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  • जागरण वार्षिक पर्िका – 2019

    प्रकाशक

    भारतीय भाषा र्वभाग

    र्ि असम वैली स्कूल

    मुख्य सपंािक : डॉ. राजेश कुमार र्मश्र

    सहायक सपंािक : श्रीमान संजय िीर्ित

    सहायक सपंािक मण्डल : श्रीमान पे्रम कुमार र्संह

    : श्रीमान अर्नल कुमार यािव

    : श्रीमती ममता र्मश्रा

    : श्रीमती मनिीप कौर

    : डॉ. पररणीता गोस्वामी

    : श्रीमती प्रार्िना बोरा फूकन

    र्वद्यार्ी संपािक मण्डल : र्सकुनर्प्रया गोस्वामी

    : आरव जैन

    : आयिन खाटूवाला

    : वेिांश र्जंिल

    आवरण सज्जा : अनुष्का जोशी

    : अर्नकेत अनतं जोशी

    : डॉ. राजेश कुमार र्मश्र

    फोटोग्राफ : श्रीमान पे्रम कुमार र्संह

    संपािकीय पता : र्ि असम वैली स्कूल, बालीपारा, शोर्णतपरु (असम)

    ईमेल का पता :[email protected]

  • संपािक की कलम से............

    प्रिय सधुी पाठकगण,

    भारतीय भाषा प्रिभाग की िाप्रषिक पप्रिका जागरण के माध्यम से एक बार पनुः आपसे जडु़ते हुए मझु ेअपार हषि का

    अनभुि हो रहा ह।ै गत िषों की भााँप्रत इस िषि भी हमने अपनी इस पप्रिका में प्रिद्याप्रथियों की भािनाओ ंको पपु्रपपत

    और पल्लप्रित करने का अथक ियत्न प्रकया ह।ै बालमन की भािनाओ ंको शब्द-रूप में मतूि करना ही हमारा

    मखु्य उद्दशे्य ह।ै

    प्रकसी भी प्रिद्यालय की उत्कृष्टता की पहचान उसके प्रिद्याथी होते हैं। अतः मरेी नज़रों में प्रशक्षा का उद्दशे्य तभी

    साथिक होता ह,ै जब प्रिद्याथी पसु्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यािहाररक ज्ञान में भी दक्ष हों। प्रिद्याप्रथियों की

    चंचलता और िचैाररकता को सजृनात्मकता में पररिप्रतित करना ही प्रशक्षक का मलू ध्येय होता ह।ै इसप्रलए हमने

    बाल-मनोभािों को कहानी, प्रनबंध, यािा-संस्मरण एि ंकप्रिता के साथ-साथ प्रचिात्मक स्िरूप में भी िस्ततु करने

    का पणूि ियास प्रकया ह।ै हमारा यही ियास रहा ह ै प्रक प्रिद्यालय के अप्रधकांश प्रिद्याथी इस रचनात्मक कायि में

    अपनी अप्रधकतम ्सहभाप्रगता कर सकें । पयाििरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए प्रिभाग ने ऑन लाइन पप्रिका के

    िकाशन की ओर कदम बढाया ह।ै

    जागरण के सफल िकाशन हते ुसंपादक होने के नाते सिििथम में प्रिद्यालय के िधानाचायि श्रीमान डॉ. प्रिधकेुश

    प्रिमल जी के िप्रत हाप्रदिक कृतज्ञता िकट करता ह ाँ प्रजन्होंने प्रिद्यालय में भारतीय भाषाओ ंके प्रिकास में अपना

    असीम सहयोग िदान प्रकया ह।ै प्रहदंी प्रिभाग के समस्त सहयोप्रगयों श्रीमान संजय दीप्रक्षत, श्रीमान िेम कुमार प्रसंह,

    श्रीमान अप्रनल कुमार यादि, श्रीमती ममता प्रमश्रा एि ंश्रीमती मनदीप कौर जी का भी सहयोग के प्रलए मैं हृदय से

    आभार व्यक्त करता ह ाँ। असप्रमया प्रिभाग की भाषा अध्याप्रपका डॉ. पररणीता गोस्िामी एि ंश्रीमती िाथिना बोरा

    फूकन के साथ-साथ बांग्ला भाषा के अध्यापक श्रीमान मल्हार रप्रक्षत जी का भी मैं आभार व्यक्त करता ह ाँ प्रजन्होंने

    असप्रमया और बांग्ला भाषा की रचनाओ ंके संपादन में अपना अिप्रतम योगदान प्रदया। आशा करता ह ाँ प्रक आप

    हमारे नौप्रनहालों की रचनाओ ंको पनुः अपने हृदय में स्थान दकेर हमें िेररत करेंग।े हम आपके सहयोग एि ंसझुाि

    का सदिै स्िागत और सम्मान करते हैं।

    डॉ. राजेश कुमार र्मश्र

    संपािक, जागरण

    र्हिंी र्वभाग

    र्ि असम वैली स्कूल

    बालीपारा, शोर्णतपुर

    [email protected]

    [email protected]

  • पषृ्ठ संख्या 1 – यह भारत दशे हमारा, मेरा

    अप्रभमान प्रतरंगा, समय का पप्रहया

    पषृ्ठ संख्या 2 – मेरा भारत दशे महान, बीते

    पल, इस कश्मकश का नाम ह ैप्रजं़दगी

    पषृ्ठ संख्या 3 – गााँधी, मााँ

    पषृ्ठ संख्या 4 – सच्चा दशेभक्त, सच्चा दोस्त,

    मेरा भारत महान, हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान

    पषृ्ठ संख्या 5 – हौंसला, मेरा दशे

    पषृ्ठ संख्या 6 – मोबाइल और ररश्ते, प्रजं़दगी,

    क्यों डर लगता ह ैमझेु

    पषृ्ठ संख्या 7 – भारतमाता का मंप्रदर, मेरी मााँ

    पषृ्ठ संख्या 8 – पेड़ हमारे सच्चे साथी, भारत

    दशे ह ैसबसे प्यारा, मैंने देखा

    पषृ्ठ संख्या 9 – दीिारें बनीं घर

    पषृ्ठ संख्या 10 – गांधी : एक आदशि, पररितिन

    पषृ्ठ संख्या 11 – आप्रटिकल 370

    पषृ्ठ संख्या 12-13 – पाइका प्रिद्रोह

    पषृ्ठ संख्या 14 – राजगरुु महापािा, गीता : एक

    िेरणा

    पषृ्ठ संख्या 15 – असली प्रिजेता

    पषृ्ठ संख्या 16 – मैं जीत गया

    पषृ्ठ संख्या 17 – आप्रखर मैं बेहोश क्यों हुई ?

    पषृ्ठ संख्या 18 – गलती का एहसास

    पषृ्ठ संख्या 19 – छूकर मेरे मन को – हषि

    अग्रिाल

    पषृ्ठ संख्या 20 – छूकर मेरे मन को – आयिन

    साह

    पषृ्ठ संख्या 21 – छूकर मेरे मन को – ओजस

    ज्योप्रत बोरा हजाररका

    पषृ्ठ संख्या 22 – छूकर मेरे मन को – कपीश

    हरप्रसंगपरुरया

    पषृ्ठ संख्या 23 – छूकर मेरे मन को – श्रपु्रत

    कोठारी

    पषृ्ठ संख्या 24 – प्रहदंी िगि पहलेी

    पषृ्ठ संख्या 25 – मेधा परीक्षण

    पषृ्ठ संख्या 26 – रास्ता ढूाँप्रढए

    पषृ्ठ संख्या 27 – दखेो हाँस न दनेा

    अनुक्रमर्णका

  • यह भारत िेश हमारा

    सप्रदयों से सम्माप्रनत पपू्रजत

    िदे-मिं, गीता से गुपं्रजत

    िेम-भाि सररता से प्रसंप्रचत

    दपु्रनया भर से यह प्यारा

    यह भारत दशे हमारा।

    यहााँ ऋप्रष मपु्रनयों की िाणी

    महापरुुषों की अमर कहानी

    मानिता की अप्रमट प्रनशानी

    सकल प्रिश्व से यह न्यारा

    यह भारत दशे हमारा।

    गीता और कुरान यहााँ पर

    गरुुिाणी का मान यहााँ पर

    सकल गणुों की खान यहााँ पर

    सबकी आाँखों का तारा

    यह भारत दशे हमारा।

    गणुकारी औषप्रधयों का घर

    अतंररक्ष की शान यहााँ पर

    सात स्िरों िास यहााँ पर

    नप्रदयों की कल-कल धारा

    यह भारत दशे हमारा।

    काव्य बागरोर्डया

    किा-िसवीं

    मेरा अर्भमान र्तरंगा

    तीन रंगों से सजा प्रतरंगा

    भारत का अप्रभमान प्रतरंगा

    सेना की ह ैशान प्रतरंगा

    भारत की पहचान प्रतरंगा।

    िीरों की तलिार प्रतरंगा

    खप्रलहानों का तेज प्रतरंगा

    दशेिेम की ज्योप्रत प्रतरंगा

    बप्रलदानों का भान प्रतरंगा।

    खपु्रशयों की सौगात प्रतरंगा

    दपु्रखयों का अिलंब प्रतरंगा

    हर मानस के साथ प्रतरंगा

    िेम-भाि से भरे प्रतरंगा।

    जीिन का संचार प्रतरंगा

    खशुहाली का भाि प्रतरंगा

    प्रमिों का ह ैप्रमि प्रतरंगा

    दशु्मन का ह ैकाल प्रतरंगा।

    शौयि केर्डया

    किा-िसवीं

    समय का पर्हया

    समय का पप्रहया चले प्रनरंतर

    सबको यही प्रसखाता ह ै

    जो चलता ह ैप्रबना रुके बस

    मपं्रजल िह ही पाता ह।ै

    रुक जाने से थमता जीिन

    गात प्रशप्रथल हो जाता ह ै

    गप्रत के साथ कमि जो करता

    स्िस्थ िही कहलाता ह।ै

    जागरण पृष्ठ संख्या 1

  • सररता हर पल कल-कल बहती

    स्िच्छ नीर ले जाती ह ै

    ठहरे ताल के पानी में

    दगुधं सदा ही आती ह।ै

    सम्राट गुप्ता

    किा-िसवीं

    मेरा भारत िेश महान

    दपु्रनया भर के सब दशेों में

    सबसे ऊाँ ची अपनी शान

    िगप्रत के पथ पर आग ेबढता

    मरेा भारत दशे महान।

    यहााँ सभी लोगों का स्िागत

    सबका ह ैसम्मान यहााँ

    गगंा की इस अमर धरा-सा

    दजूा कोई धाम कहााँ।

    गीता और कुरान यहााँ पर

    गौतम बदु्ध का ज्ञान यहााँ

    राम-कृपण की कमिभपू्रम-सा

    कोई पािन धाम कहााँ।

    िीर शहीदों की यह भपू्रम

    प्यार प्रदलों में रचती ह ै

    मातभृपू्रम के दीिानों के

    रग-रग में यह बसती ह।ै

    आरव जैन

    किा-िसवीं

    बीते पल

    समय गजुर जाने पर हमको

    बीते पल याद आते हैं,

    तन-मन में उल्लास जगाकर

    बेचैनी कर जाते हैं।

    बचपन का िह अल्हड़पन

    प्रदल में शोर मचाता ह,ै

    प्रमिों के संग खले खलेना

    सब कुछ ही याद आता ह।ै

    प्रदन की उछलकूद और मस्ती

    प्रफर एक बार बलुाती ह,ै

    बीते गए जो बचपन में पल

    उनकी प्रफर याद आती ह।ै

    हृियांश गोयल

    किा-सातवीं

    इस कश्मकश का नाम है र् ंिगी

    कसक हुई कुछ प्रदल में

    आाँख में हुई नमी

    पछू उठा हर अश्क मरेा

    क्या इसी कश्मकश का नाम ह ैप्रज़दंगी ?

    कुछ पंख फैलाती

    कुछ जनुनू में थरथराती

    कहीं प्रगरती, कहीं संभलती

    कुछ प्रहचप्रकचाती

    कभी दबे पााँि आती

    क्या इसी कश्मकश का नाम ह ैप्रज़दंगी ?

    हर ज़रे में त ूह ै

    हिा के रुख़ में त ूह ै

    खलुी आाँखें तो,

    खलेु आसमान में त ूह ै

    जागरण पृष्ठ संख्या 2

  • हर साये, हर रास्त े

    हर मकाम में त ूह ै

    हल्की-सी जो हुई आहट

    तो भी तेरी ही गूाँज

    कैसी ह ैयह कश्मकश

    क्या इसी कश्मकश का नाम ह ैप्रज़दंगी ?

    कभी कहीं त ूसरल पहलेी

    कभी कहीं त ूजिाब अनोखा

    कभी कहीं त ूअनसही उलझन

    कभी कहीं त ूप्यार का धोखा

    कभी कहीं त ूबहती जाती

    कभी कहीं त ूरुकी जिानी

    क्या इसी कश्मकश का नाम ह ैप्रज़दंगी।

    कुछ ररश्ते गहरे, कुछ हाथ छूटे

    कुछ महकी आस, कुछ ख्वाब टूटे

    कुछ पाने की चाह कभी

    कभी एक आरज ूप्रबखरी

    कभी मकुप्रम्मल जहां

    कभी यह खाप्रलश कहीं

    कभी कहीं गमुराही, गमुनामी

    कभी कहीं रुकती, थमती

    जसैी भी ह ैमरेी या तेरी

    पर यही ह ैिह कश्मकश

    प्रजसका नाम ह ैप्रज़दंगी।

    डॉ. पूजा जैन बैंजार्मन

    अध्यार्पका अंगे्रजी र्वभाग

    गांधी

    एक महात्मा पहनके चश्मा

    लेकर लाठी हाथ

    गात में धोती, हाथ में लाठी

    प्रलए सत्य का साथ।

    मानिता के साथ अप्रहसंा

    करता सदा ियोग

    पाठ प्रसखाता गीता का िह

    कमि-िचन का योग।

    दखे दशे की हालत उसने

    छोड़ प्रदया सखु धाम

    मानिता की रक्षा के प्रहत

    प्रकए सदा सब काम।

    ऊाँ च-नीच के भदेभाि को

    उसने दरू भगाया

    अपने अथक ियत्नों से

    बदली दशे की काया।

    अगं्रेजों के मन में उसने

    सत्य का खौफ़ जगाया

    दशे हुआ आज़ाद हमारा

    िह रापरप्रपता कहलाया।

    हमराज र्संह जस्सल

    किा-ग्यारहवीं

    मााँ

    मााँ ने हमको जन्म प्रदया

    उसने सारा कष्ट सहा

    चलना उसने प्रसखलाया

    सदा प्यार ही प्रदखलाया।

    घर पर हमें पढाती ह ै

    खाना गरम प्रखलाती ह ै

    अच्छी बात बताती ह ै

    पढना हमें प्रसखाती ह।ै

    बच्चों के संग रहती ह ै

    सब दःुख खदु ही सहती ह ै

    चैन नींद की दतेी ह ै

    हम सबसे कम सोती ह ै

    दपु्रनया की परिाह नहीं

    मााँ जसैी कोई छााँह नहीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 3

  • ईश्वर का िरदान ह ैमााँ

    हम बच्चों की जान ह ैमााँ।

    र्हमांशु गोयनका

    किा-सातवीं

    सच्चा िेशभक्त

    दशे की खाप्रतर जान लटुाना

    शि ुके दल पर चढ जाना

    भारत मााँ की लाज बचाना

    यह ह ैदशेभक्त का काम।

    सीमाओ ंपर हर पल डटना

    अपने कदम न पीछे रखना

    चनुौप्रतयों से हरदम लड़ना

    यह ह ैदशेभक्त का काम।

    भकंूप हो या सखूा आए

    नप्रदयााँ बााँध तोड़ उफनाएाँ

    पीप्रड़त की जो मदद को आए

    यह ह ैदशेभक्त का काम।

    काश्वी अग्रवाल

    किा-सातवीं

    सच्चा िोस्त

    सच्चा दोस्त िही ह ै

    जो मपु्रश्कल में साथ द े

    गलत राह में जाने पर

    हमको कसकर डााँट द।े

    साथ हमारा कभी न छोडे़

    हमसे मखु िह कभी न मोडे़

    राह में प्रजतने आएाँ रोडे़

    उनकी प्रदशा तरंुत िह मोडे़।

    साथ हमशेा सच का पकडे़

    हाथ कभी न मरेा झटके

    अधंेरा हो अगर राह में

    िह मरेी बाती बन जाए।

    र्नशांता बोरा

    किा-पाचवीं

    मेरा भारत िेश महान

    मरेा भारत बहुत महान

    प्रिश्व में अलग ह ैइसकी शान

    सबुह-सबुह प्रचप्रड़यों का डेरा

    हर प्रदल में ईश्वर का बसेरा

    सबुह उठे मप्रस्ज़द से अजान

    मरेा भारत बहुत महान।

    इसकी नप्रदयााँ कल-कल बहतीं

    खतेों में हररयाली भरतीं

    कोयल मीठे गीत सनुाती

    सब लोगों का मन बहलाती

    मपं्रदर में घण्टों का नाद

    मरेा भारत बहुत महान।

    र्सद्धी पाठक

    किा-सातवीं

    हमारा प्यारा र्हंिुस्तान

    प्रिश्व में ह ैइसकी पहचान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान

    यहााँ सब धमों का सम्मान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान।

    प्रहमालय पिित सबसे महान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान

    यहााँ की नप्रदयााँ हमारी जान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान।

    जागरण पृष्ठ संख्या 4

  • यहााँ सब रत्नों की ह ैखान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान

    यहााँ िकृ्षों में बसें भगिान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान।

    यहााँ सब पहने प्रिप्रिध पररधान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान

    हमें इस धरती पर अप्रभमान

    हमारा प्यारा प्रहदंसु्तान।

    सौम्या अग्रवाल

    किा- आठवीं

    हौंसला

    प्रदल में हमशेा एक िश्न होता है

    आप्रखर सफलता कब आएगी ?

    कोप्रशशों के बाद भी

    महेनत के साथ भी

    यह भय बना रहता ह।ै

    समय तेजी से दौड़ता ह ै

    आशा की प्रकरण चमकती ह ै

    जोश छलकता ह,ै लेप्रकन

    समय हमेशा प्रकसका साथ दतेा ह ै

    यह भय बना रहता ह।ै

    प्रदल की धड़कने बढती हैं

    सााँसें तेजी से चढती हैं

    जीत की आरज ूजगती ह ै

    कहीं हम प्रपछड़ न जाएं

    यह भय बना रहता ह।ै

    हौंसले बनते हैं

    अरमान पनपते हैं

    दरूरयााँ घटती हैं

    तभी अचानक मन में

    तफू़ान आने का

    बात प्रबगड़ जाने का

    यह भय बना रहता ह।ै

    कृष अग्रवाल

    किा- ग्यारहवीं

    मेरा िेश

    हररयाली से भरी धरा पर

    फूलों का श्रृंगार ह ै

    रंग-प्रबरंगी प्रततली इसके

    सुंदर से पररधान हैं।

    नप्रदयों की बहती धारा से

    मखुररत सुंदर तान ह ै

    सरूज की प्रकरणों से जगमग

    सुंदर सकल प्रितान ह।ै

    ऊाँ चे प्रशखर प्रहमालय के

    दतेे औषप्रध का दान हैं

    केसर की सुंदर क्यारी सब

    काश्मीर की शान हैं।

    सागर चरण पखारे इसके

    रत्नों की यह खान ह ै

    सकल प्रिश्व के सब दशेों में

    मरेा दशे महान ह।ै

    र्सकुनर्प्रया गोस्वामी

    किा- ग्यारहवीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 5

  • मोबाइल और ररश्ते

    भीड़ से भरी दपु्रनयााँ में

    हमारे पास समय कहााँ,

    नज़र घमुाओ प्रजस तरफ

    सब लगते हैं व्यस्त यहााँ।

    मोबाइल की दपु्रनया में

    सभी जन डूब रह ेहैं,

    अपनों के पास बैठे हुए

    लेप्रकन फोन में डूब रह ेहैं।

    भाई-बहन और माता-प्रपता से

    हम बहुत दरू हो गए हैं,

    फोन के काल्पप्रनक जगत में

    हम सब खो गए हैं।

    प्रजतने पास नहीं ररश्ते

    उससे ज्यादा प हैं,

    मोबाइल में डूब चकेु सब

    अब ररश्तों में गपै हैं।

    बसुमन लोर्हया

    किा- िसवीं

    र् ंिगी

    प्रज़दंगी एक लहर की तरह

    कभी उठती

    तो कभी प्रगरती ह,ै

    प्रज़दंगी एक प्रकताब की तरह

    कभी खलुती

    तो कभी बंद होती ह।ै

    प्रज़दंगी एक दौड़ की तरह

    कभी तेज

    तो कभी धीमी होती ह,ै

    प्रज़दंगी एक मोड़ की तरह

    कभी तीव्र

    तो कभी सामान्य होती ह।ै

    प्रज़दंगी खले के मदैान की तरह

    कभी जीतती

    तो कभी यहााँ हार होती ह,ै

    प्रज़दंगी एक परछाई की तरह

    कभी लम्बी

    तो कभी छोटी होती ह।ै

    प्रज़दंगी एक उलझन की तरह

    कभी सलुझी

    तो कभी अनसलुझी रहती ह,ै

    प्रज़दंगी एक पैगाम की तरह

    कभी खशुी

    तो कभी बेहद गम दतेी ह।ै

    उत्कषि अग्रवाल

    किा- िसवीं

    क्यों डर लगता है मुझे ?

    लोगों की भखूी प्रनगाहों से

    अतपृ्त मन की आहों से

    अकेली सनूसान राहों से

    क्यों डर लगता ह ैमझु े ?

    मैं भी तो एक इसंान ह ाँ

    सरलता की पहचान ह ाँ

    प्रफर भी अकेली होने पर

    क्यों डर लगता ह ैमझुे ?

    जसैी भी ह ाँ,अनमोल ह ाँ

    खदु में बहुत ही मौन ह ाँ अपने प्रिचार बताने में

    क्यों डर लगता ह ैमझुे ?

    सा रूप प्रदया उस रब ने

    इसको क्यों कोसा ह ैसबने

    जागरण पृष्ठ संख्या 6

  • लोगों की सोच से लड़ने में

    क्यों डर लगता ह ैमझु े?

    सृर्ि बजाज

    किा - आठवीं

    भारत माता का मंर्िर

    भारत माता के मपं्रदर में

    प्रफर न कोई दशु्मन आ पाए,

    जान भले ही जाए मगर

    कश्मीर न यह जाने पाए।

    मााँ कह द ेआज सपुिुों को

    कश्मीर जगाता ह ैतुमको,

    जागो राणा, जागो भामा

    कश्मीर बलुाता ह ैतुमको।

    काली थी रात अमािस की

    जब आयाििति ही दहल गया,

    रो पड़ा प्रबलखकर ननकाना

    तक्षप्रशला पाक में समा गया।

    कट गई ंभजुाए ंजननी की

    बन गया पाक और भारत दशे,

    असंख्य शहीद हो चले गए

    बाँट गया अपना प्यारा स्िदशे।

    रक्षा कर लो डल झलेम की

    प्रबखरा न सकें अरर अगंारे,

    जान भले ही जाए मगर

    कश्मीर नहीं जाने पाए।

    अर्नल कुमार यािव

    र्हिंी अध्यापक

    मेरी मााँ

    जब मैं हाँसता, िह भी हाँसती

    मझु ेकभी न रोने दतेी

    कोई भी पीड़ा आने पर

    मरेे सारे दःुख हर लेती।

    मझु ेप्रखलाकर तब खदु खाती

    कभी-कभी भखूी रह जाती

    मझु ेसलुाती सूख ेप्रबस्तर पर

    िह खदु गीले पर सो जाती।

    मझु ेकभी चोट लगने पर

    उसने सारा ददि उठाया

    मैं दपु्रनया में खशुनसीब ह ाँ

    मरेे ऊपर ह ैमााँ का साया।

    दपु्रनया सारी क्षणभगंरु ह ै

    न जाने कब क्या हो जाए

    मााँ की ममता ह ैप्रजसके संग

    उसे कष्ट कभी छू न पाए।

    दपु्रनया भर की सखु-सपु्रिधाएाँ

    छोड़ हमशेा मााँ को चनुना

    मााँ से हारे सभी दिेगण

    मााँ की हमशेा पजूा करना।

    आयिन खाटूवाला

    किा - ग्यारहवीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 7

    मााँ और जन्मभूर्म स्वगि से भी बढ़कर होती हैं।

  • पेड़ हमारे सच्चे सार्ी

    पेड़ हमारे सच्चे साथी

    हरदम साथ प्रनभाते हैं

    फल और फूल हमें दकेर

    सारा जग महकाते हैं।

    जहााँ कहीं भी धपू प्रनकलती

    छाया हमें प्रदलाते हैं

    औषप्रधयााँ दकेर हम सबको

    जीिन स्िस्थ बनाते हैं।

    लगती जब भी भखू प्रकसी को

    ताज़ ेफल तरुत प्रखलाते हैं

    िषाि लाकर तप्त धरा की

    तरुत ही प्यास बझुाते हैं।

    र्नहाल जजोर्डया

    किा - सातवीं

    भारत िेश है सबसे प्यारा

    भारत दशे ह ैसबसे प्यारा

    आओ इस ेसजाएाँ हम,

    ये ह ैअपनी धरती माता

    इसको शीश निाएाँ हम।

    प्रतलक, बोस, आज़ाद ह ैजन्में

    इस भारत की भपू्रम पर,

    आओ गिि करें हम अपने

    दशे के िीर जिानों पर।

    भारत की धरती पर रहते

    प्रहन्द,ू मपु्रस्लम, प्रसक्ख, ईसाई,

    आपस के भाईचारे से

    दपु्रनया में तारीफ़ ह ैपाई।

    यह संस्कृप्रत का दशे ह ैयारों

    इस धरती पर स्िगि ह ैयारों,

    इसका प्रतरंगा सबसे प्यारा

    भारत अपना दशे ह ैन्यारा।

    अनन्या यािव

    किा - चौर्ी

    मैंने िेखा है

    दपु्रनया बदल गई ह ै

    यह सबको कहते दखेा ह ै

    पर मैं यह कैसे कह दूाँ

    जब बहुत दखेना बाकी ह ै

    मैंने दखेा इस दपु्रनया को

    अक्सर रंग बदलती ह ै

    कहती ह ैकुछ प्रकसी एक से

    दजू ेसे कुछ कहती ह।ै

    प्रकस्मत को रोते दखेा ह ै

    मैंने बहुत से लोगों को

    कमि के पथ से हटते दखेा

    मैंने कुछ इसंानों को

    ईमानदार का जीना मपु्रश्कल

    मौज कर रह ेझठेू हैं

    अपनी धनु में लग ेहुए बस

    परप्रहत में सब रीते हैं।

    दपुकमों की ख़बरें सनुकर

    गसु्सा मन में आता ह ै

    जाप्रलम को क्यों सज़ा में दरेी

    सोच के मन घबराता ह ै

    घटु-घटु कर मरते दखेा ह ै

    महेनत करने िालों को

    मौज तरक्की करते दखेा

    साहब जी के प्यादों को।

    अंशु कुमारी

    किा - ग्यारहवीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 8

  • िीवारें बनीं घर

    हम सबका एक ही घर होता ह-ै

    िह घर जहााँ हमारा बचपन

    गजु़रा, जहााँ हमारे मााँ-बाप रहते

    हैं और जहााँ हमने सारे सखु

    दखु दखे ेऔर जीिन के सभी

    पलों को प्रजया। पर..... आज मरेे पास एक नहीं दो

    घर हैं। एक मरेा अपना घर और एक मरेा स्कूल – प्रद

    असम िलैी स्कूल। जब मैं अपने पहले प्रदन को याद

    करती ह ाँ तो मझु ेयकीन नहीं आता प्रक कैसे कुछ ही

    सालों में मझु ेएक अजंान जगह से इतना लगाि हो

    गया प्रक मन करता ह ैप्रक परूी प्रज़दंगी ही यहााँ गजुार

    दूाँ। लेप्रकन जीिन चलते रहने का नाम ह।ै

    आज पााँच सालों बाद जब मैं स्कूल में अपने पहले

    प्रदन को याद करती ह ाँ तो मझु े एक अलग सा

    एहसास होता ह।ै मैं यहााँ कक्षा आठ में दाप्रखले के

    प्रलए 2015 में आयी थी। जब मरेी मााँ ने मझुसे पछूा

    प्रक क्या तमु्हें असम िलैी स्कूल में पढना ह,ै तब मैंने

    बड़ी खशुी से िहााँ पढने का मन बना प्रलया था और

    जब मैं ििशे परीक्षा दनेे आई तो स्कूल दखेकर मरेे

    पैरों तले ज़मीन ही प्रखसक गयी। मैंने इतना बड़ा

    स्कूल पहले कभी नहीं दखेा था। स्कूल पररसर दखेन े

    के प्रलए जब मझु ेएक जगह से दसूरी जगह ले जाया

    गया तो मझु ेलगा प्रक मैं प्रकसी भलू भलैुया में आ

    गयी ह ाँ। स्कूल दखेते दखेते मेरे पैरों में ददि सा होन े

    लगा था। इतना बड़ा स्कूल भी होता ह ै मझु े तब

    समझ में आया। िहााँ का मौसम बहुत खशुनमुा था।

    सब कुछ सोच प्रिचारकर मैंने अपना मन बना प्रलया

    था प्रक मझु ेयहीं पर पढना हैं। ििशे परीक्षा के चार

    प्रदनों के बाद अपना पररणाम दखेकर मरेी यह

    कामना परूी हो गयी और मरेा दाप्रखला प्रद असम

    िलैी स्कूल में हो गया। मैंने खशुी खशुी स्कूल जाने

    की तैयारी की और आप्रखर िह प्रदन आ ही गया

    जब मझु ेअपना घर छोड़कर जाना पड़ा।

    घर छोड़ते समय मझु े थोड़ा दखु तो हुआ प्रक क्या

    पता िहााँ घर जैसा माहौल प्रमलेगा या नहीं पर अपने

    सपनों को परूा करने के प्रलए एक प्रदन सबको अपना

    घर छोड़ना ही पड़ता ह,ै इसप्रलए थोड़ी दरे बाद ही

    मरेा यह दखु दरू हो गया क्योंप्रक अब मझु े अपने

    जीिन के सपनों को भी साकार करना था। 10 घटें

    की थकान भरी यािा के बाद जब मैं स्कूल पहुाँची

    तब मझु े कोप्रपली सदन ले जाया गया। जब मरेा

    सामान मरेे कमरे में रखिा कर मरेे माता-प्रपता िहााँ

    से जाने की तैयारी करने लग ेतब उस पल मझु ेअदंर

    से बहुत ही दखु हुआ और मैं रो पड़ी। मझु े रोता

    दखेकर मरेे माता- प्रपता भी अपने आाँस ून रोक पाये।

    उनके जाने के बाद हॉस्टल की लड़प्रकयों ने मझुे

    संभाला और मझु ेयहााँ के बारे में बताने लगीं। धीरे

    धीरे सब मरेी अच्छी दोस्त बन गई ं और मझुे

    अपनेपन का एहसास होने लगा।

    मरेे हॉस्टल की दीिारों ने कब घर का रूप ल े प्रलए

    मझु े पता ही नहीं चला। मैं यहााँ के पररिशे में परूी

    तरह से ढल गयी। आज मैं यहााँ बहुत खशु ह ाँ और

    मझु ेपता ह ै प्रक कुछ महीनों बाद ही मरेी पढाई परूी

    हो जाएगी और मझुे यहााँ से जाना होगा। शायद यहााँ

    से जाने पर मरेी आाँखों में उतने ही आाँस ूहोंग ेप्रजतने

    यहााँ आने के समय मरेी आाँखों में थे। प्रज़दंगी के ये

    चार साल मरेे जीिन में हमेशा अप्रिस्मरणीय रहेंग।े

    शगुन अग्रवाल

    किा – ग्यारहवीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 9

  • गांधी : एक आिशि

    भारत के रापरप्रपता कहलाने

    िाले गांधी जी का जन्म 2

    अक्टूबर 1869 को गजुरात के

    पोरबंदर नामक स्थान पर हआु था। बचपन में िे

    आम बालकों के समान शरारती और असहज

    प्रियाकलाप करने िाले थे। धीरे-धीरे ि े जसैे-जसैे

    बडे़ होते गए िसैे-िसैे उनमें अकल्पनीय पररितिन

    होते चले गए। उनके आचरण और व्यिहार में आए

    सकारात्मक पररितिनों ने उन्हें एक आम आदमी से

    आदशि व्यप्रक्त बनने का मागि िशस्त प्रकया। गांधी जी

    ने अपनी िारंप्रभक प्रशक्षा-दीक्षा भारत में और उच्च

    प्रशक्षा प्रिदशे से अप्रजित की। जब ि ेउच्च प्रशक्षा के

    प्रलए प्रिदेश गए तो उनके मन में एक व्यािसाप्रयक

    रूप से सफल व्यप्रक्त बनने की इच्छा थी लेप्रकन जब

    ि े प्रिदशे से िापस लौटे तो उनका लक्ष्य पररिप्रतित

    हो चकुा था।

    गांधी जी ने न केिल भारत की आज़ादी में अपना

    अप्रिस्मरणीय योगदान प्रदया िरन ् प्रिश्व-पटल पर

    होने िाले अन्याय के प्रखलाफ़ भी अपनी आिाज़

    बलंुद की। दप्रक्षण अफ्रीका में काले-गोरे के बीच

    होने िाले भदेभािपणूि रियैे के प्रखलाफ भी गांधी जी

    ने आदंोलन चलाया और प्रजसमें उन्हें जीत हाप्रसल

    हुई। भारत को गलुामी की जंजीरों से आज़ाद कराने

    के प्रलए उन्होंने भारत के जनमानस को एक ध्िज के

    नीचे एकप्रित प्रकया। लोगों को साथ लेकर उन्होंने

    अगं्रेजों के प्रखलाफ भी आदंोलन खडे़ प्रकए। भारत

    में फैली हुई जाप्रत-पााँप्रत की खाई को पाटने के प्रलए

    भी गांधी जी अनेक ियास प्रकए। गांधी जी के अथक

    ियासों के कारण ही भारत में जन-जागरण हुआ।

    भारत के लोग उनको प्रपता के समान मानकर उनका

    आदर प्रकया करते थे। गांधी जी ने भारत के लोगों

    को यह भी प्रसखाया प्रक दमन के प्रखलाफ आिाज़

    उठाने से ही दमन का अतं प्रकया जा सकता ह ै

    लेप्रकन हमें कभी भी प्रहसंा का सहारा नहीं लेना

    चाप्रहए क्योंप्रक प्रहसंा से प्रहसंा पर प्रिजय नहीं िाप्त

    की जा सकती।

    भारत के लोगों को सत्य और अप्रहसंा की अमोघ

    शप्रक्त गांधी जी ने ही िदान की। सत्याग्रह और

    असहयोग जसैे बडे़-बडे़ आदंोलनों को खड़ाकर

    गांधी जी ने यह प्रदखा प्रदया प्रक अप्रहसंा में प्रकतनी

    बड़ी शप्रक्त होती ह।ै गांधी जी का सबसे बड़ा प्रसद्धांत

    था प्रक बरुा मत दखेो, बरुा मत सनुो और बरुा मत

    बोलो। गांधी जी ने जीिन पयिन्त अपने बनाए

    प्रसद्धांतों का पालन कर लोगों के समक्ष एक आदशि

    आचरण िस्ततु प्रकया। आज सभी भारतिासी गांधी

    जी को रापरप्रपता के रूप में याद करते हैं। आज हमारे

    दशे में ही नहीं बप्रल्क प्रिदशेों में भी गांधी के प्रिचारों

    को सराहा जाता ह।ै ि ेकेिल हमारे ही पजू्य नहीं हैं

    बप्रल्क सारा प्रिश्व गांधी को एक महामानि मानकर

    उनके प्रसद्धांतों को अपने जीिन में उतारने का ियास

    करता ह।ै

    गांधी प्रिद्याप्रथियों के प्रलए भी िेरणा-स्रोत हैं। आज

    हम गांधी को एक व्यप्रक्त न मानकर एक प्रिचार

    मानते हैं। गांधी जी समय को बहुत ही मलू्यिान

    मानते थे और यही कारण था प्रक ि े हमेशा अपनी

    कमर में घड़ी को लटकाकर रखते थे। गांधी जी को

    समय व्यथि करना प्रबल्कुल पसंद नहीं था। यप्रद

    प्रिद्याथी गांधी जी के प्रिचारों में से समय-पालन और

    सादगी के प्रिचारों को अपना ले तो सहजता स े

    सफलता प्रमल सकती ह।ै

    कृतार्ाि कौर्शक

    किा – सातवीं

    पररवतिन

    पररितिन िकृप्रत का प्रनयम ह।ै सपृ्रष्ट

    के कण-कण में पररितिन अप्रनिायि

    रूप से प्रदखाई दतेा ह।ै प्रबना

    पररितिन के संसार धीरे-धीरे नीरस

    जागरण पृष्ठ संख्या 10

  • हो जाएगा। पररितिन से ही जीितंता बनी रहती ह।ै

    यप्रद हम एक से स्िरूप का अिलोकन करते रहें तो

    प्रनप्रित ही उससे मन में बोप्रझलता का भाि आने

    लगता ह।ै िकृप्रत भी समयानसुार अपने अदंर

    पररितिन लाकर लोगों को आकप्रषित करती रहती ह।ै

    लोगों की आदत एि ंिकृप्रत भी पररितिनीय ह।ै िह

    कभी प्रकसी के िप्रत अच्छा हो जाता ह ै तो कभी

    प्रकसी के िप्रत बरेु व्यिहार का िदशिन करने लगता

    ह।ै मानि जाप्रत भी पररितिन के सिू में बाँधी हुई ह।ै

    यप्रद भोजन भी मनपुय को एक जसैा प्रमलता रह ेतो

    एक सा समय अिश्य आएगा जब िह उससे ऊब

    जाता ह।ै यही कारण ह ै प्रक हम बदलाि के साथ

    रहना बेहतर मानते हैं।

    आज हम दशे की पररप्रस्थप्रत की समीक्षा करें तो हम

    पाएगं े प्रक समाज में अराजकता और असप्रहपणतुा

    का मखु्य कारण मानिीय व्यिहार ही ह।ै यप्रद यह

    मानिीय व्यिहार समाज के िप्रत अपेप्रक्षत नहीं होता

    ह ैतो समाज में प्रिसंगप्रतयााँ पैदा होती हैं और इन्हीं

    प्रिसंगप्रतयों के कारण सामाप्रजक द्वषे की भािना का

    जन्म होता ह।ै यप्रद हम प्रिश्व-पटल की चचाि करें तो

    हम दखेते हैं प्रक सामाप्रजक प्रस्थरता और तटस्थता न े

    ही िांप्रतकारी पररितिन को जन्म प्रदया ह।ै भारत देश

    के पररपेक्ष्य में यह दखेें तो हम पाएगं ेप्रक कभी भारत

    सोने की प्रचप्रड़या कहलाता था लेप्रकन आज िह

    आप्रथिक मदंी से जझूता हुआ रापर ह ैप्रजसके पास न

    जाने अप्रशक्षा, भखुमरी और बेरोजगारी समते

    प्रकतनी समस्याएाँ हैं। आने िाले समय में इनका भी

    कोई न कोई हल प्रनकलेगा और यह रापर पनुः

    उसकी अपनी सनुहरी पहचान को हाप्रसल करेगा।

    मरेा मानना ह ै प्रक सामाप्रजक सोच ही पररितिन का

    िथम चरण ह।ै

    आज का समय जनजागरण का समय ह।ै लोगों की

    सोच तेजी से बदल रही ह ै और यह बदलती हुई

    सोच ही मानि को पररितिन की ओर ले जाकर एक

    निीन रापर को जन्म दगेी। संसार में कुछ भी प्रस्थर

    नहीं ह।ै अप्रस्थर संसार में प्रकसी भी चीज़ को प्रस्थर

    रखना प्रकसी चनुौती से कम नहीं ह।ै आज धीरे-धीरे

    प्रिश्व में मीप्रडया का िभाि बढ रहा ह ै प्रजसके

    पररणामस्िरूप जागरूकता का संचार प्रदखाई दतेा

    ह।ै यही जागरूकता पररितिन का िथम कारक बनती

    ह।ै जलिाय ुपररितिन भी लोगों की सोच एि ंअन्य

    गप्रतप्रिप्रधयों में पररितिन के प्रलए उत्तरदायी ह।ै एक

    छोटे से उदाहरण के द्वारा मैं स्पष्ट करना चाहता ह ाँ प्रक

    पररितिन तब होता ह ैजब हमें या तो बहुत ही अच्छे

    पररणाम प्रमल रह े हों या पररणाम हमारे प्रलए

    नकुसानदायक साप्रबत हो रह ेहों।

    आज समाज में निीन चेतना का भाि जन्म ले रहा

    ह।ै यही कारण ह ैप्रक पॉलीथीन की लम्बी समय तक

    गलुामी में रहने के बाद आज लोगों को इसके होने

    िाले दपुपररणामों से डर लगने लगा ह।ै इससे

    भयभयीत होकर आज एक प्रिश्वव्यापी सहमप्रत

    उभरकर आ रही ह ै प्रक पॉलीथीन के ियोग को

    िप्रतबंप्रधत करना होगा प्रजससे मानि एि ंजीि जाप्रत

    के प्रहतों की रक्षा की जा सके। इसी िकार जल संकट

    का कारण भी मनपुय ही ह ै और इस संकट की

    भयािह प्रस्थप्रत को दखेकर आज हम जल संकट से

    उबरने के प्रलए अप्रधक पेड़ लगाने और पयाििरण को

    सुंदर बनाने के बारे में सोचना शरुू कर रह ेहैं। अतं में

    मैं यही कहना चाह ाँगा प्रक संकट के भय से ही

    पररितिन जन्म लेता ह।ै

    नीरज शमाि

    किा – िसवीं

    आर्टिकल 370

    एक प्रदन अचानक कश्मीर में

    फ़ौज की सरगमी तेज हो गई।

    अचानक कश्मीर में फ़ौप्रजयों की

    संख्या बढने के कारण कश्मीर के

    राजनैप्रतक गप्रलयारों में चचाि होने

    लगी प्रक कश्मीर में कुछ बड़ा होने िाला ह।ै यह

    सभी घटनाएाँ इतनी गोपनीय तरीके से हो रही थीं प्रक

    प्रकसी को कुछ सोचने समझने का समय ही नहीं

    प्रमला। सड़कों, गप्रलयारों और टी. िी. पर आने

    िाली बहसों में यह चचाि तो अिश्य थी प्रक कुछ तो

    अिश्य होने िाला ह ैलेप्रकन यह प्रकसी को अदंाजा

    नहीं था प्रक क्या होने िाला ह ै? कुछ प्रदनों बाद एक

    जागरण पृष्ठ संख्या 11

  • प्रदन अचानक यह खबर सामने आयी प्रक भारत

    सरकार ने कश्मीर से धारा 370 और 35 ए. समाप्त

    कर प्रदया ह।ै इस सचूना के बाहर आते ही

    राजनेताओ ंने अपनी बयानिाजी शरुू कर दीं लेप्रकन

    उसका जनमानस पर कोई खास िभाि नहीं पड़ रहा

    था। कश्मीर और कश्मीररयों की सरुक्षा के प्रलए बड़ी

    मािा में सैप्रनक बल की तैनाती हो चकुी थी और

    प्रिघटनकारी बयान दनेे िाले नेताओ ंके ऊपर सख्ती

    कर दी गई प्रजससे ि ेप्रकसी िकार की अराजकता न

    फैला सकें । इतनी बड़ी िप्रतप्रिया दखेकर मन में यह

    िश्न आना स्िाभाप्रिक था प्रक यह धारा क्या ह ैऔर

    इसके अप्रस्तत्ि को लेकर लोग इतनी िप्रतप्रियाएाँ

    क्यों द े रह े हैं मैंने धारा 370 के अब तक के

    अप्रस्तत्ि के प्रिषय में जानने के प्रलए संबंप्रधत

    दस्तािजेों को खोजने का ियास शरुू प्रकया। मझुे

    पता चला प्रक भारत की आज़ादी के बाद कुछ राजा

    आज़ाद प्रहदंसु्तान के साथ स्िेच्छा से जडु़ गए और

    कुछ राजा अपनी कुछ शतों के साथ भारतीय

    गणराज्य में आ प्रमले। दप्रक्षण भारत के राजाओ ंको

    भारत के साथ जोड़ने का काम सरदार बल्लभ भाई

    पटेल ने शरुू प्रकया और उन्होंने इस काम में

    सफलता भी िाप्त की। लेप्रकन कश्मीर के राजा

    हररप्रसंह ने भारत के साथ जडु़ने की इच्छा नहीं

    जाप्रहर की। हमारे दशे के िथम िधानमिंी जिाहर

    लाल नेहरू ने उनको भारत में प्रमलाने के प्रलए अनेक

    ियास प्रकए।

    कुछ नाटकीय घटनािम चलने के बाद सभी लोग

    उप्रचत समय आने का इतंज़ार करने लग।े पाप्रकस्तान

    ने कश्मीर को अपने दशे में प्रमलाने के प्रलए

    कबाइप्रलयों का एक बड़ा दश्ता कश्मीर भजेा। जब

    राजा हररप्रसंह को यह जानकारी प्रमली तो ि े घबरा

    गए और उन्हें समझ में आ गया प्रक प्रबना भारत में

    प्रिलय के कश्मीर का अपना कोई अप्रस्तत्ि नहीं

    बचेगा। यह प्रिचार कर उन्होंन ेभारत के साथ कश्मीर

    के प्रिलय का िस्ताि रखकर भारत सरकार से सरुक्षा

    की मााँग की। भारतीय सेना कश्मीर की रक्षा के प्रलए

    िहााँ पहुाँची और उसने कबाइप्रलयों को कश्मीर से

    खदडे़ने का काम शरुू कर प्रदया। कश्मीर के काफी

    बडे़ भभूाग से कबाइप्रलयो को पीछे तो धकेल प्रदया

    गया लेप्रकन पाप्रकस्तान ने अपनी नापाक हरकत से

    कश्मीर एक बड़ा प्रहस्सा अपने कब्ज ेमें प्रलया और

    अपना दािा ठोक प्रदया।

    कश्मीर के भारत में प्रिलय के समय उस राज्य को

    कुछ अप्रतररक्त सपु्रिधाएाँ दनेे के प्रिचार से अस्थायी

    रूप से धारा 370 और आप्रटिकल 35 ए. को

    अप्रस्तत्ि में लाया गया। यह धारा इसप्रलए रखी गई

    प्रजससे िहााँ के लोग धीरे-धीरे अपने दशे के साथ

    घलुप्रमल जाए ंऔर िहााँ की सांस्कृप्रतक प्रिरासत को

    दशे के साथ साझा कर सकें । प्रिघटनकारी शप्रक्तयों

    के बहकाि े में आकर लोग अस्थायी व्यिस्था को

    संप्रिधान से ऊपर मानकर कश्मीर की जनता को

    भड़काने का काम करने लगे। इस धारा के अप्रस्तत्ि

    में होने के कारण कश्मीर अनेक आतंकी

    गप्रतप्रिप्रधयों का प्रशकार रहा और िहााँ की जनता

    भारत की मखु्य धारा से कटकर रहने लगी प्रजसके

    कारण इस धारा को हटाना आिश्यक हो गया था।

    धारा 370 हटने के बाद ही कश्मीर का सिांगीण

    प्रिकास संभि था। राजनैप्रतक इच्छाशप्रक्त के

    बलिती होने के पररणामस्िरूप इसे समाप्त कर एक

    दशे एक प्रिधान एक संप्रिधान के सपने को साकार

    प्रकया गया। अब सा लगता ह ैप्रक कश्मीर भारत के

    अन्य राज्यों की तरह तेजी से अपना प्रिकास करेगा।

    भारत में चलने िाली सभी जनकल्याणकारी

    योजनाओ ंका सीधा लाभ िहााँ की जनता को प्रमल

    सकेगा। हमें खशुी ह ै प्रक अब हमारा दशे कश्मीर से

    लेकर कन्याकुमारी तक एक ही संप्रिधान रखता ह।ै

    इससे हमारा दशे और मजबतू होगा। आरव जैन

    किा – िसवीं

    पाइका र्वद्रोह

    भारत को आज़ाद हुए एक

    लम्बा समय व्यतीत हो चकुा ह।ै

    लेप्रकन आज भी हम इप्रतहास

    के पन्नों को खगंालकर भारतीय

    स्िाधीनता संग्राम के तथ्यों को

    एकजटु करने का ियास कर रह ेहैं। भारतीय इप्रतहास

    में 1857 को िथम स्िाधीनता संग्राम माना जाता ह,ै

    अब सरकार उस इप्रतहास में बदलाि करने पर

    जागरण पृष्ठ संख्या 12

  • प्रिचार कर रही ह।ै 1857 की िांप्रत से पहले हुए

    1817 के पाइका प्रिद्रोह को पहला संग्राम मानने की

    प्रसफ़ाररश कें द्रीय मानि संसाधन मिंी श्रीमान िकाश

    जािडेकर ने की ह।ै

    1817 में ओप्रडशा में हुए पाइका प्रिद्रोह ने पूिी

    भारत में कुछ समय के प्रलए प्रिप्रटश राज की जडे़

    प्रहला दी थीं। मलू रूप से पाइका ओप्रडशा के उन

    गजपप्रत शासकों के प्रकसानों का असंगप्रठत सैन्य

    दल था, जो यदु्ध के समय राजा को सैन्य सेिाएं

    महुयैा कराते थे और शांप्रतकाल में खतेी करते थे।

    इन लोगों ने 1817 में बक्शी जगबंध ु प्रिद्याधर के

    नेततृ्ि में प्रिप्रटश राज के प्रिरुद्ध बगाित का झडंा

    उठा प्रलया था।

    खदुाि के शासक परंपरागत रूप से जगन्नाथ मपं्रदर के

    संरक्षक थे और धरती पर उनके िप्रतप्रनप्रध के तौर पर

    शासन करते थे। ि े लोग ओप्रडशा के लोगों की

    राजनीप्रतक और सासं्कृप्रतक स्ितंिता का ितीक थे।

    प्रिप्रटश राज ने ओप्रडशा के उत्तर में प्रस्थत बंगाल

    िांत और दप्रक्षण में प्रस्थत मद्रास िांत पर अप्रधकार

    करने के बाद अगं्रेजों ने 1803 में ओप्रडशा को भी

    अपने अप्रधकार में कर प्रलया था। उस समय

    ओप्रडशा के गजपप्रत राजा मकंुुददिे प्रद्वतीय

    अियस्क थे और उनके संरक्षक जय राजगरुु द्वारा

    प्रकए गए शरुुआती िप्रतरोध का अगं्रेजों द्वारा िूरता

    पिूिक दमन प्रकया गया और जयगरुु के शरीर के

    प्रजदंा रहते हुए ही टुकडे़ कर प्रदए गए।

    कुछ सालों के बाद गजपप्रत राजाओ ं के असंगप्रठत

    सैन्य दल के िशंानगुत मपु्रखया बक्शी जगबंध ु के

    नेततृ्ि में पाइका प्रिद्रोप्रहयों ने आप्रदिाप्रसयों और

    समाज के अन्य िगों का सहयोग लेकर बगाित कर

    दी। पाइका प्रिद्रोह 1817 में आरंभ हुआ और बहुत

    ही तेजी से फैल गया। हालांप्रक प्रिप्रटश राज के

    प्रिरुद्ध प्रिद्रोह में पाइका लोगों ने अहम भपू्रमका

    प्रनभाई थी, लेप्रकन प्रकसी भी मायने में यह प्रिद्रोह

    एक िगि प्रिशषे के लोगों के छोटे समहू का प्रिद्रोह

    भर नहीं था।

    घमुसरु जो प्रक ितिमान में गजंम और कंधमाल प्रजले

    का प्रहस्सा ह,ै िहााँ के आप्रदिाप्रसयों और अन्य िगों

    ने इस प्रिद्रोह में सप्रिय भपू्रमका प्रनभाई। िास्ति में

    पाइका प्रिद्रोह के प्रिस्तार का सही अिसर तब

    आया, जब घमुसरु के 400 आप्रदिाप्रसयों ने प्रिप्रटश

    राज के प्रखलाफ बगाित करते हुए खदुाि में ििशे

    प्रकया। खदुाि, जहााँ से अगं्रेज भाग गए थे, िहााँ की

    तरफ कूच करते हुए पाइका प्रिद्रोप्रहयों ने प्रिप्रटश राज

    के ितीकों पर हमला करते हुए पपु्रलस थानों,

    िशासकीय कायािलयों और राजकोष में आग लगा

    दी।

    पाइका प्रिद्रोप्रहयों को कप्रनका, कुजगं, नयागढ और

    घमुसरु के राजाओ,ं जमींदारों, ग्राम िधानों और

    आम प्रकसानों का समथिन िाप्त था। यह प्रिद्रोह बहुत

    तेजी से िांत के अन्य इलाकों जसेै पलुि, पीपली और

    कटक में फैल गया। प्रिद्रोह से पहले तो अगं्रेज

    चप्रकत रह गए। लेप्रकन बाद में उन्होंने आप्रधपत्य

    बनाए रखने की कोप्रशश की लेप्रकन उन्हें पाइका

    प्रिद्रोप्रहयों के कडे़ िप्रतरोध का सामना करना पड़ा।

    बाद में हुई कई लड़ाइयों में प्रिद्रोप्रहयों को सफलता

    प्रमली, लेप्रकन तीन महीनों के अदंर ही अगं्रेज अतंत:

    उन्हें पराप्रजत करने में सफल रह।े

    इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला प्रजसमें कई

    लोगों को जले में डाला गया और अपनी जान भी

    गाँिानी पड़ी। बहुत बड़ी संख्या में लोगों को

    अत्याचारों का सामना करना पड़ा। कई प्रिद्रोप्रहयों ने

    1819 तक गरुरल्ला यदु्ध लड़ा, लेप्रकन अतं में उन्हें

    पकड़ कर मार प्रदया गया। बक्शी जगबंध ुको अतंत:

    1825 में प्रगरफ्तार कर प्रलया गया और कैद में रहते

    हुए ही सन ्1829 में उनकी मतृ्य ुहो गई।

    हालााँप्रक पाइका प्रिद्रोह को ओप्रडशा में बहुत ऊाँ चा

    दजाि िाप्त ह ैऔर िहााँ के बच्चे अगं्रेजों के प्रिरुद्ध

    लड़ाई में िीरता की कहाप्रनयााँ पढते हुए बडे़ होते हैं,

    लेप्रकन दभुािग्य से इस प्रिद्रोह को रापरीय स्तर पर

    िसैा महत्ि नहीं प्रमला जैसा प्रक प्रमलना चाप्रहए था।

    भारत सरकार ने इस प्रिद्रोह को समपु्रचत पहचान दनेे

    के प्रलये ही इस घटना की 200 िीं िषिगांठ को

    उप्रचत रूप से मनाने का प्रनणिय प्रलया ह।ै

    (संकप्रलत)

    रर्चत अग्रवाला

    किा – ग्यारहवीं

    जागरण पृष्ठ संख्या 13

  • राजगुरु महापािा

    प्रशिराम हरर राजगरुू महापािा

    का जन्म 24 अगस्त 1908 को

    पणू े प्रजले के खडे़ा ग्राम में हुआ

    था। राजगरुू भरतीय स्ितंिता

    संग्राम के एक महान िांप्रतकारी

    थे। भारतीय स्ितंिता संग्राम में राजगरुू का बप्रलदान

    एक महान घटना थी। इस महान िांप्रतकारी को

    भगतप्रसंह और सखुदिे के साथ 23 माचि 1931 को

    फााँसी पर लटका प्रदया गया था। इनके बप्रलदान न े

    भारतीय िांप्रत में हलचल पैदा कर दी थी। इनके

    बचपन के कुछ प्रमि इन्हें गरुु कहकर भी पकुारते थे।

    राजगरुू बचपन से ही िांप्रतकारी प्रिचारों के धारक

    थे। छः िषि की छोटी-सी आय ु में इनके प्रपता की

    मतृ्य ु हो गई प्रजसके कारण यह िाराणसी प्रशक्षा

    ग्रहण करने आ गए। राजगरुू को संस्कृत सीखने की

    बहुत ललक थी। राजगरुू ने प्रहदंओु ंके अनेक पप्रिि

    ग्रंथों के अध्ययन के साथ-साथ िदेों का भी ज्ञान

    िाप्त प्रकया। राजगरुू को लघ ु प्रसद्धांत कौमदुी जसेै

    प्रक्लष्ट ग्रंथ भी कंठस्थ थे। बचपन से ही इनको अपन े

    स्िास्थ्य के िप्रत बेहद लगाि था। ि े प्रनयप्रमत

    व्यायाम करते और शरीर को फुतीला रखने के प्रलए

    दौड़ भी लगाते थे। भारतीय महापरुुषों में इन्हें

    छिपप्रत प्रशिाजी बहुत ही प्रिय थे। इनको उनकी

    यदु्धकला बेहद रुप्रचकर लगती थी।

    िाराणसी में प्रिद्याध्ययन के समय इनका संपकि दशे

    के अनेक िांप्रतकाररयों से हुआ और उनसे िभाप्रित

    होकर राजगरुू प्रहदंसु्तान सोशप्रलस्ट ररपप्रब्लकन

    आमी से जडु़ गए। अनेक िांप्रतकारी इनकी पहचान

    को गोपनीय रखने के प्रलए इन्हें रघनुाथ के नाम से

    पकुारते थे। इनके िमखु िांप्रतकारी प्रमिों में

    चंद्रशखेर आजाद, सरदार भगत प्रसंह और

    यतीन्द्रनाथ दास आप्रद शाप्रमल थे। सभी

    िांप्रतकाररयों में इनका प्रनशाना सबसे अचकू था।

    इसी कारण साण्डसि की हत्या करने की योजना में

    राजगरुू को शाप्रमल प्रकया गया। चंद्रशखेर आजाद

    इन तीनों िांप्रतकाररयों को बेहद प्यार करते थे।

    इसप्रलए ि ेउनके साथ साये की तरह रहते थे।

    साण्डसि की हत्या के बाद इस िांप्रतकारी को पकड़

    प्रलया गया और 23 माचि 1931 को भगत प्रसंह और

    सखुदिे के साथ लाहौर के सेण्रल जले में फााँसी की

    सजा द ेदी गई। इस महान िांप्रतकारी के बप्रलदान के

    बाद दशे में आिोश की लहर उमड़ पड़ी और िह

    प्रिद्रोह की आग इतनी भयानक हुई प्रक एक प्रदन

    अगं्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इस महान

    िांप्रतकारी का नाम आज भी भारत के इप्रतहास में

    आदर और सम्मान के साथ प्रलया जाता ह।ै

    (संकप्रलत)

    मेहुल अग्रवाला

    किा - ग्यारहवीं

    गीता : एक पे्ररणा

    मानि एक प्रिकासशील िाणी ह।ै

    प्रिकास की इस दौड़ में मानि को

    आधपु्रनकता ने सबसे अप्रधक

    िभाप्रित प्रकया ह।ै आधपु्रनकता

    की दौड़ में इनसान चारों ओर स े

    इक्कीसिीं सदी के चमत्कारों से प्रघरकर अपनी

    आध्याप्रमकता को एक प्रकनारे करता जा रहा ह।ै यप्रद

    हम आज मनपुय के जीिन का अध्ययन करें तो

    पाएगं े प्रक िह अपने जीिन का सिािप्रधक समय

    मोबाइल, कम्प्यटूर और गाड़ी के साथ व्यतीत करता

    ह।ै इन सभी आकषिणों से िह इतना जकड़ा हुआ ह ै

    प्रक उसे अपने प्रििके के ियोग करने का समय ही

    िाप्त नहीं होता ह।ै मैं मानता ह ाँ प्रक इन सभ�