालों की कभी हार नहीं होती ह ैकवजय जीवन के अकखरी क्षण में भी कमल सकती है,

    यकद सच्चे मन से एव ंतन्मयता से प्रयास ककया जाए तो ।

    हमारी सलाह ह ैकक अप के महल में चारों तरि से अने वाले राथतों में िूल कबछा कदया जाए । जगह जगह कडाहों

    में मीठा मीठा दधू भरा कदया जाए, जगह-जगह कडाहों में जल भरवा कदया जाए एव ंजगह-जगह राथतों में नाग दवेता को

    खाने के कलए िल एव ंऄन्न की व्यवथथा कर दी जाए । महल के चारों तरि से सरुक्षा व्यवथथा हटा कदया जाए कजससे

    नाग दवेता का ऄपना कतयव्य परूा करने में कोइ व्यावधान ना अए क्योककं यह जीवन तो नाश्वान ह ैपरंत ुजीवात्मा ऄजर

    ऄकवनाशी । आस बात को समझ कर अपके पास जो भी समय शषे ह ैईसे इश्वर के ध्यान में लगा दीकजए ।

    09

  • कहानी

    राजा भानपु्रताप भी एक धमायत्मा राजा थे । ईन्होनें साध ु के बताए गए ईपायों का ऄक्षररशः पालन ककया । नाग

    दवेता ने जब राजा भानपु्रताप के राज्य की सीमा में प्रवशे ककया तो ईनके राथतें में िूल कबछाए गए थे ईन्हें लगा कक राजा

    भानपु्रताप ईनका सम्मान कर रह ेहैं । अग ेबढ़ने पर थवागताथय मीठे मीठे दधू पीने को कमले,और अग ेबढ़ने पर पानी से

    भरे बडे-बडे कडाह ेकमले ।

    ईसमें पानी पीकर ऄपनी प्यास बझुाइ । िल

    खाया, ऄन्न खाया । राथतों के उपर तंब ूलगाए गए

    थे, प्रकाश व पंखों की व्यवथथा की गइ थी । राजा

    के सारे आतंजामों का अनंद ईठाते हुए नागदवेता

    राजमहल के द्वार पर पहुचंे तो राजमहल में नाग

    दवेता को रोकने वाला कोइ प्रहरी ऄथवा

    सरुक्षाकमी नहीं नजर अया ।

    नाग दवेता बहुत अराम से अपका क्या

    कवचार ह ै? राजा भानु प्रताप ने हाथ जोडकर कहा-

    ह े नाग दवेता अपको हमारे पास पहुचंने में यकद

    हमारे द्वारा ककये गये ईपायों में कुछ कमी रह गइ हो

    तो मझु ेमाि कर दीकजएगा । बाकी कजस प्रयोजन

    के कलए अप पधारे हैं ईस काम को प्रसन्नतापवूयक

    परूा कीकजए आसके कलए मैं सदा अपका अभारी

    रहूगंा ।

    नाग दवेता भान ुप्रताप की बात को सनुकर गदगद ्हो गए और बोले- ह ेराजन् अपकी अय ुअज क्षीण हो रही

    ह,ैलेककन मरेे कवचार स ेअपको भी सौ साल और आस धरती पर रहना चाकहए । मैं कवकध का कवधान तो नहीं बदल सकता

    परंत ुमैं कजस काम के कलए अया हू ंईसे परूा करंुगा ही, परंत ुमैं अपका अशीवायद दतेा हू ंकक ऄपनी अय ुके पांच कदन

    अप को प्रदान करता हू ंजो कक अपके पृ् वी लोक में मरेी अय ुके पांच कदन ऄथायत (नाग लोक का 5 कदन पृ् वी के सौ

    वषय) के बराबर होगा। ऄथायत 100 वषय का जीवन दान अपको द ेरहा हू ं। अप आस समय का सदपुयोग कीकजएगा । नाग

    दवेता राजा भान ुप्रताप का शरीर को हलका सा थपशय करके ऄपना काम पणूय ककये और ऄपने धाम को चले गए । राजा

    भानपु्रताप नाग दवेता के प्रभाव से बेहोश हो गए, कजसका ईपचार करने पर वह पनुजीकवत हो गए तथा ऄगले सौ वषों तक

    कनष्ट्कंटक होकर राज ककया । आस कहानी के ऄध्ययन से यह कनष्ट्कषय कनकलता ह ैकक यकद हम प्रेम, सम्मान एव ंअदर के

    साथ शिओु ंसे व्यवहार करना शरुु कर दें तो एक कदन शि ुभी कमि में पररवकतयत हो जाएगा । — चन्रभान

    10

  • कहानी

    11

    गौरैया का पररवार गौरैया का पररवार गौरैया का पररवार मैं ऄपनी पत्नी एव ंचार बच्चों के साथ रेलव ेके क्वाटयर में कनवास करता हू ं । मरेे क्वाटयर में ठीक दरवाज ेके उपर

    ईजाल दान में एक और जगुल कनवास करता था । एक गौरैया एव ंगौरा मरेी ही तरह ऄपने पररवार के भरण-पोषण का

    संपणूय दाकयत्व कनभाते हैं । सबुह शाम जब मरेी नजर आस पररसर में ईस यगुल को दखेती थी तो मरेे मन में करुणा ईमड

    अती थी और मैं कुछ चावल- दाल या किर रोटी के टुकडे प्रकतकदन आस गौरा के पररवार के कलए मकान के बरामद ेया

    कखडकी की दहलीज पर रख दतेा था । आस प्रकार जब कभी मैं बाहर कनकलता तब कुछ कुत्त ेएव ंगौरैयों का समहू मरेी

    प्रतीक्षा करता कक मैं ईनके कलए खाने के कलए कुछ लेकर पहुचंूं । एक कौवा तो आस प्रकार मरेे पररवार का कहथसा बन गया

    था कक जब तक ईसको मैं दो मरेी गोलड कबथकुट नहीं दू ंवह कखडकी पर कांव कांव करता ही रहता ।

    मरेे बच्चे एव ंपत्नी मझुसे कहते कक जाओ ऄपने कौव ेको कुछ जलदी से द ेदो ऄन्यथा यह हमारा जीना हराम कर

    दगेा । जब तक कौव ेकी मनोकामना परूी नहीं होती थी वह कांव-कांव करता ही रहता था । आस प्रकार गौरा का पररवार मरेे

    पररवार का पालत ूऄगं बन गया था । कौव ेको प्रकतकदन भोजन ग्रहण करना हमारे पररवार के जीवन का ऄगं बन गया था ।

    जसैे-जसेै समय व्यतीत हुअ गौरा एव ंगौरैया ने यगुल बच्चों को जन्म कदया । रात कदन दोनों बच्चों की दखेभाल करते

    रहते थे । पर बच्चे ऄपन ेमाता कपता को भोजन के कलए ईठाते ही रहते थ े। ऐसा प्रतीत होता था जसेै कक व ेबहुत भखू ेहों।

    यहां तक कक जब भी कभी बरामद ेकी लाआट जलती गौरैया रात में भी कुछ भोजन ऄपने बच्चों के भरण पोषण के कलए

    व्यवथथा करती रहती एव ं ऄपनी जान की बाजी लगाकर कभी कभी वह कीडे मकोडे कततकलयों को ऄपनी चोच में

    पकडकर बच्चों को कखलाती । जब बच्चों की भखू शांत हो जाती तब वह अराम करने लगती।

    आस प्रकार यह कसलकसला कइ कदनों तक चलता रहा । मैं भी ध्यान रखता था कक कहीं बच्चे भखू ेतो नहीं ह ै । मैं

    प्रकतकदन सबुह-शाम चावल के कुछ दाने मरेे मकान के प्रांगण में डाल दतेा था कजसके कलए मझु ेऄपनी पत्नी की डांट भी

    सनुनी पडती थी कक हमशेा घर को गदंा करते रहते हो । मैं कहता था कक दखेो माया जी धाररया यह मकान हमारा नहीं ह ै

    और ना ही यह शरीर हमारा ह ैतो अप छोटी छोटी बातों के कलए ऄनावश्यक रूप से क्यों गथुसा करती रहती हैं । कइ बार

    हम दोनों पकत पत्नी के बीच में गौरैया एव ंगौरा के बच्चों के कलए लंबी लंबी बहस भी कछड जाती थी । मैं दाशयकनक बातें

    करके ऄपनी पत्नी को समझाने की कोकशश करता था-- कभी भी ककसी वथत ुसे आतना लगाव मत रखो क्योंकक वह ऄपना

    जीवन ककठन कर सकता ह ै। ऐसा करना ककसी के कलए भी खराब होता ह ै। शांकत से जीवन जीने के कलए ऄपने कतयव्य

    का पालन करना होगा ।

    एक कदन संध्या को कुछ ऐसा घकटत हुअ कक मरेी रात दखु में बदल गइ । गौरैया के दोनों बच्चे चीची कर रह ेथे ।

    ईसकी मां को लगा होगा कक बच्चे भखू से परेशान हैं और व ेचींची कर रह ेहैं । वह ऄपने घोंसले से बाहर कनकली और

    ऄपने बच्चों के कलए भोजन बटोर कर लाने लगी । लेककन मझु ेक्या पता था कक मरेे कमरे में चल रहा पंखा आस गौरैया के

    कलए कालराकि बन जाएगा । ट्यबूलाआट के प्रकाश में जसेै ही ईसने एक कततली पकडी एव ंजलदी से बच्चों के पास

    पहुचंाना चाहा तो सीध ेचल रह ेपंख ेसे जा टकराइ एव ंईसके कसर पर गहरी चोट लगी । वह घायल होकर जमीन पर कगर

    गइ । मैं दखेता ही रह गया और । मन में सोचा ह ेपरमात्मा क्या तझु ेऐसा ही थवीकार था ।

    गौरैया के बच्चे चीची करना बंद नहीं कर रह ेथे । पर ईन मासमूों को क्या पता था कक ईनकी मां ऄब ईनके कलए

    कभी भोजन लेकर नहीं अएगी । मैं क्या करंू ऄत्यंत बेचैन हो गया । बच्चे कचचीं करना बंद नहीं कर रह ेथे । आधर मां के

  • कहानी

    12

    शव को धीरे धीरे ईठाया और दखेा कक कहीं काश यह किर से जीकवत हो जाए । बच्चों को भोजन कखला सके । पर

    तकदीर को यह थवीकार नहीं था ।

    गौरैया जसेै ही कगरी मैंने कुछ

    पानी की बूंद ेईसके मुहं में डाला मगर

    वह किर भी जीकवत न हो सकी । ऄब

    बच्चों को जीकवत कैसे रखा जाए । मैं

    बहुत ही दखु के साथ ईसके शव के

    पास गया एव ंएक वकृ्ष के नीचे छोड

    अया । गौरैया के बच्चों की परवररश

    मरेे कंधों पर अ गइ थी । आधर गौरा

    थवयं भी बहुत ईदास एव ं मौन रहता

    था । वह कभी मरेी कखडकी की

    दहलीज पर बहुत ही ईदास मन से

    कइ कदनों तक बैठा रहा । मरेे मन में

    एक ही ख्याल था कक बच्चों को ककस प्रकार से जीकवत रखा जाए । बच्चे आतने छोटे थे कक मैं चाह कर भी मैं ईन्हें भोजन

    नहीं द ेसकता था ।

    क्या ककया जाए यह दखु मझुसे नहीं दखेा जा रहा था । मैंने चावल के छोटे छोटे टुकडों को धीरे-धीरे चीची करते

    हुए बच्चों के मुहं में डालने की कोकशश कक जसेै ही मैंने चावल के छोटे छोटे टुकडे बच्च ेके मुहं में िें के तो बच्चों न े

    ऄचानक ऄपना मुहं खोल कदया । शायद ईन्हें लगा कक ईनकी मां ही ईनके कलए भोजन लेकर वापस अ गइ हो । बच्चों

    की ऄकभलाषा दखे कर मरेा रृदय दखु से भर गया एव ंमरेी अखंों से असं ूबहने लगा और परमात्मा से कहा कक ह ेइश्वर,

    यह तेरी कैसी लीला ह ैकक आन मासमूों से आनका सहारा बचपन में ही छीन कलया । मैंने धीरे धीरे बच्चों के मुहं में चावल

    के कुछ दाने डाले ।

    बच्चों के चावल खा लेने से मझु ेबहुत संतोष कमला । ऄगले कदन मैंने बच्चों के घोंसले से बाहर कनकाल कलया

    एव ंईनकी दखेभाल करने लगा ।सबुह-शाम ईन्हें भोजन पानी दतेा ह ैएव ंअशा करता कक ये बच्चे ककसी प्रकार बडे हो

    जाए ं। जसैा कक ककथमत को मंजरू था बच्चे धीरे-धीरे बडे होते गए ।

    पर एक कदन एक बच्चा ककसी उंचाइ से ईडा एव ंकगर गया । ईसके पंख घायल हो गए ।

    यह घटना भी मरेे कलए बहुत ऄकधक दखुदाइ कसद्ध हुइ । एक कदन एक थवथथ बच्चा मरेे बेटे की साआककल से टकरा

    गया और ईसकी दघुयटना में मौत हो गइ । आसके कलए मैंने ऄपने बच्चे को आतना डांटा की 15 कदनों तक वह घर में ठीक

    से भोजन नहीं कर पाया । आधर घायल बच्चा ऄकेला पड गया था ।

    मरेे ऄनेक प्रयास के बाद भी वह बच्चा पालत ूनहीं बन सका । मैंने ईसे खाना पानी समय-समय पर कदया । एक

    कदन मैंने ईसे ऄपने हाथ में ईठाया और ककचन की कखडकी के तार के उपर बैठा कदया । ऄचानक ईसने ईडान भरी और

    वह बाहर के वकृ्ष की डाली पर जाकर बैठ गया तब मझु ेऐसा लगा कक मरेी जवाबदहेी से मझु ेमकुि कमल गइ । गौरैया के

    पररवार का एक सदथय ऄगले पररवार को अग ेबढ़ाने के कलए, कजदंगी में कुछ पाने के कलए बाहर चला गया । किर वह

    मझुसे कभी नहीं कमला ।

    — कैलाश चंर धाररया

  • तकनीक

    13

    अज के समय में मोबाआल हर ककसी की कजन्दगी का एक महत्वपणूय ऄगं बन चकुा ह ै। मोबाआल तो सभी आथतेमाल

    करते हैं क्या अपको पता ह ैमोबाआल फोन के कुछ ऐसे त्य हैं कजनको जानकार अप दगं रह जायेंग े। चकलए जानते हैं

    मोबाआल के बारे में कुछ कदलचथप जानकारी—

    मोबाआल फोन के द्वारा सबसे पहली कॉल माकटयन कूपर के द्वारा 3 ऄप्रैल 1973 में की गइ थी। यो मोटोरोला कंपनी

    के कमयचारी थे।

    सन 1983 में पहला मोबाआल फोन बनाया गया था जो ऄमरेरका में बना था कजसकी कीमत 2.5 लाख रूपए रखी

    गइ थी । यह मोटोरोला कंपनी का मोबाआल था।

    जापान में 90 प्रकतशत लोग वाटरप्रिू मोबाआल का आथतेमाल करते हैं क्योंकक जापान में लोग नहाते समय भी

    मोबाआल का आथतेमाल करते हैं ।

    अपको यह जानकार हरैानी होगी के 70 प्रकतशत मोबाआल चाइना में बनाए जाते हैं ।

    दकुनया में 49 प्रकतशत लोग ऄपना मोबाआल गमे्स खलेने के कलए आथतेमाल करते ह ै और 30 प्रकतशत लोग

    नेटवककिं ग के कलए आथतेमाल करते हैं ।

    भारत में टॉयलेट से ज्यादा मोबाआल फोन हैं ।

    नोककया का 1100 मोबाआल फोन ऄब तक का सबसे ज्यादा कबकने वाला मोबाआल रहा ह ैआस मोबाआल की कबक्री

    250 कमकलयन से भी ज्यादा हुइ थी । मोबाआल की कहथरी में यह एक ररकॉडय रहा ह।ै

    वषय 2012 में संसार की सबसे बडी कंपनी एप्पल ने 1 सेकंड में 4 मोबाआल बेचे थे याकन के प्रकतकदन 34,0000

    मोबाआल बेचे गए ।

    औसतन एक व्यकि हर रोज ऄपना मोबाआल 100 से ऄकधक वार ऄनलाक करता ह।ै

    ऄब तक का सबसे ज्यादा मोबाआल का कबल 142, 000 पौंड अया था याकन के 1 करोड 36 लाख से कुछ ज्यादा

    यह कबल सेकलना अरोंस को अया था यो फ्लोररडा की रहने वाली थी ।

    यह पढ़कर अपको हरैानी होगी के किटेन में हर वषय 100,000 से भी ऄकधक मोबाआल टॉयलेट में कगर जाते हैं।

    सोकनम एक्सपी 3300 दकुनया का सबसे मजबूत फोन ह ैकजसको 84 िीट की ईंचाइ से कगराने के बाद भी कुछ नहीं

    हुअ । यह फोन कगनीज ऑफ वलडय ररकॉडय में दजय ह ै।

    मोबाआल फोन से पहला मसैेज नील पोप्वोथय ने भजेा था कजसम ेकलखा था Merry Christmas ।

    दकुनया में फोन आथतेमाल करने वालों में से 90 % लोग ऄपने मोबाआल पर अए टेक्थट मसेेज को 3 कमनट के ऄदंर

    पढ़ लेते हैं ।

    अपको यह जानकार हरैानी होगी के संसार के 4 कवकलयन लोगों के